छठ पूजा है सो सियासी अर्ध्य देने के लिए हर नेता, हर पार्टी वोट की गंगा में डुबकी लगा रही है।एक से एक दावे हैं लेकिन त्यौहार के लिए बिहार आ रहे लोगों की हालत देख सब साफ हो जाता है।स्टेशनों पर मंजर देखकर कोविड के समय मजदूरों की पैदल यात्रा की दुश्वारियां याद आ जाती हैं।दिल्ली में स्टेशनों पर हालात भयावह नजर आए।जो इमरजेंसी खिड़की आपातकाल के समय ट्रेन से निकलने के काम आती है, बिहार जाने के लिए लोग छठ के इस आपातकाल काल में उससे घुस रहे हैं।
कोई सिरों की सवारी कर दरवाजे तक पहुंचने की कोशिश कर रहा है, कोई पुलिस की लाठी खा रहा है।किसी का बच्चा खो गया तो किसी की ट्रेन छूट गई।और ये हाल सिर्फ जनरल बोगी का नहीं है।मेरे ही एक सहयोगी को बिहार जाना था।साथ में दो बच्चे और पत्नी थीं।सेकंड एसी में टिकट था।समय से एक घंटा पहले स्टेशन भी पहुंचे लेकिन ट्रेन नहीं पकड़ पाए।ये हाल है स्टेशनों का।ये हाल तब है कि जब रेलवे ने इस बार पहले से ज्यादा करीब 250 ट्रेनों की व्यवस्था की है।
ये ट्रेनें 2500 से ज्यादा फेरे लगा रही हैं।लेकिन जाहिर है इंतजाम नाकाफी साबित हो रहे हैं।कोई कह सकता है कि सरकार और क्या कर सकती है।इतनी ट्रेनें चला तो दीं।लेकिन ये भोज के समय कोहड़ा रोपने जैसा है।हकीकत ये है कि बिहार से जाने और आने वाली ट्रेनों की जनरल बोगियों में आम दिनों में भी इतनी भीड़ होती है कि इनमें सफर करना खतरों का खिलाड़ी बनने जैसा है।भीड़ इतनी होती है कि लोग वॉशरूम तक में बैठ जाते हैं।
ट्रेन में चढ़ने के समय कोई गिरता है, कोई जख्मी होता है।बोगी के अंदर न पानी, न शौचालय।महिलाओं की क्या हालत होती है, पूछिए ही मत।छठ में तो बस छठी मइया का नाम लेते हैं और सवार हो जाते हैं बिहार के लोग।जरा उनका भी दुख देखिए।जो लोग छठ पूजा के लिए घर नहीं पहुंच पाए वो दिल्ली के घाटों पर छठ पूजा करेंगे।गंदी और जहरीली यमुना में डूबकी लगाएंगे।बीमार पड़ेंगे और लेटे-लेटे अपने गांव की साफ नदी-पोखर को याद करेंगे।
रेलवे की तरह दिल्ली सरकार और वहां के एलजी भी तमाम दावे कर रहे हैं कि दिल्ली में छठ पूजा के लिए अलौकिक इंतजाम किया गया है।लेकिन बीजेपी और आम आदमी पार्टी दोनों एक दूसरी की पोल खोल रहे हैं।लेकिन स्टेशन से लेकर यमुना के किनारों तक और कोविड के समय रिवर्स पलायन के पीछे मूल समस्या एक ही है। बिहार झारखंड से इतनी ज्यादा संख्या में लोग पलायन को मजबूर हैं कि इतने लोगों के लिए न तो छठ में ट्रेनों के इंतजामात हो सकते हैं और न ही आम दिनों में।
जैसे जहरीली यमुना में बिहार के लोग छठ पूजा करते हैं वैसे ही दिल्ली की जहरीली हवा में तंग कमरों में जीने को मजबूर हैं।अगर छठी मइया के इन श्रद्धालुओं की तकलीफ घटानी है तो पलायन घटाना होगा।उन्हें अपने गांव अपने कस्बे, अपने शहर में रोजगार देना होगा।यकीन मानिए अपने सुंदर साफ गांव और अपने मां-बाप के पांव को छोड़ कोई गंदे-तंग शहरों में नहीं जाना चाहता है।छठ पूजा के अवसर पर वोट की गंगा में डूबकी लगाने के लिए तमाम पार्टियां दावे और वादे करती हैं लेकिन अगर वो ईमानदार हैं तो छठी मइया के इन बच्चों की खैर साल भर लेनी होगी, सिर्फ छठ पर सियासी अर्ध्य देने से काम नहीं चलेगा।
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