एलियंस (Aliens) को लेकर कौतूहल इंसान में कभी कम नहीं रहा. इससे आम लोगों के साथ वैज्ञानिक तक नहीं बच सके. पृथ्वी पर एलियंस को देखे जाने की घटनाओं पर कई तरह के प्रजोक्ट चले हैं. लेकिन कम लोग जानते हैं कि पृथ्वी से बाहर ब्रह्माण्ड (Universe) में एलियंस की खोज के लिए विधिवत प्रयास किए गए हैं.
इसमें सबसे पहले प्रोजोक्ट ओज्मा (Project Ozma) की शुरुआत हुई थी. इस प्रोजोक्ट को बाह्यजीवन की तलाश का पहला व्यवस्थित और वैज्ञानिक प्रयास माना जाता है. इस प्रोजेक्ट को आशातीत सफलता तो नहीं मिली. लेकिन एलियंस की तलाश के प्रयास उसके बाद भी जारी रहे.
कैसे शुरू हुआ खोज का काम
अमेरिका की कॉर्नेल यूनिवर्सिटी के खगोलविदों ने छह दशक पहले फ्रैंक ड्रेक ने एलियन्स के अध्ययन के लिए अध्ययन की शुरुआत की जिसके तहत ब्रह्माण्ड में एशियन्स की तलाश की जा सके. अपनी टीम की अगुआई करने वाले डार्के ने प्रोजेक्ट ओज्मा के लिए नेशनल रेडियो एस्ट्रोनॉमी ऑबजर्वेटरी में 85 फुट का टेलीस्कोप शुरू किया.
बुद्धिमान जीवन की तलाश
यह पृथ्वी के बाहर बुद्धिमान जीवन की तलाश का पहला प्रयास था. इसे काफी महत्वाकांक्षी माना जा रहा था. लेकिन इस पहले प्रयास में शोधकर्ताओं को निराशा हाथ लगी क्योंकि उन्हें पृथ्वी के बाहर जीवन के होने के किसी भी तरह के संकेत नहीं मिले. पृथ्वी के बाहर बुद्धिमान और विकसित अंतरतारकीय सभ्यताओं की खोज के वैज्ञानिक प्रयास के तहत हुए अध्ययनों में विद्युतचुंबकीय स्पैक्ट्रम में वैज्ञानिक रेडियो और प्रकाशकीय संकेतों की पड़ताल की जाती है.
क्या किया जाता है इन संकेतों का
पृथ्वी से बाहर से आने वाले इन संकेतों के स्वरूपों का विश्लेषण का जाता है जिससे यह तय किया जा सके कि क्या ये संकेत जानबूझ कर या फिर गलती से भी एलियंस या बाहरी बुद्धिमान प्राणियों द्वारा भेजे गए हैं. सेटी अध्ययन अधिकांश ऐसे लक्ष्यों की खोज पर केंद्रित होते हैं जो ऐसे तारों के आसपास से आते हैं जो हमारे सूर्य की तरह हों.
दो तारों के संकेतों का अध्ययन
प्रोजेक्ट ओज्मा की शुरुआत 1960 में हुई जब पहला SETI अध्ययन किया गया था. इसमें दूसरे तारों के तंत्रों से आने वाले अंतरतारकीय रेडियों संकेतों का अध्ययन करने का प्रयास किया गया . ड्रेक की अगुआई में खगोलविदों ने एप्सिलोन इरिदानी और टाउ सेटी नाम के तारों के जोड़े को लक्षित किया. ये दोनों ही तारे पृथ्वी से 11 प्रकाशवर्ष की दूरी पर थे और सूर्य जैसे ही थे.
लंबे अवलोकन पर भी नहीं मिले संकेत
वैज्ञानिकों का लगता था कि इन दोनों तंत्र में ग्रह चक्कर लगा रहे होंगे. अध्ययन के लिए खगोलविदों ने छह घंटे वाले आकाश का अवलोकन किया और पृथ्वी की ओर आने वाले रेडियो संकेतों को पकड़ने का प्रयास किया. चार महीने के इस प्रोजेक्ट में 150 घंटों का अवलोकन किया गया. लेकिन वैज्ञानिकों को किसी भी तरह के रेडियो संकेत नहीं मिले. और प्रोजेक्ट रोक दिया गया.
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