दुनिया की सबसे बड़ी सरकारी स्वास्थ्य बीमा योजना समस्याओं से घिरी हुई है। महामारी ने इसके इंप्लीमेंटेशन में कमियों और इसके प्रति संदेह को अधिक स्पष्ट कर दिया है।
कोविड-19 महामारी की मार से बचाने में आयुष्मान कार्ड की विफलता अपेक्षित थी। क्योंकि स्वास्थ्य राज्य का विषय है और राज्य सरकारों द्वारा पीएमजेएवाई को इंप्लीमेंट किया जाता है, इसलिए कई राज्यों ने कोविड-19 रोगियों को राहत पहुंचाने में देरी की।
कई राज्य की अधिसूचना में देरी और अस्पष्टता
मध्य प्रदेश ने औपचारिक रूप से 7 मई 2021 के अंत तक इस योजना के तहत कोविड-19 उपचार को शामिल किया। इस समय दूसरी लहर चरम पर थी। इसी तरह की चूक तेलंगाना में भी हुई। राज्य कीअधिसूचना में देरी और अस्पष्टता के चलते निजी अस्पतालों ने योजना के तहत मरीजों को भर्ती करने से परहेज किया।
यही कारण है कि इस योजना के तहत लगभग 90 प्रतिशत कोविड-19 रोगी चार राज्यों में भर्ती हुए। इन राज्यों में महामारी की शुरुआत से योजना पर अमल किया। 3 दिसंबर 2021 तक के आंकड़े बताते हैं कि पीएमजेएवाई के तहत लगभग 5.20 लाख लोगों ने अपना इलाज कराया।
किन राज्यों में आयुष्मान कार्ड के तहत हुआ इलाज
आयुष्मान कार्ड के तहत सबसे अधिक कर्नाटक में 1.30 लाख कोविड-19 रोगियों का इलाज किया। इसके बाद आंध्र प्रदेश में 1.20 लाख, महाराष्ट्र में 1 लाख और केरल में 70 हजार कोविड मरीजों ने इस योजना का लाभ लिया। उत्तर प्रदेश में 6 दिसंबर 2021 तक 17 लाख मामले सामने आए, लेकिन केवल 909 रोगी ही पीएमजेएवाई के तहत अस्पताल में भर्ती हुए। बिहार में जब मरीजों की संख्या 7.20 लाख थी, उस समय तक पीएमजेएवाई के तहत अस्पताल में भर्ती होने वालों की संख्या केवल 17 थी।
निजी अस्पतालों के खिलाफ काफी शिकायतें
उत्तर प्रदेश में पीएमजेएवाई के एक जिला शिकायत प्रबंधक ये कहते हैं कि उन्हें निजी अस्पतालों के खिलाफ काफी शिकायतें मिलती हैं।“कई शिकायतें दर्ज नहीं हो पाती हैं क्योंकि लोग नहीं जानते कि उन्हें कैसे दर्ज करना है।” निजी अस्पताल पीएमजेएवाई के तहत मरीजों का इलाज करने से इसलिए भी बचते हैं क्योंकि इससे फायदा नहीं होता। उदाहरण के लिए वह बताते हैं कि निजी अस्पताल आमतौर पर हड्डी फ्रैक्चर के इलाज के लिए 12,000 रुपए लेते हैं, लेकिन पीएमजेएवाई के तहत उन्हें केवल 4,000 रुपए ही मिलते हैं।
निजी क्षेत्र के प्रति सरकार में भरोसे की कमी
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) के मानद महासचिव आरवी अशोकन कहते हैं कि निजी क्षेत्र के प्रति सरकार में भरोसे की कमी भी है। उनका कहना है, “योजना के तहत कम से कम 300 सर्जरी और इलाज केवल सरकारी अस्पतालों में ही किया जा सकता है। निजी अस्पतालों को सूची से बाहर रखने के क्या मतलब हैं?” वह आगे बताते हैं कि पीएमजेएवाई एक बड़ी असफलता है और इसका जमीन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा है।
मूल उद्देश्य मुफ्त कैशलेश इलाज बताया गया था
जन स्वास्थ्य अभियान की संयुक्त संयोजक सुलक्षणा नंदी कहती हैं कि पीएमजेएवाई को शुरू करते समय इसका मूल उद्देश्य मुफ्त कैशलेश इलाज बताया गया था लेकिन यह मुफ्त कैशलेश इलाज कम, मरीजों को मिलने वाली छूट अधिक है। नंदी कहती हैं कि योजना के तहत लोगों का जेब से खर्च कम नहीं हुआ है, क्योंकि निजी अस्पताल मुख्य रूप से शहरी क्षेत्रों में हैं और इसका उपयोग करने वाले ज्यादातर लोग ग्रामीण या उपनगरीय क्षेत्रों से हैं।
वह बताती हैं कि केंद्रीय स्वास्थ्य बजट के आवंटन के दौरान हमने देखा है कि सरकार रोग नियंत्रण और बाल स्वास्थ्य जैसे कार्यक्रमों की कीमत पर पीएमजेएवाई को प्राथमिकता दे रही है। इससे भी बुरी बात यह है कि पीएमजेएवाई के बजट का 75-80 फीसदी हिस्सा निजी अस्पतालों में चला जाता है। पैसा आसानी से सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में लगाया जा सकता था जिससे उनकी सेवाओं में सुधार होता। उनका कहना है कि सार्वजनिक क्षेत्र ही है जो मुख्य रूप से कोविड-19 रोगियों की देखभाल कर रहा है।
अगली कड़ी में जानेंगे: आयुष्मान कार्ड का सच: कोविड-19 की दूसरी लहर में निजी बीमा कंपनियों ने की मनमानी
पहली कड़ी : आयुष्मान कार्ड का सच : बीमा का आश्वासन एक सबसे बड़ा भ्रम
दूसरी कड़ी : आयुष्मान कार्ड का सच : कैसे अस्पतालों से लौटा दिए जाते हैं कार्डधारक
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