तकनीक में आई क्रांति अब इंसान को एक ही जगह से बैठे बिठाए देश-दुनिया की सैर करा रही है। इन दिनों जमशेदपुर के स्कूल में पढ़ने वाले बच्चे यहां बैठे-बैठे आगरा के ताजमहल की सैर कर रहे हैं। कोना-कोना घूमकर उसके आर्किटेक्चर को भी देख और समझ रहे हैं। स्कूल में स्थापित वर्चुअल रियलिटी लैब यानी सेवेन डी इफेक्ट से यह संभव हो पाया है।
इसके जरिए बच्चे किताबी ज्ञान के अलावा तकनीक की नई दुनिया से भी रूबरू हो रहे हैं। वे वीआर लेंस पहनकर कहीं भी वर्चुअल रूप से दौरा कर सकते हैं। यह दौरा बिल्कुल वैसे ही होता है, जैसे वे खुद वहां जाकर घूम रहे हों।
फिलहाल शहर के एक निजी स्कूल में है लैब
फिलहाल शहर के सिर्फ स्कूल ऑफ एक्सीलेंस में इस टेक्नोलॉजी से युक्त लैब स्थापित है। यहां एडिटेक कंपनी ने मेटाबुक एक्सआर के सहयोग से इस लैब को तैयार किया है। मेटाबुक कंपनी गेम टेक कंपनी है, जो वर्चुअल रियलिटी के क्षेत्र में अब शैक्षिक कंटेंट उपलब्ध कराने की दिशा में काम कर रही है।
सभी स्कूलों में शुरू होगी सुविधा
सभी स्कूलों में इस लैब को स्थापित करने की योजना है। एसडीएसएम स्कूल की प्रिंसिपल मौसमी दास कहती हैं कि इस लैब से विद्यार्थियों को जटिल विज्ञान, गणित एवं सोशल साइंस को समझने में काफी आसानी हो रही है। जो चीजें पढ़ने में जटिल लगती थीं, उन्हें बच्चे वर्चुअल रियलिटी की दुनिया में एक तरह से देखकर सीख रहे हैं।
सेवेन डी तकनीक से होता है असली अनुभव
वर्चुअल रियलिटी में सेवन-डी तकनीक काम करती है, जो वीआर चश्मे पहनने के बाद 360 डिग्री का वीडियो आंखों के सामने प्रस्तुत करती है। चश्मा पहनने के बाद जब आप सिर घुमाकर आगे-पीछे देखते हैं तो ऐसा लगता है कि आप असल में उसी जगह खड़े हैं और वहां का वीडियो आपके चश्मे पर चल रहा है। सेवन डी तकनीक थ्री डी तकनीक का अपडेट वर्जन है। थ्री डी तकनीक को हम कई फिल्मों में देख चुके हैं। सिनेमा हॉल में थ्री डी फिल्में देखने को जिस तरह चश्मे दिए जाते हैं, उसी तरह सेवन डी के लिए भी दिए जाते हैं।
बीए कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग में भी है लैब
आईआईटी दिल्ली व जमशेदपुर के बीए कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी के बीच भी लैब को लेकर एक समझौता हुआ है। इसका उद्देश्य छात्रों को प्रायोगिक अनुभव प्रदान करना है। यहां लैब की मदद से साइंस और इंजीनियरिंग के विद्यार्थियों को ऑनलाइन प्रैक्टिकल करने की सुविधा पोर्टल के माध्यम से दी जा रही है।
कॉलेज के चेयरमैन डॉ. शिवकुमार सिंह ने बताया कि वेब आधारित इस पहल के जरिए छात्र सुदूर क्षेत्रों में भी प्रयोग कर सकते हैं। यह एक अनोखी पहल है, जिसे कम्प्यूटर सॉफ्टवेयर के माध्यम से अमल में लाया गया है। इससे सिविल इंजीनियरिंग, कंप्यूटर साइंस इंजीनियरिंग, इलेक्ट्रिकल एंड इलेक्ट्रॉनिक्स, इलेक्ट्रानिक्स एंड कम्युनिकेशन इंजीनियरिंग और भौतिक शास्त्र से संबंधित छात्रों को लाभ मिल रहा है।
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