नोवेल कोरोनावायरस ने केवल हमारी दुनिया में ही उथलपुथल नहीं मचाई है बल्कि इसने हमें खुद को, दुनिया को और यहां तक कि हमारी नीतियों को भी देखने की एक दृष्टि प्रदान की है। इसलिए जब दो शोध संस्थानों पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया (पीएचएफआई) और अमेरिका की ड्यूक ग्लोबल हेल्थ इंस्टीट्यूट ने खुलासा किया कि भारत की प्रमुख स्वास्थ्य बीमा योजना सर्वाधिक जरूरत के वक्त नाकाम हो गई तो आश्चर्य नहीं हुआ। यह सरकार द्वारा पूर्णत: वित्त पोषित दुनिया की सबसे बड़ी बीमा योजना भी मानी जाती है।
इन शोध संस्थानों की ओर से इस साल जुलाई में जारी रिपोर्ट से पता चला है कि 2018 में देश की 40 प्रतिशत निर्धनतम आबादी को 5 लाख के बीमा कवरेज के वादे के साथ शुरू की गई प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (पीएमजेएवाई) ने अप्रैल 2020 से जून 2021 के बीच कोविड-19 के उपचार के लिए अस्पतालों में भर्ती केवल 14.25 प्रतिशत लोगों को ही मदद पहुंचाई।
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क्या कहना है केंद्रीय स्वास्थ और परिवार कल्याण मंत्री का
केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री मनसुख मंडाविया ने 3 दिसंबर को लोकसभा में पूछे गए एक प्रश्न के उत्तर में स्वीकार किया कि देशभर में पीएमजेएवाई के तहत कोविड के उपचार के लिए अस्पतालों में भर्ती केवल 0.52 मिलियन (5.20 लाख) मामलों का ही भुगतान किया गया। हालांकि देश में कुल कोविड-19 भर्ती का कोई आधिकारिक आंकड़ा उपलब्ध नहीं है। लेकिन देशभर में योजना के 165 मिलियन लाभार्थियों के दावे को देखते हुए 0.52 मिलियन का आंकड़ा नगण्य है।
एक रिपोर्ट के मुताबिक
“हेल्थ इंश्योरेंस फॉर इंडियाज मिसिंग मिडिल” नामक इस रिपोर्ट में कहा गया कि देश की 70 प्रतिशत आबादी किसी न किसी स्वास्थ्य बीमा के दायरे में है। इनमें राज्य सरकार की योजनाएं, सामाजिक बीमा योजनाएं और निजी बीमा शामिल है। रिपोर्ट के अनुसार, 30 प्रतिशत अथवा 400 मिलियन (40 करोड़) लोग बीमा से वंचित हैं। इन्हें “मिसिंग मिडिल” कहा गया है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में स्वास्थ्य पर होने वाला जेब खर्च (आउट ऑफ पॉकेट) 63 प्रतिशत है, जो दुनिया में सबसे अधिक है। इससे भारत की 7 प्रतिशत से अधिक आबादी हर साल गरीबी रेखा से नीचे पहुंच जाती है। रिपोर्ट में इस खर्च को कम करने और स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार के लिए स्वास्थ्य बीमा प्रदान करने की सिफारिश की गई है।
नकदी अब भी जरूरी
अस्पताल भर्ती करने के लिए नकदी मांग रहे हैं। वे ऐसे दस्तावेज पर हस्ताक्षर कराते हैं जिसमें लिखा होता है कि आईसीयू में भर्ती के लिए पीएमजेएवाई प्रभावी नहीं होगा।
कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर के दौरान जब जमशेदपुर के किशोर(काल्पनिक नाम) संक्रमण की चपेट में आए, तब सुनीता देवी (काल्पनिक नाम)उन्हें लेकर 15 दिनों तक चार अलग-अलग अस्पतालों चक्कर काटती रहीं। वह कहती हैं कि पहले निजी अस्पताल ने अवैध तरीके से सुरक्षा राशि के रूप में 20 हजार रुपए नकद जमा करने को कहा। अगले दिन अस्पताल ने सुनीता देवी को सूचित किया कि किशोर का ऑक्सीजन की आपूर्ति बहुत कम है, इसलिए रोगी को दूसरे अस्पताल में शिफ्ट करना पड़ेगा।
दूसरे निजी अस्पताल ने भी भर्ती के समय 20,000 रुपए और दो दिन बाद 30,000 रुपए की मांग की। ऐसा न करने पर उन्होंने किशोर को वापस ले जाने की धमकी दी।
सुनीता देवी बताती हैं, “हम पहले ही सरकारी अस्पतालों में अपनी किस्मत आजमा चुके थे, लेकिन वहां जगह नहीं थी, इसलिए हमने स्वयंसेवकों के एक व्हाट्सएप समूह से मदद मांगी और इसके बाद उन्हें चौथे अस्पताल ले गया, जहां किशोर को आईसीयू में भर्ती किया गया। अस्पताल ने भर्ती के लिए शर्त रखी कि वह किशोर के इलाज में आयुष्मान कार्ड का उपयोग नहीं करेगा।अपनी शर्त मनवाने के लिए उसने हस्ताक्षर भी करवाए। कुछ दिन बाद दिल का दौरा पड़ने से किशोर का निधन हो गया।”
आयुष्मान कार्ड के किए गए वादे खोखले
यह हाल तब है जब योजना की वेबसाइट में कहा गया है, “पीएमजेएवाई का मुख्य उद्देश्य वंचित आबादी को गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य देखभाल प्रदान करना और स्वास्थ्य पर होने वाले जेब खर्च को कम करना है।” फिर भी 15 दिनों में सुनीता देवी ने अपने पति को खो दिया और लगभग 5 लाख रुपए इलाज पर खर्च करने पड़े। इलाज में खर्च हुआ अधिकांश पैसा गैर-संस्थागत द्वारा कर्ज पर था। सुनीता देवी अब अपने तीन बच्चों के पालन पोषण और कर्ज चुकाने के लिए संघर्ष कर रही हैं।
कल की कड़ी में पढिए कि अस्पताल में बीमा धारको के साथ क्या होता है ?
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