
“गर्मी में कार की प्लास्टिक बोतल बन सकती है जहर का घर”. इस शीर्षक पर प्रस्तुत यह लेख एलबीएसएम कॉलेज, जमशेदपुर के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. संतोष कुमार ने तैयार किया है.
बोतल पुरानी या कई बार रीफिल की गई हो, तो खतरा और बढ़ जाता है
धूप में खड़ी कार के अंदर का तापमान 50 डिग्री सेल्सियस से भी ऊपर चला जाता है। ऐसे तापमान में प्लास्टिक की बोतल से पानी पीने से हानिकारक रसायन निकल सकते हैं जो पानी में घुलकर हमारे शरीर में चले जाते हैं।
प्लास्टिक की बोतलें आमतौर पर PET यानी पॉलीएथिलीन टेरेफ्थेलेट से बनी होती हैं। जब ये बोतलें तेज गर्मी के संपर्क में आती हैं, तो इनमें से BPA और फ्थेलेट्स जैसे केमिकल्स निकल सकते हैं। ये रसायन हार्मोनल बदलाव, कैंसर, और प्रजनन समस्याओं से जुड़े माने जाते हैं। खासकर अगर बोतल पुरानी या कई बार रीफिल की गई हो, तो खतरा और बढ़ जाता है।
स्वास्थ्य विशेषज्ञ लगातार चेतावनी दे रहे हैं कि धूप में रखी प्लास्टिक बोतलें धीरे-धीरे शरीर में ज़हर भर सकती हैं। इसलिए यह ज़रूरी है कि हम इस आम पर बेहद खतरनाक आदत के बारे में जागरूक हों और समय रहते सचेत हो जाएं।
लंबे समय तक सेवन से गंभीर बीमारियों का कारण बन सकते हैं
प्लास्टिक की अधिकतर बोतलें PET (पॉलीएथिलीन टेरेफ्थेलेट) से बनती हैं, जो देखने में हल्की, पारदर्शी और टिकाऊ होती हैं, लेकिन यह प्लास्टिक तब तक ही सुरक्षित मानी जाती है जब तक इसे सामान्य तापमान पर रखा जाए। जैसे ही यह गर्मी या धूप के संपर्क में आती है, इसके अणु टूटने लगते हैं और हानिकारक केमिकल्स जैसे BPA (बिसफिनोल ए) और फ्थेलेट्स पानी में मिल सकते हैं। ये केमिकल्स शरीर के हार्मोन सिस्टम को बिगाड़ सकते हैं और लंबे समय तक सेवन से गंभीर बीमारियों का कारण बन सकते हैं। यही वजह है कि प्लास्टिक की बोतलों का सही तापमान में उपयोग बेहद जरूरी है, खासकर बच्चों और गर्भवती महिलाओं के लिए।
कार में बोतल छोड़ना क्यों हो सकता है जानलेवा ?
जब कार धूप में खड़ी होती है, तो उसके अंदर का तापमान तेजी से बढ़ जाता है, जो 60 डिग्री सेल्सियस तक भी पहुंच सकता है। इतनी गर्मी में प्लास्टिक की बोतलें अपना रासायनिक संतुलन खो बैठती हैं और उनसे विषैले तत्व पानी में घुलने लगते हैं। खासकर गर्मियों में कार के डैशबोर्ड या सीट पर पड़ी बोतलें सबसे ज्यादा गर्मी सोखती हैं। इस पानी का सेवन करने से शरीर में धीमा जहर भरता जाता है, जिसका असर लंबे समय बाद दिखाई देता है। इसलिए जरूरी है कि कार में कभी भी प्लास्टिक बोतल छोड़ने की आदत को तुरंत छोड़ दें।
BPA और फ्थेलेट्स का शरीर पर असर
BPA और फ्थेलेट्स ऐसे केमिकल्स हैं जो प्लास्टिक की बोतलों से निकल सकते हैं, खासकर जब ये गर्मी में रखी जाती हैं। BPA एक एंडोक्राइन डिसरप्टर है जो शरीर के हार्मोन को गड़बड़ कर सकता है। यह प्रजनन क्षमता, थायरॉइड फंक्शन, और बच्चों के विकास पर सीधा असर डाल सकता है। वहीं, फ्थेलेट्स का संबंध लिवर, किडनी और हार्ट डिजीज से भी जोड़ा गया है। इन रसायनों का बार-बार सेवन शरीर में जमाव पैदा करता है, जो कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों तक का खतरा बढ़ा सकता है। इसलिए सावधानी जरूरी है।
बार-बार रीफिल करना कैसे बढ़ाता है जोखिम ?
अक्सर लोग एक ही प्लास्टिक बोतल को कई बार भरकर उपयोग करते हैं, लेकिन यह आदत भी नुकसानदायक हो सकती है। हर बार उपयोग के साथ बोतल की आंतरिक सतह खुरदरी होती जाती है, जिसमें बैक्टीरिया और हानिकारक केमिकल्स पनप सकते हैं। जब ये बोतलें गर्मी में रखी जाती हैं, तो रिसाव और संक्रमण का खतरा और भी बढ़ जाता है। इससे पेट से जुड़ी समस्याएं, संक्रमण और लंबे समय में कैंसर तक हो सकता है। इसलिए एक ही बोतल को बार-बार रीफिल करने से बचना ही समझदारी है।
क्या हैं सुरक्षित विकल्प ?
अगर आप बाहर रहते हैं और पानी साथ लेकर चलना आपकी आदत है, तो स्टील या तांबे की बोतलों का उपयोग बेहतर विकल्प है। ये न सिर्फ गर्मी को सहन कर सकती हैं, बल्कि इनके भीतर से कोई हानिकारक तत्व भी पानी में नहीं घुलता। इसके अलावा, BPA-Free प्लास्टिक बोतलें भी बाजार में उपलब्ध हैं, लेकिन उनका भी सीमित तापमान में ही उपयोग करना चाहिए। कोशिश करें कि पानी को हमेशा छांव में रखें और धूप में रखी बोतल का पानी पीने से बचें। आपकी छोटी सी सावधानी बड़ी बीमारियों से बचा सकती है।
लेखक : डॉ संतोष कुमार
असिस्टेंट प्रोफेसर एलबीएसएम कॉलेज जमशेदपुर

शशांक शेखर विगत 30 वर्षों से पत्रकारिता, आकाशवाणी व सामाजिक कार्यों से जुड़े हुए हैं साथ ही लघु/फीचर फिल्मों व वृत्त चित्रों के लिए कथा-लेखन का कार्य भी विगत डेढ़ दशकों से कर रहे हैं. मशाल न्यूज़ में पिछले लगभग ढाई वर्षों से कार्यरत हैं.
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