
यह पुस्तक आदिवासी समुदायों की लुप्त होती जैव विविधता से जुड़ी कहानियों को समेटे हुए है
सुकिंदा, जाजपुर (ओडिशा), 22 मई 2025: अंतर्राष्ट्रीय जैव विविधता दिवस के अवसर पर टाटा स्टील फाउंडेशन (टीएसएफ) ने अपनी नवीनतम प्रकाशन “सॉन्ग्स ऑफ द फॉरेस्ट” का विमोचन किया। यह अनोखी पुस्तक देश की आदिवासी समुदायों से जुड़े समृद्ध जैव विविधता संबंधी लोककथाओं और पारंपरिक ज्ञान को संजोने और संरक्षित करने का कार्य करती है। इस पुस्तक का विमोचन गुरुवार को टाटा स्टील के सुकिंदा क्रोमाइट माइंस परिसर में आयोजित एक भव्य समारोह में किया गया।
सार्थक प्रयास
यह अनूठी पहल आदिवासी समुदायों की मौखिक परंपराओं, लोककथाओं और सांस्कृतिक कहानियों को संकलित कर उन्हें भविष्य के लिए संरक्षित रखने का एक सार्थक प्रयास है। इन्हीं दुर्लभ और समृद्ध विरासतों को बचाने की तात्कालिक आवश्यकता को समझते हुए टाटा स्टील फाउंडेशन ने एक व्यापक जनसंपर्क अभियान की शुरुआत की। इस अभियान के तहत संस्था ने अपने कार्यक्षेत्रों के विभिन्न क्षेत्रों में आदिवासी समुदायों के बुजुर्गों, लोककथाकारों और ज्ञान संरक्षकों से संवाद स्थापित कर इन अमूल्य कहानियों को एकत्रित किया।
यह पुस्तक केवल कहानियों का संग्रह नहीं है
पुस्तक का अनावरण करते हुए टाटा स्टील के फेरो एलॉयज़ एंड मिनरल्स डिवीजन के एक्जीक्यूटिव इंचार्ज पंकज सतीजा ने कहा,
“यह पुस्तक केवल कहानियों का संग्रह नहीं है—यह हमारी साझा विरासत, पारंपरिक ज्ञान और प्रकृति के प्रति आदिवासी समुदायों की गहन समझ को संजोने का प्रयास है। यह हमें उस दृष्टिकोण से परिचित कराती है, जहाँ मानव स्वयं को प्रकृति का स्वामी नहीं, बल्कि उसका सहयात्री मानता है। यह पुस्तक हमें प्रेरित करती है कि हम भी इस धरती के योग्य सहचर बनें और इस वर्ष की थीम – ‘प्रकृति के साथ समरसता और सतत विकास’ – की भावना को सशक्त रूप से प्रतिबिंबित करें।”
विशेष कहानी-सत्र
इस विचार की नींव वर्ष 2023 में टाटा स्टील द्वारा आयोजित अंतर्राष्ट्रीय जैव विविधता दिवस समारोह के दौरान रखी गई थी। उस अवसर पर कंपनी ने एक विशेष कहानी-सत्र का आयोजन किया था, जिसमें विभिन्न आयु वर्ग के प्रतिभागियों—बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक—ने भाग लिया। इस सत्र का उद्देश्य था जैव विविधता के महत्व को समझना, साझा अनुभवों के माध्यम से प्रकृति के साथ हमारे संबंधों को गहराई से जानना और पारंपरिक ज्ञान की विरासत की सराहना करना।
ये मौखिक परंपराएं केवल किस्से नहीं..
प्रसिद्ध पर्यावरणविदों, वैज्ञानिकों और संरक्षण विशेषज्ञों ने उस सत्र के दौरान ऐसे प्रेरणादायक अनुभव, कहानियाँ और संस्मरण साझा किए, जो जैव विविधता, पर्यावरणीय स्थिरता और मानव कल्याण के बीच गहरे और अविभाज्य संबंध को उजागर करते थे। इन भावनात्मक और ज्ञानवर्धक कथाओं ने यह एहसास कराया कि यह मौखिक परंपराएं केवल किस्से नहीं, बल्कि एक समृद्ध विरासत हैं—जिन्हें सहेजने की आवश्यकता है। इन्हीं विचारों और संवेदनाओं से प्रेरित होकर इन अमूल्य लोककथाओं, अनुभवों और पारंपरिक ज्ञान को स्थायी रूप में संरक्षित करने की दिशा में पहल की गई।
सांस्कृतिक तथा पारिस्थितिक ज्ञान का एक समृद्ध भंडार
कार्यक्रम में उपस्थित डॉ. अम्बिका प्रसाद नंदा, हेड – सीएसआर (ओडिशा), टाटा स्टील फाउंडेशन ने कहा, “यह पृथ्वी अनेक जीव प्रजातियों का साझा आवास है, और हमें उनके साथ सामंजस्यपूर्ण सह-अस्तित्व का भाव सीखना चाहिए। केवल मिलकर ही हम इस धरती को एक सुंदर और संतुलित स्थान बना सकते हैं।” ‘सॉन्ग्स ऑफ द फॉरेस्ट’ पुस्तक प्रिंट और डिजिटल दोनों प्रारूपों में उपलब्ध है और यह सांस्कृतिक तथा पारिस्थितिक ज्ञान का एक समृद्ध भंडार है।
यह पुस्तक आदिवासी समुदायों और प्रकृति के बीच गहरे सहजीवी संबंध को दर्शाती है। इसमें पारंपरिक संरक्षण पद्धतियों, स्थानीय वनस्पतियों और जीव-जंतुओं के साथ-साथ पर्यावरण के प्रति लोगों की आध्यात्मिक आस्था और जुड़ाव को भी बारीकी से प्रस्तुत किया गया है।
पर्यावरण संरक्षण और सांस्कृतिक धरोहर के संरक्षण के प्रति अपनी गहरी प्रतिबद्धता को दर्शाते हुए, टाटा स्टील फाउंडेशन ने अंतर्राष्ट्रीय जैव विविधता दिवस के अवसर पर एक विशेष कार्यक्रम आयोजित किया। इस कार्यक्रम में कई विशेषज्ञों ने हिस्सा लिया और जैव विविधता के महत्व पर विचार-विमर्श किया।
प्रमुख वक्ताओं में डॉ. अरुण कुमार मिश्रा, आईएफएस, सेवानिवृत्त मुख्य वन संरक्षक, ओडिशा सरकार; गायत्री देवी, पारिस्थितिकी शोधकर्ता, जीवविज्ञानी एवं ‘ग्रो विथ नेचर’ की संस्थापक; साथ ही डॉ. श्वेताश्री पुरोहित और डॉ. जयंत त्रिपाठी, यूनिट लीड, सुकिंदा-बमनीपाल शामिल थे। इन विशेषज्ञों ने अपने व्यापक अनुभव और शोध के माध्यम से जैव विविधता संरक्षण के क्षेत्र में चल रहे महत्वपूर्ण प्रयासों को साझा किया और श्रोताओं को इस संवेदनशील विषय पर जागरूक एवं प्रेरित किया।

शशांक शेखर विगत 30 वर्षों से पत्रकारिता, आकाशवाणी व सामाजिक कार्यों से जुड़े हुए हैं साथ ही लघु/फीचर फिल्मों व वृत्त चित्रों के लिए कथा-लेखन का कार्य भी विगत डेढ़ दशकों से कर रहे हैं. मशाल न्यूज़ में पिछले लगभग ढाई वर्षों से कार्यरत हैं.
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