उत्तर प्रदेश मे जातीय समीकरण के आधार पर मंत्रिमंडल क्यों बनाया गया.
लखनऊ से वरिष्ठ पत्रकार हेमंत तिवारी के मुताबिक मंत्रिपरिषद में क़रीब 20 ओबीसी, 9 दलित, 7 ब्राह्मण, 6 राजपूत, 4 वैश्य, 2 भूमिहार, 1 कायस्थ, 1 सिख और 1 मुस्लिम समाज के नेता को जगह दी गई है.मंत्रिमंडल बनाते हुए कुछ चौंकाने वाले फैसले भी लिए गए हैं. डिप्टी सीएम और उत्तर प्रदेश में ब्राह्मण चेहरे के रूप में दिनेश शर्मा को मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किया गया है.
योगी मंत्रिपरिषद ने ओबीसी समाज का खास ध्यान रखा गया है.
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के मंत्रिपरिषद में दो उप-मुख्यमंत्रियों, 16 कैबिनेट मंत्रियों, 14 राज्य मंत्रियों और 20 राज्य मंत्रियों को शामिल किया गया है.योगी मंत्रिपरिषद ने ओबीसी समाज का खास ध्यान रखते हुए दलित, ब्राह्मण, राजपूत, बनिया, भूमिहार, कायस्थ, सिख और मुस्लिम समाज के नेता को भी जगह दी है. मंत्रिपरिषद में कुर्मी समाज को खासतौर पर तरजीह दी गई है.
कुर्मी समाज को मंत्रिमंडल में तरजीह देने पर वरिष्ठ पत्रकार बृजेश शुक्ल भी हेमंत तिवारी की बात से इत्तेफाक रखते हैं. वो कहते हैं, ”पार्टी हाईकमान को ये महसूस हो रहा था कि कुर्मी समाज नाराज़ है और 2024 के चुनाव में नुकसान हो सकता है इसलिए ये कोशिश की गई है.
मंत्रिमंडल में 9 दलित चेहरों को शामिल किया गया है और बेबी रानी मौर्य जाटव समाज से हैं.
आगरा ग्रामीण क्षेत्र से विधायक बेबी रानी मौर्य को भाजपा ने मंत्री पद की शपथ दिलाकर दलित और महिला दोनों को एक साथ साधने की कोशिश की गई है.उत्तर प्रदेश चुनाव में भाजपा को मायावती का अच्छा खासा वोट बैंक मिला है. इसका खास ध्यान रखते हुए मंत्रिमंडल में 9 दलित चेहरों को शामिल किया गया है और बेबी रानी मौर्य जाटव समाज से हैं उनके ज़रिए समाज को अपने साथ लाने की कोशिश की गई है.
दिनेश शर्मा की जगह ब्रजेश पाठक को डिप्टी सीएम बनाया गया है. खास बात है कि ब्राह्मण चेहरे की जगह ब्राह्मण चेहरे को लाया गया है. राजनीति के जानकार इसके पीछे ब्रजेश पाठक की राजनीति करने की शैली को वजह मानते हैं.दिनेश शर्मा बीजेपी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और गुजरात के प्रभारी रहे हैं. सिद्धार्थनाथ सिंह, श्रीकांत शर्मा बीजेपी के राष्ट्रीय सचिव रहे हैं और वहीं से यूपी की राजनीति में उतारे गए थे. राजनीति के जानकारों का मानना है कि दिनेश शर्मा, श्रीकांत शर्मा और सिद्धार्थनाथ सिंह जैसे नेताओं को संगठन में फिर से नई ज़िम्मेदारी दी जाएगी.
इस तरह योगी मंत्रिमंडल ने 2024 लोकसभा चुनाव के लिए जातीय समीकरण साधने की कोशिश की है. सवाल ये है की आखिर जातीय समीकरण के आधार पर पुरे देश में कब तक राजनीति की जायेगी .
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