काली पूजा कार्तिक मास में खास तौर पर बंगाल, उड़ीसा एवं असम में मनाया जाता है। यह पूजा कार्तिक मास की अमावस्या जिसे दीपनिता अमावस्या भी कहते हैं उस दिन की जाती है। काली पूजा को श्यामा पूजा भी कहते हैं। बंगाली परंपरा के अनुसार दिवाली को काली पूजा भी कहा जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार इस दिन मां काली 64,000 योगिनियों के साथ प्रकट हुई थीं और रक्तबीज जैसे राक्षसों और दुष्टों का संहार किया था। ऐसा माना जाता है कि आधी रात को मां काली की विधिवत पूजा करने से मनुष्य के जीवन की सारी दुख और पीड़ाएं शांत हो जाती है।
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समिति की ओर से भूमि पूजन हुआ
मां काली की पूजा करने से घर में सुख, शांति और समृद्धि आती है। जमशेदपुर में हर जगह काली पूजा की तैयारी चल रही है. कदमा के मिलन समिति मैदान में टाइगर क्लब की ओर से काली पूजा की तैयारी शुरू हो गई है। शुक्रवार को समिति की ओर से भूमि पूजन हुआ। इसके बाद वहां पंडाल का निर्माण शुरू होगा। आयोजन को सफल बनाने में क्लब के अध्यक्ष मनोज भगत, अंकित दुबे, आलोक, मुन्ना, राजू मल्लिक, अरविंद महतो, संजीत सिंह, नितेश, विशाल सिंह, नीरज सिंह, रितिक, आयुष, अविनाश, निखिल दुबे जुटे हुए हैं। राक्षसों का नाश करने के लिए मां दुर्गा ने काली रूप में अवतार लिया। इसलिए माना जाता है कि मां काली की पूजा करने से जीवन के सभी कष्ट, पीड़ाओं और शत्रुओं का नाश हो जाता है।
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