दिल्ली हाई कोर्ट ने दिल्ली मेट्रो को रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर प्रमोटेड दिल्ली एयरपोर्ट मेट्रो एक्सप्रेस प्राइवेट लिमिटेड को 2017 के मध्यस्थता फैसले के अनुपालन में 31 मई तक 4600 करोड़ रुपये भुगतान करने को कहा है.
अदालत ने कहा कि मध्यस्थता फैसले को 2017 को ही अंतिम रूप मिल गया, अब इसे कागजी फैसले के रूप में रहने की अनुमति नहीं दी जा सकती है, इसलिए, DMRC के हलफनामे में जिक्र किए गये अलग-अलग भागों में उपलब्ध अपने धन को या तो डायवर्ट करके या लोन लेकर पैसों का भुगतान करे.31 मई से पहले पूरी राशि जमा कराए.
दिल्ली मेट्रो-
कोर्ट न्यायमूर्ति सुरेश कुमार कैत ने एक फैसले में दर्ज किया कि डीएमआरसी के पास कुल 1,452.10 करोड़ रुपये हैं, और उसे निर्देश दिया कि वह अपने वैधानिक खर्चों के लिए कुल राशि में से 628 करोड़ रुपये की राशि अलग रखे और शेष राशि डीएएमईपीएल को दो सप्ताह के भीतर भुगतान करे.
शेष बकाया राशि के लिए अदालत ने डीएमआरसी को दो महीने के भीतर दो समान किस्तों में भुगतान करने का निर्देश दिया. न्यायालय ने कहा कि पहली किस्त का भुगतान इस साल 30 अप्रैल तक या उससे पहले किया जाएगा और दूसरी किस्त का भुगतान 31 मई को या उससे पहले किया जाएगा. 2008 में, डीएमआरसी ने लाइन के डिजाइन, स्थापना, कमीशनिंग, संचालन और रखरखाव से संबंधित डीएएमईपीएल के साथ एक अनुबंध पर हस्ताक्षर किए थे.
डीएमआरसी ने 2012 में डीएएमईपीएल द्वारा इस आधार पर रियायत समझौते को समाप्त करने के बाद मध्यस्थता का आह्वान किया कि निर्माण में बताए गए दोषों को डीएमआरसी द्वारा निर्धारित 90 दिनों के भीतर ठीक नहीं किया गया था. सितंबर में सुप्रीम कोर्ट ने DAMEPL के पक्ष में 2017 के मध्यस्थता राशि को बरकरार रखा. रिलायंस इंफ्रा की अगुवाई वाली कंपनी ने अपनी याचिका में डीएमआरसी से 8,009.83 करोड़ रुपये की मांग की थी.
डीएमआरसी द्वारा 14 फरवरी तक 1,678.42 करोड़ रुपये की राशि का भुगतान किया गया था. डीएएमईपीएल द्वारा की गई गणना पर आपत्ति जताते हुए, डीएमआरसी ने अदालत से कहा था कि उसके पास कुल 5,694.25 करोड़ रुपये उपलब्ध हैं. इस मामले में डीएमआरसी ने अदालत के समक्ष तर्क दिया था कि मेट्रो लाइनों के निर्माण के लिए निर्धारित धन को अटैच नहीं किया जा सकता है और मेट्रो रेल अधिनियम 2002 की धारा 89 के तहत रोलिंग स्टॉक, ट्रैक, प्लांट, मशीनरी, भवन आदि को भी अटैच नहीं किया जा सकता है.
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