नीतीश सरकार द्वारा बिहार में शराबबंदी सफल नहीं हुई तो इसकी ज़िम्मेवारी उनके ऊपर इसलिए बनती है क्योंकि चाहे नालंदा में उनकी पार्टी के नेताओं की गिरफ़्तारी का मामला रहा हो या उनके मंत्रिमंडल सहयोगी रामसूरत राय के भाई के विद्यालय से शराब की ज़ब्ती का, सुशासन बाबू की कथनी और करनी में उन जगहों पर फ़र्क साफ दिखता रहा।
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आइए जानते है “सुशासन बाबू” कहे जाने वाले नीतीश कुमार के बारे
बिहार के मुख्य मंत्री नीतीश कुमार इन दिनों समाज सुधार अभियान पर बिहार के ज़िला मुख्यालयों में प्रमंडलवार समीक्षा कर रहे हैं। कोरोना काल में ये समाज सुधार अभियान उनके साढ़े पाँच वर्ष पूर्व शराबबंदी के फैसले की असफलता के कारण उन्हें शुरू करना पड़ा है।इस बात में कोई बहस नहीं कि नीतीश ना केवल बिहार की सता पर 16 वर्षों से काबिज हैं बल्कि राज्य में सबसे लंबे समय तक मुख्य मंत्री बने रहने का रिकॉर्ड भी उनके नाम हो गया है।
वो उन कुछ अपवादस्वरूप मुख्यमंत्रियों में से एक हैं, जिन्होंने सता में बने रहकर ना तो भ्रष्ट तरीके अपनाए और ना ही व्यक्तिगत तौर पर संपति अर्जित की, बल्कि वो इस प्रवृति से कोसों दूर रहे। यहां तक कि नीतीश कुमार ने अपने परिवार के किसी व्यक्ति को पार्टी या सत्ता के नज़दीक भटकने भी नहीं दिया जो आज कल की राजनीति में एक बिरला उदाहरण हो सकता है।
प्रतिष्ठा का प्रश्न बना उपहास का कारण
2021 में नीतीश के प्रदर्शन को आप देखेंगे तो निराशा हाथ लगेगी। जिस शराबबंदी को उन्होंने प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाया हुआ है, वो आज उनके सुशासन का सार्वजनिक तरीके से उपहास उड़ाता है। अब तो लोग मजाक में कहते हैं कि एक तरफ शराब की खाली बोतल हो और एक तरफ बम तो बिहार पुलिस बोतल की जाँच पहले शुरू करेगी, भले ही बम विस्फोट हो जाए और कुछ लोगों की जान ही क्यों ना चली जाय?
बिहार के शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों में शराब की खपत महाराष्ट्र से अधिक
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस), 2020 की रिपोर्ट के अनुसार ड्राई स्टेट होने के बावजूद बिहार में महाराष्ट्र से ज्यादा लोग शराब पी रहे हैं। आंकड़े बताते हैं कि बिहार में 15.5 प्रतिशत पुरुष शराब का सेवन करते है। महाराष्ट्र में शराब प्रतिबंधित नहीं है लेकिन शराब पीने वाले पुरुषों की तादाद 13.9 फीसदी ही है। अगर शहर और गांव के परिप्रेक्ष्य में देखें तो बिहार के ग्रामीण क्षेत्रों में 15.8 प्रतिशत और शहरी इलाकों में 14 फीसदी लोग शराब पीते हैं।
इसी तरह महाराष्ट्र के शहरी क्षेत्र में 13 प्रतिशत और ग्रामीण इलाकों में 14.7 फीसदी आबादी शराब का सेवन करती है। महिलाओं के मामले में बिहार के शहरी इलाके की 0.5 प्रतिशत व ग्रामीण क्षेत्रों की 0.4 फीसदी महिलाएं शराब पीती हैं।महाराष्ट्र के लिए यह आंकड़ा शहरी इलाके में 0.3 प्रतिशत और ग्रामीणों में 0.5 फीसदी है।शराबबंदी के बावजूद बिहार में शराब उपलब्ध है. यह बात दीगर है कि लोगों को दो या तीन गुनी कीमत चुकानी पड़ती है चाहे शराब देशी हो या विदेशी।
शराब के सिंडीकेट को तोड़ने में सरकार असफल
कानून लागू होने के बाद कुछ दिनों बाद तक तो सब ठीक रहा. सख्त सजा के प्रावधान के कारण ऐसा लगा कि वाकई लोगों ने शराब से तौबा कर ली. इसका सबसे ज्यादा फायदा निचले तबके के लोगों को मिला. परिवारों में खुशियां लौटीं. हालांकि समय के साथ धीरे-धीरे शराब शहर क्या, दूरदराज के इलाकों तक पहुंचने लगी. आज आम धारणा यह है कि यह हर जगह सुलभ है. हां, इतना जरूर है कि कीमत दो या तीन गुनी हो गई है.
