झारखंड में मैट्रिक और इंटर पास युवाओं को थर्ड और फोर्थ ग्रेड की नियुक्ति में अवसर के सवाल पर बहस तेज हो गई है. हेमंत सोरेन सरकार के इस फैसले को राज्य के आरक्षित और अनारक्षित श्रेणी के युवाओं के लिए नुकसानदेह बताया जा रहा है |
सत्ताधारी दल के अंदर से भी इस निर्णय पर पुनर्विचार की आवाज उठने लगी है. जबकि कुछ विधायकों का मानना है कि इससे राज्य के स्थानीय और मूलवासियों को सबसे ज्यादा नुकसान होगा. जिलास्तर पर तृतीय और चतुर्थ श्रेणी की नियुक्ति को लेकर नया आदेश जारी किया कि जिलास्तर पर सरकारी नौकरी हासिल करनी है, तो राज्य से मैट्रिक-इंटर पास करना अनिवार्य है.
बजट सत्र के दौरान
कुछ विधायकों ने सरकार के आदेश को कठघरे में खड़ा कर दिया है. माले विधायक विनोद सिंह और बीजेपी विधायक नवीन जायसवाल के मुताबिक, राज्य सरकार झारखंड के युवाओं का हक मारने में लगी है. हेमंत सोरेन सरकार के इस निर्णय से दूसरे राज्य के अभ्यर्थियों को रोका नहीं जा सकेगा. दूसरे राज्य के रहने वाले युवा भी झारखंड से मैट्रिक या इंटर पास कर नियुक्ति प्रक्रिया में आसानी से हिस्सा ले लेंगे. अनारक्षित श्रेणी के युवाओं के लिए सरकार का यह निर्णय सबसे ज्यादा नुकसानदेह है.
अनारक्षित श्रेणी के स्थानीय और मूलवासी कैटेगरी
युवा किसी दूसरे राज्य से मैट्रिक-इंटर पास करने की स्थिति में अपने ही राज्य की नियुक्ति प्रक्रिया से बेदखल हो जाएंगे. जबकि राज्य सरकार दूसरे राज्य के उनलोगों को नियुक्ति प्रक्रिया में भाग लेने से नहीं रोक सकती है, जिन्होंने मैट्रिक और इंटर की परीक्षा झारखंड से पास की हो. ऐसे में सरकार के इस निर्णय को कोर्ट में चुनौती देना लगभग तय माना जा रहा है. झारखंड ही नहीं किसी भी राज्य में पड़ोसी राज्य के छात्र शिक्षा लेने के लिए एक राज्य से दूसरे राज्य का रुख करते हैं.
सदन के अंदर भी विधायक राज्य सरकार के इस निर्णय पर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को आईना दिखाने में जुट गए
राज्य सरकार हाल के दिनों में लगातार कई विभागों में मैट्रिक-इंटर आधारित नियुक्ति को लेकर संशोधन कर चुकी है. वर्तमान सरकार को ऐसा लगता है कि उसके इस निर्णय से आदिवासी-मूलवासी को फायदा मिलेगा, जबकि कई विधायकों का मानना है कि इस फैसले से झारखंडी युवाओं की हकमारी की आशंका बढ़ेगी.
कांग्रेस ने खुद की सरकार से ही इस निर्णय पर पुनर्विचार करने का आग्रह किया है. कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष बंधु तिर्की ने कहा है कि इस निर्णय से स्थानीय और खतियानधारी युवाओं को नुकसान हो रहा है. इसमें अनारक्षित श्रेणी के वैसे युवा भी शामिल हैं जो मूलवासी होने के बावजूद जिलास्तर पर सरकार की नियुक्ति प्रक्रिया में भाग नहीं ले सकेंगे.
झारखंड राज्य गठन के 22 साल बाद
स्थानीय और नियोजन नीति नहीं होने से नियुक्ति प्रक्रिया का पेंच सुलझ नहीं पाया है. हेमंत सोरेन सरकार से राज्य के युवाओं को काफी उम्मीद थी, पर अब तक वर्तमान सरकार भी इस पर कोई अंतिम निर्णय नहीं ले पाई है. हां ये बात जरूर है कि जिला स्तर पर थर्ड-फोर्थ ग्रेड की नौकरी में मैट्रिक-इंटर पास का प्रावधान जरूर किया गया, जिस पर अभी से ही सवाल उठने लगे हैं और राज्य सरकार के पास कोई जवाब नहीं.
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