एससी/एसटी एक्ट के तहत दुष्कर्म में दोषी ठहराए जाने के बाद एक व्यक्ति कई सालों से आगरा की जेल में बंद था। इन सालों के दौरान उसके माता-पिता और दो भाइयों की मौत भी हो गई लेकिन उसे उनके अंतिम संस्कार में शामिल होने की इजाज़त नहीं दी गई। बुधवार को हाईकोर्ट की एक बेंच ने उसको आरोपों से बरी कर दिया।
कौन है ये व्यक्ति और क्या है पूरा मामला
यह व्यक्ति ललितपुर जिले का एक निवासी है। इसका नाम विष्णु तिवारी है। जिस पर एक दलित महिला ने सितंबर 2000 में दुष्कर्म करने का आरोप लगाया था। उस वक्त विष्णु की उम्र 23 साल थी। पुलिस ने विष्णु तिवारी पर आईपीसी की धारा 376, 506 और एससी/एससी एक्ट की धारा 3 (1) (7), 3 (2) (5) के तहत मामला दर्ज किया था।
हुई थी आजीवन कारावास की सजा
मामले की जांच तत्कालीन नरहट सर्कल अधिकारी अखिलेश नारायण सिंह ने की थी और इसके बाद सेशन कोर्ट ने विष्णु को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। विष्णु को फिर आगरा जेल में स्थानांतरित कर दिया गया जहां वह इतने सालों से बंद है। 2005 में विष्णु ने हाईकोर्ट में इस फैसले के खिलाफ अपील की लेकिन 16 साल तक मामले पर सुनवाई नहीं हो सकी।
गलत तरीके से दोषी ठहराया गया
राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरण ने वकील श्वेता सिंह राणा को उनका बचाव पक्ष का वकील नियुक्त किया।28 जनवरी 2021 को हाईकोर्ट के जस्टिस कौशल जयेंद्र ठाकर और जस्टिस गौतम चौधरी ने अपने आदेश में कहा, “तथ्यों और सबूतों को देखते हुए हमारा मानना है कि अभियुक्त को गलत तरीके से दोषी ठहराया गया था, इसलिए ट्रायल कोर्ट के फैसले को पलटते हुए आरोपी को बरी कर दिया गया है.”
विष्णु के भतीजे सत्येंद्र ने संवाददाताओं से कहा, “मेरे चाचा को इस तरह गलत दोषी ठहराए जाने ने हमारे पूरे परिवार को आर्थिक और सामाजिक रूप से तोड़ दिया। सदमे और सामाजिक कलंक के कारण मैंने अपने पिता, चाचा और दादा-दादी को खो दिया। इस केस को लड़ने में परिवार को जमीन का एक बड़ा हिस्सा बेचना पड़ा।मेरे चाचा को अपनी जिंदगी के सबसे बेहतरीन साल बिना गलती के जेल में बिताने पड़े। उनकी तो पूरी जिंदगी ही बर्बाद हो गई।”
एक ही जुर्म के लिए 14 साल जेल में काटने के बाद दोबारा मिली 3 साल की सजा
अहमदाबाद के दीपक कुमार के साथ भारतीय कानून व्यवस्था ने कुछ ऐसा ही किया है। 66 वर्षीय दीपक कुमार पंजाब नैशनल बैंक की नवरंगपुरा ब्रांच के पूर्व मैनेजर हैं, जिन पर 25 लाख के लोन स्कैम का दोष साबित हुआ और इसके लिए उन्होंने 14 साल जेल में काट भी लिए। शुक्रवार को स्पेशल CBI कोर्ट ने दीपक को फिर से इस क्राइम के लिए ही 3 साल कैद की सजा सुना दी।
ट्रायल में देरी की वजह से कोहली ने 2013 में हाई कोर्ट में बेल की अर्जी दी और उन्हें बाकी बचे हुए मामलों में प्रति केस 5 हजार रुपये के मुचलके पर जमानत मिल गई। मुचलका भरने के बाद भी कोहली जेल से बाहर नहीं आ सके क्योंकि पुलिस ने 6 मामलों में चार्जशीट ही फाइल नहीं की थी और दस्तावेज न मिलने की वजह से उनकी रिहाई अटक गई।
41 साल बाद बेल पर रिहा हुआ नेपाली नागरिक
इसी महीने कलकत्ता हाई कोर्ट ने एक नेपाली नागरिक को 41 साल बाद बेल पर रिहा कर दिया। कोर्ट ने कहा कि वो मानसिक रूप से इतना दुरुस्त नहीं है कि वो हत्या कर सके जिसका आरोप उस पर मढ़ा गया है। मार्च 2020 में सूरत की एक अदालत ने 127 लोगों को प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (SIMI) का सदस्य होने के आरोप से मुक्त कर दिया। ये सभी 20 साल बाद रिहा हो सके।
अब्दुल गनी की दर्दनाक दास्तां
सुरैया गोनी से बेहतर भला इसे कौन समझ सकता है? उसके भाई अब्दुल गोनी को 1996 में दिल्ली के लाजपत नगर और समलेती बम धमाके का आरोपी बनाया गया। उनका परिवार जम्मू-कश्मीर के डोडा जिला स्थित भद्रवाह का रहने वाला है। अब्दुल 23 साल तक जेल में रहा और उसकी रिहाई 2019 में हुई। उसकी बहन सुरैया कहती है कि उसे भाई से मिलने कैसे अनगिनत बार जेल का दौरा करना पड़ा। परिवार ने जमीन बेच दी, फिर भी कानूनी लड़ाई का खर्च पूरा नहीं हो सका और कर्ज लेना पड़ा। इसी बीच माता-पिता की मौत हो गई। अपनी जवानी जेल में बिताने के बाद अब्दुल अब हाइपरटेंशन से पीड़ित है और उसकी नजर भी कमजोर पड़ गई है। अब उनकी उम्र 59 साल की हो गई है। वो सब्जी की दुकान चलाते हैं और इसी वर्ष जनवरी में उन्होंने शादी भी है।
कैसे हो सुधार?
बहुत विचार किए बिना गिरफ्तारी, गरीबी, जांच में देरी, पर्याप्त कानूनी मदद और जागरुकता का अभाव, ये सभी कारण मिलकर विचाराधीन कैदियों की जिंदगी का बड़ा हिस्सा जेल में कट जाता है। कॉमनवेल्थ ह्यूमन राइट्स इनिशिएटिव की मधुरिमा धनकर कहती हैं, “प्रतिवादी (आरोपी) को कानून दोषी साबित होने तक निर्दोष समझा जाता है, लेकिन इस दौरान उसे जेल में मनोवैज्ञानिक और शारीरिक प्रातड़ना से गुजरना पड़ता है, शायद दोषी साबित होने के बाद की प्रताड़ना से भी ज्यादा।” इस संस्था का कहना है कि ट्रायल से पहले गिरफ्तारी के मामले तभी घट सकते हैं जब इसके खिलाफ सुरक्षा के पूरे बंदोबस्त हों, अदालती कार्रवाइयों की निगरानी बढ़ाई जाए, कैदियों के मुकदमों का समय-समय पर पुनरीक्षण किया जाए और उन्हें बेहतर कानूनी मदद मुहैया कराई जाए।
अगली कड़ी में पढ़िए : देश में जेलें घटीं पर कैदी बढ़े, हर 10 में से 7 बंदी हैं अंडरट्रायल
पहली कड़ी यहाँ पढ़े : न्याय का इंतजार कर रहे हैं भारत के 70 प्रतिशत कैदी
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