ऑस्कर अवॉर्ड समारोह के दौरान कॉमेडियन क्रिस रॉक का विल की पत्नी के सिर के बालों का मज़ाक उड़ाना और फिरविल स्मिथ का क्रिस को थप्पड़ मारना आजकल चर्चा का विषय बना हुआ है . रॉक ने जेडा पिंकेट के सिर की तुलना फ़िल्म ‘जीआई जेन’ की एक्ट्रेस डेमी मूर से की थी जिन्होंने फ़िल्म के लिए अपना सिर मुंडवा लिया था.
एलोपेसिया गंजेपन के लिए एक मेडिकल टर्म है जहां धीरे-धीरे हमारे बाल झड़ने शुरू हो जाते हैं.
ब्रिटेन के नेशनल हेल्थ सर्विस (एनएचएस) के अनुसार, एलोपेसिया एक इंफ्लेमेटरी बीमारी है जिसमें बाल झड़ने लगते हैं. इसका असर कभी-कभी नाखूनों पर भी होता है. ज़्यादातर मामलों में बहुत सारे बाल एक साथ झड़ जाते हैं और झड़ते हुए बालों का गुच्छा भी नज़र आता है. इसकी शुरुआत किसी भी उम्र में हो सकती है और किसी को भी हो सकता है.
दिल्ली में 11 सालों से डर्मटॉलॉजिस्ट के तौर पर काम कर रहीं डॉक्टर सोनाली चौधरी एलोपेसिया को समझाते हुए कहती हैं, “एलोपेसिया गंजेपन के लिए एक मेडिकल टर्म है जहां धीरे-धीरे हमारे बाल झड़ने शुरू हो जाते हैं. पुरुष और महिलाओं को अलग-अलग तरीके के एलोपेसिया हो सकते हैं. इसके अलग-अलग पड़ाव भी होते हैं.”
एलोपेसिया अलग-अलग तरह की होती है.उन्होंने बताया कि एलोपेसिया आनुवंशिक कारणों और पोषण की कमी से भी होती है.
उन्होंने बताया कि इस स्थिति में शुरुआत में बाल पतले होने लगते हैं और जब वो पतले हो जाते हैं तो वो जड़ से निकल जाते हैं और उस जगह गंजापन हो जाता है.डॉक्टर सोनाली कहती हैं, “एलोपेसिया को हम ऑटो इम्यून डिसॉर्डर नहीं बोल सकते क्योंकि एलोपेसिया अलग-अलग तरह की होती है.उन्होंने बताया कि एलोपेसिया आनुवंशिक कारणों और पोषण की कमी से भी होती है.
डॉक्टर सोनाली चौधरी ने बताया, “कुछ मामलों में ये तब होता है जब आपकी रोग प्रतिरोध शक्ति आपके ही खिलाफ काम करने लगती है. आपके शरीर की रोग प्रतिरोध शक्ति किसी भी तरह के संक्रमण से लड़ने की जगह, बालों के रोम पर हमला करने लग जाती है. लेकिन ये हर मामले में नहीं होता.”
इसमें हॉर्मोन से जुड़ी समस्याएं होती हैं. इसे ठीक करना थोड़ा मुश्किल होता है.
डॉक्टर सोनाली ने बीबीसी को बताया कि इलाज के लिए पहले वो ये देखती हैं कि शरीर में पोषण की क्या स्थिति है.
उन्होंने कहा, “कुछ ऐसी चीजें हैं जिसकी वजह से हमारे बाल बहुत ज़्यादा झड़ने लगते हैं जैसे आयरन या बी12 की कमी. हम डी3, थाइरॉइड प्रोफाइल, पीसीओएस जैसी चीजों का भी परीक्षण करते हैं ताकि अंदरूनी समस्या का पहले इलाज किया जा सके.”
“अगर वहां से हमें कुछ पता नहीं चलता तो फिर हम स्कैल्प का परीक्षण करते हैं, हम ये देखते हैं कि क्या वहां कोई संक्रमण है.”उन्होंने बताया कि इसके बाद ही वो ऑटो इम्यून कंडीशन की तरफ़ जाते हैं. उन्होंने कहा, “इसमें हॉर्मोन सेजुड़ी समस्याएं होती हैं. इसे ठीक करना थोड़ा मुश्किल होता है.
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