“उस समय को याद कीजिए जब एक तार में लाइन से चिड़ियां बैठती थीं, घरों में पक्षियों के घोसलें दिखते थे, जब पक्षियों का झुंड एक साथ उड़ता था, चील के उड़ने पर बरसात का अंदाजा लगाया जाता था।
अब यह सब न के बराबर है और इन सबके खत्म होने का कारण है प्रदूषण, चाहे वो वायु हो, जल हो या फिर ध्वनि।”
क्या कहना है पक्षी विशेषज्ञों का
पक्षी विशेषज्ञ और भारतीय पशु अनुसंधान संस्थान (आईवीआरआई) में पूर्व संयुक्त निदेशक डॉ रिशेंद्र वर्मा अपने अनुभवों को साझा करते हुए बताते है कि “जैसे इंसानों को प्रदूषण के कारण सांस लेने में दिक्कत होती है उससे कहीं ज्यादा पक्षियों को सांस लेने में दिक्कत होती है क्योंकि पक्षियों की श्वसन प्रक्रिया इंसानों की अपेक्षा कई गुना ज्यादा होती है। प्रदूषण के कण उनके अंदर पहुंचते हैं जो भविष्य में उनकी मौत का कारण बनते हैं।”
दिल्ली का इंडिया गेट है बड़ा उधारण
एक समय ऐसा था जब इंडिया गेट के सामने कबूतरों की संख्या काफी संख्या होती थी जो धीरे-धीरे कम हो रही है।
नॉर्थ अमेरिका ब्रीडिंग बर्ड सर्वे के मुताबिक
पिछले 50 वर्षों में गौरैयों की संख्या 82 प्रतिशत तक कम हो चुकी है। शहरों में बढ़ता हुआ प्रदूषण गौरैयों के जीवन के लिए सबसे बड़ा संकट है।
विश्व के सभी देशों में पर्यावरण प्रदूषण एक बड़ा मुद्दा
पृथ्वी पर संतुलन बनाने के लिए जीव-जंतु, पेड़-पौधें, जल और इंसानों आदि का एक संतुलित संख्या में होना बेहद जरूरी है। इन सभी के संतुलन से ही पृथ्वी पर जीवनचक्र बना रहता है लेकिन बढ़ते प्रदूषण से हम जो सांस लेते हैं, खाना खाते हैं, पानी पीते हैं, उन सभी में किसी न किसी प्रकार से प्रदूषण के कण हमारे अंदर तो आते ही हैं। इसके साथ ही पशु-पक्षियों का भी अस्तित्व संकट में है।
पेस्टीसाइड के इस्तेमाल से पक्षियों का पारम्परिक आहार कीड़े मकोड़े हो रहे खत्म
पक्षियों को आहार न मिलने पर वह विस्थापन करते हैं, आहार की कमी उनकी मौत की वजह बनती है।” कई बार ये पक्षी जहां विस्थापित होकर जाते हैं वहां भी लगभग वहीं हालात होते हैं, लगातार होने वाली ये प्रक्रिया उनकी संख्या घटने का कारण बनती है।
प्रवासी पक्षियों की संख्या मेंक मी
सर्दियां शुरू होने से पहले हजारों किलोमीटर का सफर तय करके भारत में प्रवासी पक्षी अपना डेरा जमाते हैं लेकिन जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण और सर्दियों में तापमान ज्यादा न गिरने के चलते इन प्रवासी पक्षियों की संख्या में कमी बेहद चिंताजनक है।
जल प्रदूषण भी एक बड़ी वजह
जल प्रदूषण के कारण पानी में ऑक्सीजन की मात्रा कम हो जाती है, जिससे मछलियां मर जाती हैं। पक्षियों का आहार मछलियां हैं जब वो उनको पानी में नहीं मिलती हैं तो उनको भोजन के लिए अन्य क्षेत्रों में जाना पड़ता है, जिससे प्राकृतिक संतुलन बिगड़ रहा है।
ध्वनि प्रदूषण से पक्षियों की प्रजनन क्षमता पर असर
पक्षियों को जल और वायु प्रदूषण से तो खतरा है ही इसके साथ ध्वनि प्रदूषण से उनकी प्रजनन क्षमता पर असर पड़ रहा है। जर्मनी के मैक्स प्लैँक इंस्टीट्यूट फॉर ऑर्निथोलॉजी के शोधार्थियों ने जेब्रा फिंच नाम के पक्षी पर अध्ययन किया है। इस अध्ययन के मुताबिक पक्षियों के प्रजनन की शक्ति घट रही है और उनके व्यवहार में भी परिवर्तन देखा गया है। अध्ययन में दावा किया गया है कि शोर की वजह से पक्षियों के गाने-चहचहाने पर भी फर्क पड़ता है।
शोर के कारण कम्युनिकेशन में कमी
शोर के कारण वो आपस में कम्युनिकेट नहीं कर पाती है जिससे उनकी प्रजनन क्षमता पर असर पड़ता है। शांत वातावरण में प्रजनन करने वाले पक्षियों में ध्वनि प्रदूषण का असर पड़ता है। शोर की वजह से उनके हार्मोन में काफी उतार-चढ़ाव होता है।”
प्रदुषण एक प्रकार का धीमा जहर
प्रदूषण एक प्रकार का धीमा जहर है, जो हवा, पानी, धूल आदि के माध्यम से न केवल मनुष्य के शरीर में प्रवेश कर उसे अस्वस्थ बना देता है, बल्कि प्रकृति के चक्र में अहम वनस्पतियां गल रही हैं। इस धीमे जहर के चलते विश्व में पशु-पक्षियों की प्रजातियां विलुप्ति की कगार पर है।
Article by- Nishat Khatoon
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