करम परब का प्रत्यक्ष संबंध कृषि और प्रकृति से
झारखंड के आदिवासियों का जीवन मूल रूप से प्रकृति और कृषि पर आधारित है. यहां का सदियों से कृषक समुदाय लोक पर्वों और लोकगीतों के ज़रिए अपने भावों को अभिव्यक्त करता आ रहा है. करम परब का प्रत्यक्ष संबंध कृषि और प्रकृति से है. करम परब अपने भाइयों की सुख समृद्धि के लिए बहनें करती हैं.करम परब आदिवासी और गैर आदिवासी, सभी निष्ठा से मनाते हैं.
यह परब भादो महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाया जाता है. खरीफ फसल की बुआई-रोपाई का काम संपन्न हो जाता है, तो लोग अच्छी फसल की कामना करते हुए नाच-गाकर उत्सव मनाते हैं.
करम और धरम नामक दो भाइयों की कथा है प्रचलित
करम परब में पाहन कथा के दौरान करम और धरम नामक दो भाइयों की कहानी सुनाते हैं. करम को धर्म और धार्मिक विधानों पर विश्वास नहीं था, जबकि इसका छोट भाई धरम को धर्म-कर्म में काफी भरोसा था. छोटे भाई धरम की तरक्की देख बड़े भाई को इर्ष्या होती है और वह छोटे भाई को बर्बाद करने का षडयंत्र रचता रहता था. लेकिन उसे कभी सफलता नहीं मिलती और अंततः वह अपनी गलती स्वीकार कर लेता है और दोनों भाई मिलजुल कर रहने लगते हैं.
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इस परब में करम की डाली को ही करम देवता का प्रतीक स्वरुप माना जाता है
हालांकि अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग कथा प्रचलित है. करम परब में व्रत अपने भाइयों के दीर्घायु और समृद्धि की के लिए बहनें करती हैं.झारखंड के कुछ जनजातीय इलाकों में करम का त्योहार आश्विन महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को जितिया के मौके मनाया जाता है.
भादो एकादशी के दिन बहनें दिन भर निर्जला उपवास करती हैं और रात को करम डाली की पूजा कर भाइयों और गांव के लोगों के बीच प्रसाद और जावा का वितरण करती हैं, फिर उसके बाद ही अन्न-जल ग्रहण करती हैं. इस परब में करम की डाली को ही करम देवता का प्रतीक स्वरुप माना जाता है.
जावा
एकादशी की पूजा से सात दिन पहले बच्चियां, युवतियां और महिलाएं सात प्रकार के अनाजों को अपने घर में पत्ते या मिट्टी के बर्तन में बालू डालकर उगाती हैं. हर दिन स्नान आदि से पवित्र होकर सात दिनों तक उसमें जल देती हैं, इसे ही जावा कहा जाता है.
करम डाली की पूजा के बाद गांव के महिला-पुरुष रात भर ढोल-मांदर की थाप पर नाचते-गाते हैं और सुबह सूर्योदय से पहले नदी, तालाब या जलाशय में करम डाली का विसर्जन कर दिया जाता है.
शशांक शेखर विगत 30 वर्षों से पत्रकारिता, आकाशवाणी व सामाजिक कार्यों से जुड़े हुए हैं साथ ही लघु/फीचर फिल्मों व वृत्त चित्रों के लिए कथा-लेखन का कार्य भी विगत डेढ़ दशकों से कर रहे हैं. मशाल न्यूज़ में पिछले लगभग ढाई वर्षों से कार्यरत हैं.
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