झारखंड मंत्रालय में 19 जनवरी यानि कल आयोजित मंत्रिपरिषद की बैठक में सरकार की विभिन्न योजनाओं को लेकर महत्वपूर्ण निर्णय लिए गए, जिसके तहत राज्य में कारखाने में कार्यरत कामगारों को सिलिकोसिस बीमारी से ग्रसित होने पर तथा सिलिकोसिस बीमारी से मृत कामगारों के आश्रितों को मुआवजा देने हेतु “कारखाना सिलिकोसिस लाभुक सहायता योजना” लागू करने की स्वीकृति दी भी शामिल है।
मानवाधिकार आयोग द्वारा निरंतर दबाव बनाने के कारण हुआ सम्भव
इस सम्बन्ध में ऑक्यूपेशनल सेफ्टी एंड हेल्थ एसोसिएशन ऑफ़ झारखण्ड (OSHAJ) के महासचिव समित कुमार कर ने इस पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा है, कि इसके पहले वर्ष 2010 में JOSH Cell बना एवं उसी वर्ष 24 नवम्बर को उनके द्वारा तैयार की गई ‘सिलिकोसिस चिह्नितकरण तथा उन्मुलन कार्य योजना’ को तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा ने स्वीकृति प्रदान की, लेकिन कार्य योजना का नाम ‘State Action Plan Prevention and Mitigation of Silicosis’ रखा गया, वर्ष 2012 के अगस्त महीने में इसका नोटिफिकेशन किया गया। झारखंड कारखाना अधिनियम में भी संशोधन किया गया और अभी राज्य सरकार ने जो निर्णय लिया, वह भी मानवाधिकार आयोग द्वारा राज्य सरकारों पर निरंतर दबाव बनाने रखने के कारण सम्भव हुआ।
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लगातार इसे लेकर चला अभियान
OSHAJ के महासचिव समित कर ने बताया कि वर्ष 2005 में तत्कालीन सासंद स्व. सुनील कुमार महतो के हस्तक्षेप से आठ सिलिकोसिस से आक्रांत मजदूरों को चिन्हित किया गया. मार्च 2008 में जमशेदपुर पश्चिमी के तत्कालीन विधायक सरयू राय द्वारा विधानसभा में रेखांकित सवाल उठाया गया, जिसके कारण यह माना गया कि राज्य में सिलिकोसिस बीमारी है और इसके रोकथाम के लिए उचित पहल किए जाने पर बल दिया गया। फिर वर्ष 2010 में विधायक बिनोद कुमार सिंह ने भी यह जानना चाहा, कि सिलिकोसिस बीमारी से ग्रसित या प्रभावित मरीज़ों और उनके परिजनों की सामाजिक सुरक्षा कैसे सुनिश्चित की जाएगी ? वर्ष 2012 में विधायक अरुप चटर्जी ने वर्णित दोनों मुद्दों पर सवाल उठाए। इस तरह से सिलिकोसिस मरीज़ों को न्याय व अधिकार दिलाने के लिए अभियान निरंता जारी है।
शशांक शेखर विगत 30 वर्षों से पत्रकारिता, आकाशवाणी व सामाजिक कार्यों से जुड़े हुए हैं साथ ही लघु/फीचर फिल्मों व वृत्त चित्रों के लिए कथा-लेखन का कार्य भी विगत डेढ़ दशकों से कर रहे हैं. मशाल न्यूज़ में पिछले लगभग ढाई वर्षों से कार्यरत हैं.
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