Jamshedpur : मकर संक्रांति के दूसरे दिन मंगलवार को नए साल के पहले दिन आदिवासी समाज ने आखाइन जातरा मनाया। अखंड जातरा में चिड़ीदाग नामक परंपरा भी निभाई गई। इसमें 21 दिन के नवजात बच्चे से लेकर बड़े बच्चों को गर्म सीकचे से दागा गया। मानता है कि ऐसा करने से बच्चा मजबूत बनता है और उसे पेट संबंधी कोई बीमारी नहीं होती। चिड़ीदाग की परंपरा परसूडीह और करनडीह समेत विभिन्न इलाकों में मनाई गई। ग्रामीण इलाकों की चिड़ीदाग को अंजाम दिया गया। महिलाएं बच्चों को गोद लेकर पुरोहित के घरों में पहुंची।
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आंगन में लकड़ी की आग में पुरोहित ने पतली तांबे के सीकचे को गर्म कर तपाया और फिर उससे बच्चों को दागा गया। बताते हैं कि बच्चों के गांव का पता पूछने के बाद ध्यान लगाकर पुरोहित पूजा करता है। फिर जमीन पर सरसों का तेल डालकर उसमें सीकचा टच करने के बाद बच्चों के पेट के नाभि के चारों तरफ तेल लगाकर तप रहे तांबे के सीकचे से दागा जाता है। पुरोहित बताते हैं कि यह उनकी पुरानी परंपरा है। इसे आज भी निभाया जाता है। उनका कहना है चिड़ीदाग से नस का इलाज होता है। पेट दर्द ठीक हो जाता है।
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