किशोर कुमार का जन्मदिवस आज
किशोर दा 1958 बनी “चलती का नाम गाड़ी” फिल्म में अपने दोनों भाइयों के साथ दिखे थे
आज 4 अगस्त को बॉलीवुड के सदाबहार पार्श्वगायक, अभिनेता, संगीतकार और निर्माता-निर्देशक किशोर कुमार का 93वां जन्म दिन है. वर्ष 1929 को किशोर कुमार गांगुली का जन्म मध्य प्रदेश के खंडवा जिले में हुआ था. उनका असली नाम आभास कुमार गांगुली था. तीन भाइयों में वे सबसे छोटे थे. अशोक कुमार और अनूप कुमार दोनों क्रमशः बड़े और मंझले भाइयों के साथ किशोर दा 1958 बनी “चलती का नाम गाड़ी” फिल्म में दिखे थे. किशोर कुमार को उनके चाहने वाले किशोर दा भी कहा करते थे. मैं भी उनका प्रशंसक रहा हूं. कॉलेज के दिनों में उनके गाने गुनगुनाया करता था.
खैर, आगे बढ़ते हैं. किशोर दा के फिल्मी सफर की शुरुआत 1946 में हुई थी. उन्होंने अभिनय के क्षेत्र में पहले हाथ आज़माया, मगर प्रसिद्धि मिली संगीत से. किशोर दा के गानों ने कई अभिनेताओं को बुलंदी के शिखर पर पहुंचा दिया. देव आनंद से लेकर राजेश खन्ना, अमिताभ बच्चन तक कई अभिनेताओं के लिए किशोर दा ने अपनी आवाज़ दी है और वे गाने अमर हो गए. उनके गाने आज भी लोग गुनगुनाते हैं.
खंडवा में स्थित समाधि पर गीतों के ज़रिए लोग देते है उनको श्रद्धांजलि
किशोर दा को चाहने वाले लोग आज भी उनको याद करते हैं और खंडवा में स्थित समाधि पर जाकर दूध-जलेबी का भोग लगाकर उन्हें गीतों के ज़रिए श्रद्धांजलि देते है. न सिर्फ खंडवा, बल्कि देश भर में किशोर दा को लोग अपने-अपने तरीके से याद करते हैं. मध्य प्रदेश के उज्जैन जिले में एक प्रशंसक ने उनका मंदिर ही बना दिया है, जिसमें किशोर कुमार की मूर्ति स्थापित की गई है, जबकि इंदौर जिले में एक किशोर दा के एक प्रशंसक ने एक म्युजियम बनाया है. इस म्युजियम में उनके खास गानों और चीजों का संग्रह उपलब्ध है.
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“चलते-चलते मेरा यह गीत याद रखना, कभी अलविदा मत कहना.”
किशोर कुमार कामयाबी के शिखर पर पहुँचने के बावजूद जीवन भर अपने नाम के अनुरूप किशोर ही बने रहे. उनमें हमेशा चुलबुलापन देखा जा सकता था. उन्होंने कहीं से बाकायदा संगीत की शिक्षा नहीं ली थी, बावजूद इसके उन्होंने लम्बा अरसा बॉलीवुड में अपनी धाक जमाए रखी. किशोर दा की दिली ख्वाहिश खंडवा में ही बस जाने की थी, लेकिन खंडवा में आने के पहले ही 13 अक्टूबर 1987 को उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया. हालांकि साल 1976 में बनी फ़िल्म चलते चलते में उन्होंने गया था एक गीत, जो काफी मशहूर हुआ-“चलते-चलते मेरा यह गीत याद रखना, कभी अलविदा मत कहना.” उनकी आख़िरी इच्छा का सम्मान करते हुए उनके पार्थिव शरीर का खंडवा में ही अंतिम संस्कार किया गया.
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शशांक शेखर विगत 30 वर्षों से पत्रकारिता, आकाशवाणी व सामाजिक कार्यों से जुड़े हुए हैं साथ ही लघु/फीचर फिल्मों व वृत्त चित्रों के लिए कथा-लेखन का कार्य भी विगत डेढ़ दशकों से कर रहे हैं. मशाल न्यूज़ में पिछले लगभग ढाई वर्षों से कार्यरत हैं.
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