बिहार में झारखंड, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश एवं नेपाल से शराब की बड़ी खेप तस्करी कर लाई जाती है। हालात यह है कि पुलिस और मद्य निषेध विभाग की टीम यहां हर घंटे औसतन 1341 लीटर शराब जब्त कर रही है, मिनट के हिसाब से आंकड़ा 22 लीटर प्रति मिनट आता है।
क्या बताते है आंकड़े
आंकड़े बताते हैं कि राज्य में इस साल करीब एक करोड़ लीटर से अधिक अवैध देशी और विदेशी शराब पकड़ी जा चुकी है। मुजफ्फरपुर, वैशाली, गोपालगंज, पटना, पूर्वी चपारण, रोहतास और सारण वाले इलाकों में शराब की अधिकतम बरामदगी हुई है। जाहिर है, इतना बड़ा खेल संगठित होकर ही किया जा रहा है. हालांकि ऐसा नहीं है कि बिहार सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी है। चेकपोस्ट की संख्या दोगुनी की जा रही है तथा धंधेबाजों को पकडऩे के लिए शराब के पुराने और बड़े 87 डीलरों को रडार पर रखा गया है।
चूहे पी गए शराब
इस अवैध कारोबार के फलने फूलने में पुलिस भी पीछे नहीं है। इसका पता तब चला जब साल 2018 में कैमूर में जब्त कर रखे गए 11 हजार बोतल शराब के बारे में पुलिस ने अदालत को बताया कि चूहों ने शराब की बोतलें खराब कर दीं।एक अन्य घटना में पुलिस ने नौ हजार लीटर शराब खत्म होने का दोष चूहों के मत्थे मढ़ दिया।
विपक्षी दलों ने किया था खूब हंगामा
विपक्षी दलों ने यह कहकर खूब हंगामा किया था कि अब तो चूहे भी शराब पीने लगे हैं। मुजफ्फरपुर का तो एक पूरा थाना ही शराब की बिक्री के आरोप में निलंबित कर दिया गया। पुलिसकर्मियों द्वारा शराब की बिक्री करने से संबंधित वीडियो भी आए दिन खूब वायरल हुए। शराबबंदी कानून की आड़ में पुलिस पर लोगों को उत्पीडि़त करने के आरोप भी खूब लगे।यह बात दीगर है कि आला अधिकारी समेत पूरा महकमा इस बात की शपथ लेता है कि शराब के सेवन या उससे संबंधित किसी भी तरह की गतिविधि में शामिल नहीं होगा और कानून को लागू करने के लिए विधि सम्मत कार्रवाई करेगा।
क्या कहना है एएन सिन्हा इंस्टीच्यूट ऑफ सोशल साइंस के प्रोफेसर का
प्रोफेसर डी.एन.दिवाकर कहते हैं, ‘‘इस कानून को गलत तरीके से लागू किया गया।अब तक शराब के कैरियर्स ही पकड़े गए, सप्लायर्स पुलिस की पकड़ से बाहर हैं। जिस तरह से शराब की बरामदगी हो रही है उससे तो यही लगता है कि शराबबंदी असफल रही है।” वहीं अधिवक्ता एम एन तिवारी का कहना है, ‘‘इसे लागू करने का असली मकसद तो समाज सुधार का था। इस कानून के लागू होने के बाद से घरेलू हिंसा कम हुई है, दुर्घटनाओं में भी कमी आई है। निचले तबके के परिवार का जीवन सुखमय हुआ है।पैसा घरों में जाने लगा है. सरकार को इसे और सख्ती से लागू करना चाहिए, ताकि जो लोग इसके अवैध कारोबार में संलिप्त हैं उन्हे कड़ी से कड़ी सजा मिल सके.।”
