आसमानी बिजली का कहर झारखंड के लिए एक बड़ी आपदा है. मौसम विभाग के आंकड़ों के अनुसार, बीते वर्ष यानी 2021-22 में झारखंड में वज्रपात की 4 लाख 39 हजार 828 घटनाएं हुई हैं. इसके पहले 2020-21 में राज्य में लगभग साढ़े चार लाख बार वज्रपात हुआ था. आंकड़ों के मुताबिक, पूरे देश में सबसे अधिक बिजली मध्य प्रदेश में गिरती है. बीते वर्ष वहां साढ़े छह लाख से अधिक बार बिजली गिरी थी, जबकि छत्तीसगढ़ में करीब 5.7 लाख, महाराष्ट्र में 5.4 लाख, ओड़िशा में 5.3 तथा प बंगाल में 5.1 लाख से अधिक बार वज्रपात की घटनाएं रिकॉर्ड की गईं.
यह पाया गया है कि वज्रपात की सबसे ज्यादा घटनाएं मई-जून में प्री मॉनसून के दौरान होती हैं. इसी वर्ष की बात करें तो प्री-मॉनसून और मॉनसून के बीते 20 दिनों में ही वज्रपात की घटनाओं में झारखंड में अब तक 28 लोगों की मौत हो चुकी है. पिछले 10 वर्षो में यहां वज्रपात की घटनाओं में 1700 से भी ज्यादा मौतें हुई हैं. वर्ष 2011 से लेकर अब तक किसी भी वर्ष वज्रपात से होने वाली मौतों की संख्या 150 से कम नहीं रही.
झारखंड में वज्रपात की 4 लाख 39 हजार 828 घटनाएं हुई
2017 में तो वज्रपात से मौतों का आंकड़ा 300 दर्ज किया था. इसी तरह 2016 में 270 और 2018 में 277मौतें हुई थीं. आसमान में जब भी बिजली कड़कती है तो रांची के नामकुम प्रखंड स्थित वज्रमरा गांव के लोगों की रूह किसी अनहोनी की आशंका से कांप उठती है. आसमानी बिजली ने इस गांव में इतनी तबाही मचाई है कि इसका नाम ही वज्रमरा पड़ गया. संभवत: पूरे देश का अकेला ऐसा गांव है, जहां पूरे साल में 500 से भी ज्यादा बार आसमानी बिजली गिरती है.
इस गांव का शायद ही कोई ऐसा परिवार है, जिसने वज्रपात की वजह से जान-माल का नुकसान न उठाया हो. इसी तरहरांची के ही पिठौरिया गांव में स्थित एक प्राचीन किले पर भी हर साल कई बार आसमानी बिजली गिरती है. यह किला लगभग 200 साल पहले इस इलाके के राजा रहे जगतपाल सिंह का था, जो ढहकर खंडहर में तब्दील हो चुका है. समुद्र तट से अधिक ऊंचाई पर होने व पठारी और जंगली क्षेत्रों में विशेषकर जहां जमीन की ऊंचाई में अचानक परिवर्तन आ जाता है. वहां वाष्प कण आपस में टकरा कर अत्यधिक ऊर्जा का सृजन करते हैं, जो कि खनिज भूमि की ओर आकर्षित होकर वज्रपात का रूप धारण कर लेता है.
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