करम परब की महत्ता
झारखंड में कुड़मि समुदायों के पुरखों का क्रमिक विकास शिकारी अवस्था से हुआ
छोटानागपुर पठार, जिसका भौगोलिक क्षेत्र बृहद झारखंड के नाम से प्रचलित है. यही वो इलाका है, जहां कुड़मि समुदायों के पुरखों का क्रमिक विकास शिकारी अवस्था से होते हुए कृषि सभ्यता का विकास किया और अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिए नेग, नेगचार व परब तिहार के नेग (नियम) बनाये और पूरे साल में अपने प्रचलन में आनेवाले ’13 मासे 13 परब’ के नेग (नियम) भी बनाये थे.
तो चलिए, आज हम अपने पुरखों के करम परब के बारे जानते हैं कि क्यों और कैसे करम परब की शुरुआत हुई है. तो जान लें करम परब कृषि सभ्यता से ही जुड़ा हुआ परब है. अतः कुड़मियों के लिए करम परब विशेष महत्व रखता है, क्योंकि कुड़मियों का मुख्य पेशा खेती ही रहा है जो आगे चलकर करम परब को कृषि सभ्यता की स्मृति व पुरखों की स्मृति के रुप में मनाया जाने लगा और निरंतर आज भी जारी है, ताकि आनेवाली पीढ़ियां अपने पुरखों की कृषि सभ्यता व पुरखों की स्मृति विस्मृत न हो पाये.
खेतों में फसल लगने अथवा कांसि फुल फुटने के बाद ही…
याद रहे ये करम परब छोटानागपुर पठार बने चारि (गड़ा, बाइद, कानारि व बहिआरि) खेतों में फसल लगने अथवा कांसि फुल फुटने के बाद ही कुड़मि समुदाय की युवतियां करम परब मनाने के लिए उत्सुक होती है और एक निश्चित दिन तय कर सभी कुंवारी युवतियां सामुहिक रुप से किसी पोखइर में जाती है. साथ में डाला,टुपा,बालु और और कम से कम चार प्रकार के दलहन बीज व चार प्रकार के अनाजों के बीज को पोखरों में विधिवत नहाते हैं और उक्त आठों प्रकार के बीजों को डाला टुपा में उचित मात्रा में बालू डालकर बीजों को बुनते हैं तत्पश्चात एक बार पोखइर घाट पर ही सभी युवतियां करम डाली के चारो ओर घुमते हुए करम गीत गाती हैं और फिर उसे उठाकर अपने सामुहिक करम आखड़ा पर लाकर रखती हैं.
पूरे आठ दिनों तक सुबह-शाम करम आखड़ा पर सभी युवतियां नित्य करम गीत गाती हैं
वहां पर भी सभी युवतियां करम गीत गाती हैं. इसके बाद करम डाला टुपा को गांव के महतो (खुंटकटि बुढ़ा) के घर पर नियमपूर्वक रखती हैं. उसके बाद सभी युवतियां अपने अपने घर को जाती हैं. इस तरह से पूरे आठ दिनों तक सुबह-शाम करम आखड़ा पर सभी युवतियां नित्य करम गीत गाती हैं और अपने पुरखों व कृषि सभ्यता की स्मृति में करम गीत के माध्यम से प्राकृतिक पानि देनेवाली गोरिआ कुदरा बहिसिनि पानिमाञ जो कि दक्षिण पुर्व दिशा दिशा से आनेवाली वर्षा की प्राकृतिक पानि है जो अनाजों को दुध की शक्ति प्रदान करती, उसी गोरिआ कुदरा बहिसिनि पानिमाञ की प्राकृतिक पानि देवती को आठवें दिन की सांझ सभी युवतियां नहा धोकर नये नये पारंपरिक कपड़े पहने गांव के सभी आखड़ा पर जाकर गीत गाती हैं.
गांव के खुंटकटि बुढ़ा करम डाली को करम गाछ से निवेदन कर एक करम डाली लाते हैं
उधर गांव के खुंटकटि बुढ़ा करम डाली को करम गाछ से निवेदन कर एक करम डाली लाते हैं और करम आखड़ा पर नेग नियम से गाड़ते है और सभी करमति बहनें करम डाली पर निवेदन करती हैं, ‘हे गोरिआ कुदरा बहिसिनि पानिमाञ देउअइति, जिस तरह से हमारी फसलों को अपने पानि की माध्यम से प्राकृतिक दुध की वर्षा से अनाजों को पोषित किये, वैसे ही हम भी पूरे आठ दिनों अविवाहिता होकर भी एक मां की तरह नेग नियम पालन करती हुई करम डाली का पालन किया, ताकि हमारे साथ भी ऐसे ही दया दिखाना, जिस तरह अनाजों को दया की वर्षा से हृष्ट-पुष्ट किया, वैसे ही जब हमें भी जल्दी ही मां बनने का सौभाग्य मिले, ताकि ससुराल में जाकर जितिआ डाइर पूजा करने का भी सौभाग्य मिले.
इस तरह से नेहर विनति करती हुआ पूजा करती हैं और रात भर जागती हैं और नवें दिन सबेरे करम डाली को उसे उसी पोखइर में जाकर अर्पन व समापन करती हैं और घर पर आकर घर के दिआरा में तीनखुंट (दादी नाना नानी) का सेंउरन करती हैं और घर के भीतर कुल पुरखा का सेंउरन कर करम परब का समापन करती हैं
चारखुंट नेगचार
Karam Mahotsav 2023 | Karam Puja in Jharkhand | Mashal News
शशांक शेखर विगत 30 वर्षों से पत्रकारिता, आकाशवाणी व सामाजिक कार्यों से जुड़े हुए हैं साथ ही लघु/फीचर फिल्मों व वृत्त चित्रों के लिए कथा-लेखन का कार्य भी विगत डेढ़ दशकों से कर रहे हैं. मशाल न्यूज़ में पिछले लगभग ढाई वर्षों से कार्यरत हैं.
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