‘श्रुति’ के तत्वावधान में आयोजित इस कार्यक्रम का लाइव प्रसारण you tube पर भी हुआ
इस वर्चुअल कार्यक्रम में 70-75 साथी जुड़े
संविधान और सवैधानिक मूल्यों पर अपनी समझ बनाने के लिए आज 25 जनवरी को सामाजिक संगठन श्रुति द्वारा एक ऑनलाइन वक्तव्य पर आधारित एक ट्रेनिंग कार्यक्रम का आयोजन किया गया, जिसमें कई वरिष्ठ सामजिक व मानवाधिकार कार्यकर्त्ता, विधि विशेषज्ञ शामिल हुए. इसमें मुख्य वक्ता के तौर पर महाराष्ट्र रायगढ़ के ‘सर्वहारा जन आन्दोलन’ की उल्का महाजन, राजस्थान झालावाड़ के ‘हम किसान संगठन’ के देवेन्द्र उपाध्याय, झारखण्ड कोल्हान से ‘जनमुक्ति संघर्ष वाहिनी’ के अरविन्द अंजुम और मध्य प्रदेश बड़वानी के ‘आधारशिला शिक्षण केन्द्र’ के अमित भटनागर शामिल थे. इस वर्चुअल कार्यक्रम में देश भर से लगभग 70-75 संगठनों के साथी जुड़े.
‘कष्टकरी जनआंदोलन’ के साथी विलास भोंगाड़े भी जुड़े इस कार्यक्रम में
इस कार्यक्रम में महाराष्ट्र नागपुर के कष्टकरी जनआंदोलन के साथी विलास भोंगाड़े भी जुड़े. वे पिछले दो दशकों से श्रुति के साथ जुड़े हुए हैं। विलास भाऊ 90 के दशक से ही आदिवासी और दलितों के बीच रहकर प्राकृतिक संसाधनों पर उनके अधिकारों के लिए लगातार संघर्षरत रहे हैं। संगठन को शुरू करने में उन्होंने प्रमुख भूमिका निभाई है। आदिवासी और दलितों के अधिकारों के साथ साथ कंस्ट्रक्शन वर्कर्स, छोटे-छोटे घरेलू उद्योगों में काम करने वाले लोग, डोमेस्टिक वर्कर्स, और खेतिहर मजदूरों के सवालों पर भी वह काम कर रहे हैं। साथ ही वह समाजिक परिवर्तन शाला, मराठी को चलाने में भी अहम भूमिका निभाते हैं।
संविधान पर एक अच्छी समझ बनाने की आज बहुत ज्यादा ज़रुरत
कार्यक्रम में संविधान की महत्ता, प्रासंगिकता और वर्त्तमान समय में इसकी सार्थकता पर विस्तृत चर्चा हुई. इस पर एक अच्छी समझ बनाने की आज बहुत ज्यादा ज़रुरत है, इस पर सभी ने बल दिया. भारतीय गणतंत्र में रह रहे हर नागरिक के साथ भारतीय संविधान का एक अनूठा रिश्ता है. पूरे ताने-बाने को एक ओर तो कई लोग आज तक जान ही नहीं पाए, वहीं कई लोगों और समुदायों ने इससे प्रेरणा लेकर अनेक जन-संघर्षों में हिस्सा लिया. संविधान को एक मुश्किल विषय जानकर कई लोग इसके अनेक अनुच्छेदों और तकनीकों में उलझ जाते हैं, तो कई लोगों ने अपनी ज़िन्दगी के घोर संकट में संविधान को रौशनी की एक किरण की तरह पाया। बिल्कुल ही ज़रूरी है कि इसे हमारी ज़िन्दगी, हमारे मुद्दे और हमारी ज़रूरतों के सन्दर्भ में समझा जाए.
क्या संविधान सचमुच खतरे में है ?
कुछ स्कूल, कॉलेज और प्रतियोगी परीक्षाओं में तो हमें इसके बारे में पढना होता है – पर क्या इसके बाहर भी आम लोगों के लिए संविधान का कोई मतलब है? अगर हमारा संविधान ही नहीं होता, तो हमारे देश और समाज की व्यवस्था फिर क्या होती? क्या संविधान सच में खतरे में है? क्या हम लोग अपने संविधान से परिचित हैं? क्या आज के समय में हक़, समता और समानता सिर्फ एक शब्द या मूल्य बन कर रह गए हैं या अभी भी ‘हम भारत के लोग’ इन मूल्यों को सार्थक बना सकते हैं?
पिछले कुछ सालों में हुई है संविधान के आधारभूत मूल्यों की उपेक्षा
पिछले कुछ सालों में हमने देश की सरकारों को समता, समाजवाद, न्याय और पंथ निरपेक्षता जैसे संविधान के आधारभूत मूल्यों की उपेक्षा करते देखा है, लेकिन साथ ही हमने यह भी देखा है कि इसी समय में संविधान और इसके मूल्यों के प्रति समर्पण और इन्हें बचाए रखने के सामूहिक प्रयास भी बढ़ें हैं. देश भर में अनेक सामाजिक आन्दोलनों ने इनमें अपनी सक्रिय भूमिका निभाई है और लोगों के बीच अनेक मुद्दों के माध्यम से बराबरी, बंधुत्व और स्वतंत्रता के मायने समझाने के प्रयास किये हैं. इस सिलसिले को निरंतरता के साथ मजबूती से आगे बढ़ाने का उत्तरदायित्व सामाजिक सरोकार रखने वाले सक्रिय वर्ग का है.
संविधान की महत्ता पर कई संगठन के साथियों ने गाये गीत
इस गणतन्त्र दिवस के मौके पर हमारे ‘डगर संविधान की ‘ सीरीज और ट्रेनिंग कार्यक्रम के पहले अंक तमाम वक्ताओं द्वारा कही गई बातों का यही सार रहा. वक्ताओं को सुनने और चर्चा के बाद सांस्कृतिक कार्यक्रम में जन-गीतों और कविताओं की भी प्रस्तुति दी गई. इस क्रम में मध्य प्रदेश बड़वानी के आधारशिला शिक्षण केन्द्र के बच्चों ने संविधान के मूल्यों की महत्ता को रेखांकित करता हुआ एक सामूहिक गीत प्रस्तुत किया. अवध पीपुल्स फोरम के साथियों में एक जोशीला और प्रेरक समूह गीत प्रस्तुत कर सबका मन मोह लिया. ओडिशा के साथी लोचन बरुआ ने ओड़िया भाषा में संविधान की विवेचना करता गीत गाया. कार्यक्रम का संचालन श्रुति के सौरभ, मोहन और एलिन ने किया.
शशांक शेखर विगत 30 वर्षों से पत्रकारिता, आकाशवाणी व सामाजिक कार्यों से जुड़े हुए हैं साथ ही लघु/फीचर फिल्मों व वृत्त चित्रों के लिए कथा-लेखन का कार्य भी विगत डेढ़ दशकों से कर रहे हैं. मशाल न्यूज़ में पिछले लगभग ढाई वर्षों से कार्यरत हैं.
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