रांची के सेंट फ्रांसिस चर्च हरमू के कर्मचारी सिरिल बेक ने दान में मिले हुए अपने पुराने वाहन बाक्सर के कागजातों को खोने पर ट्रैफिक पुलिस से परेशान आकर इलेक्ट्रिक साइकिल बनाई।
अपने पुराने वाहन के कागजात को छोड़ देने पर सड़क पर चलने में परेशानियों का सामना करना पड़ रहा था। कागजात न होने के कारण हर चौक पर ट्रैफिक पुलिस द्वारा सिरिल बेक को पकड़ कर पैसा मांगते थे। इसी कारण सिरिल बेक ने इलेक्ट्रानिक साइकिल बनाने का प्रण लिया।
इलेक्ट्रानिक साइकिल बनाने के लिए सिरिल बेक ने कोलकाता में जाकर स्वयं शोध किया। शोध के दौरान सिरिल बेक को लैपटाप में लगाए जाने वाले लिथियम बैटरी को मोटर से जोड़कर साइकिल बनाने की जानकारी मिली। कोलकाता से लिथियम बैटरी और मोटर खरीद लिया और इनकी मदद से सिरिल बेक ने कबाड़ में पड़ी साइकिल को इलेक्ट्रिक साइकिल में बदल दिया।
साइकिल को बनाने में लगा खर्च…
इस साइकिल को बनाने में 15000 की लागत आई। जिसमें से 8000 रुपए में साइकिल के मोटर, 6000 रुपए में लिथियम बैटरी की लागत पड़ी। 1000 रुपए में हार्न और वायरिंग में खर्चा किया। मात्र 1 महीने में सिरिल बेक ने इस साइकिल काे तैयार किया। यह साइकिल 3 घंटे में चार्ज हो जाती है। यह साइकिल 30 से 35 किमी प्रतिघंटे की रफ्तार से चलती है। सिरिल बेक अब तक चार साइकिल बना चुका है। जिसमें से एक वह खुद चलाते हैं और एक उनका बेटा चलाता है। इन्हीं दोनों साइकिल के ऊपर किए गए प्रचार के बदौलत सिरिल बेक अभी तक दो साइकिल बेच चुके हैं।
सिरिल बेक एक साइकिल को 23000 और दूसरे को 21000 में बेच चुके हैं। सिरिल बेक का मानना है कि इलेक्ट्रानिक साइकिल पर्यावरण के लिए तो अच्छी है ही साथ ही साथ इस साइकिल में न तो कागजातों की जरूरत पड़ती है और न ही लाइसेंस की।
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