झारखंड में नगर निकायों के चुनाव में अगर देरी होती है तो इसका आर्थिक नुकसान राज्य सरकार को उठाना पड़ सकता है. चुनाव कराने में देरी की वजह से झारखंड सरकार को 15वें वित्त आयोग की मदद से वंचित होना पड़ सकता है. बताया जा रहा है कि शहरी निकायों के विकास के लिए सरकार की तरफ से वित्त आयोग से 1600 करोड़ रुपये की मांग की गई थी, लेकिन अगर झारखंड में नगर निकाय चुनाव समय पर नहीं होते तो वित्त आयोग सरकार को दी जाने वाली सहायता पर रोक लगा सकता है.
3 साल से लंबित हैं 13 नगर निकायों के चुनाव
आपको बता दें कि झारखंड में 13 नगर निकायों के चुनाव लगभग 3 सालों से लंबित है. इसके अलावा 34 अन्य शहरी निकायों का कार्यकाल भी अप्रैल में खत्म हो गया है. संविधान के 74वें संशोधन अधिनियम 1992 में साफ तौर पर बताया गया है कि राज्यों में स्थानीय निकाय कई कारणों की वजह से कमजोर और अप्रभावी हो गए है. जिसकी वजह नियमित चुनाव कराने में विफलता और लंबे समय तक शक्तियों और कार्यों का अपर्याप्त हस्तांतरण करना शामिल है. चुनावों में देरी करना निकायों को कमजोर बनाना है.
शहरी विकास के लिए दिया जाता है ग्रांट
केंद्र द्वारा वित्त आयोग की अनुशंसाओं के आधार पर शहरी विकास, शहरों में नागरिक सुविधा विकसित करने के लिए राज्यों को ग्रांट स्वीकृत किया जाता है. 15वें वित्त आयोग की अनुशंसाओं के आधार पर झारखंड में केंद्र सरकार ने शहरी निकायों को राशि पूर्व में जारी की गई थी. लेकिन अब 3 साल से 13 नगर निकायों के चुनाव लंबित है.
आपको बता दें कि नगर निकायों का कार्यकाल अप्रैल महीने में समाप्त होने पर झारखंड सरकार की तऱफ से बड़ा फैसला लिया गया था. जिसमें कहा गया था कि बाद नगर निकायों का संचालन सीधे अफसरों के माध्यम से होगा. सरकार ने तय किया था कि निकाय चुनाव के लिए सरकार ट्रिपल टेस्ट कराएगी. लेकिन लोगों के विरोध को देखते हुए सरकार ने अपने निर्णय बदल दिया था.
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