अवैध कारोबार ने समानांतर अर्थव्यवस्था कायम कर ली
बेगूसराय की एक शराब दुकान में काम करने वाले संजय की बात से इसे समझा जा सकता है। वह कहते हैं, ‘‘अब मेरी आर्थिक स्थिति ठीक हो गई है। मैं एक हफ्ते में किसी भी ब्रांड की 50 बोतलें बेचता हूं और एक बोतल पर 300 रुपये की कमाई करता हूं।इस तरह महीने में 60000 रुपये की आमदनी हो जाती है. दुकान पर मिलने वाले वेतन से यह काफी ज्यादा है। सरकार ने शराबबंदी कर दी लेकिन यह नहीं सोचा कि बेरोजगार होने वाले लोग क्या कमाएंगे-खाएंगे। इसलिए रिस्क लेना पड़ता है।”
शराबबंदी खत्म करने की मांग
पिछले चुनाव में शराबबंदी खत्म करने की मांग तो नहीं उठी।हां, इस कानून की समीक्षा करने की बात महागठबंधन में शामिल कांग्रेस ने जरूर कही।पार्टी का कहना था कि महागठबंधन की सरकार बनी तो इस कानून की समीक्षा की जाएगी। जानकार बताते हैं कि नीतीश कुमार को कांग्रेस के इस स्टैंड का फायदा ही मिला। महिलाओं को लगा कि शराबबंदी कहीं खत्म ना हो जाएl इसलिए अपने पारिवारिक अमन-चैन की खातिर उन्होंने एकबार नीतीश कुमार के पक्ष में जमकर मतदान किया। वैसे तेजस्वी यादव भी बराबर कहते रहे हैं कि बिहार में शराब की होम डिलीवरी हो रही है। इस धंधे में ना केवल माफिया बल्कि पुलिस-प्रशासन तथा कुछ राजनेता भी शामिल हैंl पैसे के लोभ में नए उम्र के लडक़े-लड़कियां पढ़ाई-लिखाई छोडक़र शराब की होम डिलीवरी में लग गए हैं।
बिहार के पूर्व पुलिस महानिदेशक अभयानंद कहते हैं
यह सच है कि किसी कानून को चंद खामियों के चलते बदला नहीं जा सकता।तात्कालिक परिणामों के बदले उसके दूरगामी प्रभावों को देखना ज्यादा हितकारी होता है। हां, यह अवश्य ही देखा जाना चाहिए कि वे कौन हैं जो कानून को ठेंगा दिखा रहे हैं। उन्होंने ये भी कहा कि शराबबंदी की नाकामी में पैसे की बड़ी भूमिका है।चंद लोग बहुत अमीर बन गए हैं। जो लोग पकड़े जा रहे, वे बहुत छोटे लोग हैं। असली धंधेबाज या फिर उन्हें मदद करने वाले ना तो पकड़ में आ रहे और ना ही उन पर किसी की नजर है। जाहिर है, जब तक असली गुनाहगार पकड़े नहीं जाएंगे तबतक राज्य में शराबबंदी कानून की धज्जियां उड़ती ही रहेंगीं।
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