ओमिक्रोन के देश में अब तक 1892 मामले
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के ताजा आंकड़ों के अनुसार ओमिक्रोन के देश में अब तक 1892 मामले सामने आ चुके हैं, जिनमें से 766 लोग ठीक हो गए हैं। अब तक सबसे ज्यादा 568 केस महाराष्ट्र से सामने आए हैं और इसके बाद 382 मामले दिल्ली में दर्ज किए गए हैं। भारत के राष्ट्रव्यापी टीकाकरण अभियान के तहत अब तक कुल 146.70 करोड़ टीके की खुराक दी जा चुकी हैं।
ओमिक्रोन से भले ही खतरा कम हो, लेकिन यह बहुत तेजी से फैलता है
यशोदा हास्पिटल के एमडी पीएन अरोड़ा का कहना है कि ओमिक्रोन वैरिएंट लंबे समय तक गले में ठहरता है। इसके चलते वह तेजी से फैलता है, इसलिए यह संक्रमण के मामले में डेल्टा वैरिएंट की तुलना में तीन गुना तेजी से फैलता है। उन्होंने कहा कि अगर हम सचेत नहीं रहे तो यह वायरस बहुत तेजी से लोगों को अपनी गिरफ्त में ले सकता है। इससे भले ही खतरा कम हो, लेकिन यह बहुत तेजी से फैलेगा। डा अरोड़ा ने कहा कि यह फेफड़ों में अपनी कापी बहुत तेजी से नहीं बना पाता, इसलिए मरीज गंभीर स्थिति में नहीं पहुंचता है। उन्होंने कहा कि यही कारण है कि वैरिएंट बहुत तेजी से फैलता है, लेकिन डेल्टा वैरिएंट की तरह शरीर को बहुत तेजी से छोड़ भी देता है।
दुनिया भर के लोग ओमिक्रोन से इतने आतंकित क्यों ?
भारत में ओमिक्रोन की दस्तक 2 दिसंबर में हुई थी। एक हफ्ते में देश में कोरोना संक्रमण की दर लगभग तीन गुना बढ़ गई है। उन्होंने कहा कि वायरस के गंभीर लक्षण भले ही कम हों, लेकिन मरीजों की ज्यादा संख्या सबके लिए खतरे की घंटी है। अनुमान के अनुसार तीसरी लहर की पीक के दौरान 40-60 हजार मरीजों को अस्पताल में भर्ती करने की जरूरत पड़ सकती है। यह देश के हेल्थ इन्फ्रास्ट्रक्चर के लिए एक नई चुनौती पैदा कर सकता है। सरकार की भी यही चिंता है।
सरकार का टीकाकरण पर जोर
टीकाकरण ने ओमिक्रोन के संक्रमण को गंभीर होने से रोकने में कारगर भूमिका निभाई है। ओमिक्रोन के संक्रमण से शरीर में बनी एंटीबाडी डेल्टा और पिछले अन्य वैरिएंट के खतरे से बचाती है। यह भी अच्छा संकेत है। संक्रमण के बहुत कम मामले ही गंभीर हो रहे हैं।
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जीनोम सीक्वेंसिंग के कारण ओमिक्रोन की जांच प्रक्रिया थोड़ी जटिल
डा. अरोड़ा ने कहा कि सरकारी आंकड़ों में फिलहाल ओमिक्रोन के कम मामले आ रहे हैं, लेकिन संक्रमितों की संख्या बढ़ सकती है। चूंकि वैरिएंट का पता लगाने के लिए जीनोम सीक्वेंसिंग करनी होती है और भारत में इसके लिए लैब कम हैं। इस वजह से जांच भी कम हो रही है और आंकड़े भी कम आ रहे हैं।
शशांक शेखर विगत 30 वर्षों से पत्रकारिता, आकाशवाणी व सामाजिक कार्यों से जुड़े हुए हैं साथ ही लघु/फीचर फिल्मों व वृत्त चित्रों के लिए कथा-लेखन का कार्य भी विगत डेढ़ दशकों से कर रहे हैं. मशाल न्यूज़ में पिछले लगभग ढाई वर्षों से कार्यरत हैं.
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