श्रीनगर स्थित बड़ी जामिया मस्जिद इस इलाके की पहचान है। बड़े प्रवेश द्वार और विशाल और आलीशान बुर्ज वाली इस मस्जिद में करीब 30 से 33 हजार लोग एकसाथ नमाज पढ़ सकते हैं। इतना ही नहीं, खास मौकों पर तो हजारों-हजार मुस्लिम मस्जिद के पास की गलियों और सड़कों पर भी नमाज पढ़ते हैं।
आखिर क्या वजह है?
कश्मीर से जुड़े विवाद के बीच यह मस्जिद भारत की सत्ता को चुनौती देने वाले विरोध प्रदर्शनों और संघर्षों का एक बड़ा केंद्र है। कश्मीरी मुसलमान जुमे की नमाज के लिए इस मस्जिद को बेहद पवित्र मानते हैं। साथ ही, उनके लिए यह वैसी जगह भी है, जहां वे अपने राजनैतिक अधिकारों के लिए आवाज उठा सकते हैं. ‘मेरी जिंदगी में कोई कमी है’ इस कड़वे विवाद के बीच श्रीनगर स्थित यह मस्जिद पिछले दो साल से ज्यादातर बंद ही है। इस दौरान मस्जिद के मुख्य इमाम तकरीबन लगातार ही अपने घर में बंद रखे गए हैं। मस्जिद के मुख्य दरवाजे पर ताला लटका है जो शुक्रवार को टिन की चादरों से इसे ब्लॉक कर दिया जाता है।
क्या कहना है अधिकारियों का?
अधिकारियों ने इस मुद्दे पर बयान दिया था। उनका कहना था कि मस्जिद की प्रबंधन समिति परिसर के भीतर होने वाले भारत विरोधी प्रदर्शनों को रोकने में नाकाम रही थी।इसीलिए सरकार को मस्जिद बंद करनी पड़ी थी। 2019 में सरकार ने कश्मीर को मिला अर्ध स्वायत्त दर्जा छीन लिया था। इसी सख्त रवैये के बीच 600 साल पुरानी जामिया मस्जिद की तालाबंदी हुई है। पिछले दो साल के दौरान सुरक्षा कारणों और कोरोना महामारी के चलते महीनों बंद रहे इस इलाके की कुछ अन्य मस्जिदों और दरगाहों को धार्मिक आयोजनों की इजाजत दी गई है।
धार्मिक स्वतंत्रता भी भारतीय संविधान का हिस्सा है
धार्मिक स्वतंत्रता भारतीय संविधान के मूल अवयवों में शामिल है।यह अपने नागरिकों को धार्मिक विश्वास की आजादी देती है। संविधान का यह भी कहना है कि सरकार धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं करेगी। लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि कश्मीर की सबसे ज्यादा पूज्य मानी जाने वाली मस्जिद पर अपनाई जा रही कठोर नीति ने इस डर को और भी बढ़ाया है।
‘इतनी वीरान नहीं दिखी थी मस्जिद’
कवि और लोक इतिहासकार जारिफ अहमद ने बताया, “जामिया मस्जिद कश्मीरी मुसलमानों की आस्था का केंद्र है। करीब छह सदी पहले इसकी बुनियाद रखी गई थी।तब से अब तक यह सामाजिक और राजनैतिक अधिकारों की हमारी मांगों के केंद्र में रहा है। इसे बंद किया जाना हमारी आस्था पर हमला है” अहमद भी इस मस्जिद में नमाज पढ़ने आते हैं।
अहमद ने बताया कि उन्होंने इस मस्जिद को इतने लंबे समय तक बंद नहीं देखा था और न ही मस्जिद कभी इतनी वीरान दिखी थी।
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