क्या चुनाव में भाग लेने के बाद आम जनता की मनोकामना पूरी होगी ?
झारखण्ड विधानसभा चुनाव को लेकर पोटका (पूर्वी सिंहभूम) के वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता उज्जवल कुमार मंडल ने अपने इस लेख के ज़रिए कुछ अहम मुद्दों का विश्लेषण किया है. उनकी बातों को हुबहू यहां प्रकाशित किया जा रहा है.
आम जनता के हित में ये विधानसभा चुनाव को किस नजरिए से देखा जाए ये सवाल मेरे मन में मंडराने के साथ ही मैं यह लेख लिखने को बाध्य हो गया।
क्या वास्तव में यही चुनाव है ? जहां चुनाव के शंखनाद होते ही नेतागण टिकट लेने की होड़ में अपना ईमान, इज्जत, नीति और नीयत को आड़े हाथ ले रहें हैं। वैसे प्रजातंत्र में चुनाव राजनीतिक शिक्षा देने का विश्वविद्यालय है. वास्तव में कहा जाता है यह जनता के लिए, जनता के द्वारा, जनता का शासन है. सरकार की सर्वोच्च सत्ता जनता में निहित रहती है। चुनाव के शंखनाद होते ही सभी पार्टियां अपना-अपना गणित लगा रही है. इसके बाद वादों की बरसात होगी, लेकिन क्या चुनाव में भाग लेने के बाद आम जनता की मनोकामना पूरी होगी ?
बड़े संघर्ष, आन्दोलन व बलिदान के बाद झारखंड अलग राज्य बना, लेकिन..
बड़े संघर्ष, आन्दोलन व बलिदान के बाद झारखंड अलग राज्य बना, लेकिन आज तक स्थानीय नीति स्थानीयता तय नहीं की गई। झारखंड में शिक्षित युवा रहते हुए यहां दूसरे राज्यों के युवाओं को नौकरी दी जाती है। एक समय था जब झारखंड में डबल इंजन की सरकार थी. वह भी झारखंडियों के अनुकूल स्थानीय नीति नहीं बनाई. तब विपक्ष में रहते हुए झारखंड मुक्ति मोर्चा /यूपीए ने इस मामले में कटाक्ष किया । बाद में यूपीए का सरकार बनी, मगर यथा स्थिति बनी रही।
साधारण जन-मानस भी नेता से दूर रहना पसंद करता है, ऐसा क्यों?
यह राजनीति राज्य की जनता की नैतिक रीढ़ को तोड़ रही है, फलस्वरूप चुनाव की प्रासंगिकता धुमिल होती नजर आ रही है। एक समय था, जब राजनीति एवं नेता को लोग आदर की दृष्टि से देखा करते थे, मगर आज के इस दौर में ज्यादातर समाजसेवी, बुद्धिजीवी, शिक्षक, चिकित्सक यहां तक कि साधारण जन-मानस भी नेता से दूर रहना पसंद करता है ऐसा क्यों?
क्या चुनाव के नतीजे जनता तय करती है?
यह जो चुनाव हो रहा है, वास्तव में इसके नतीजे जनता तय करती है? क्या यह जनादेश से होता है —-
चुनाव में लाखों-करोड़ों का खेल होता है. ये रूपये देता कोन है ? यह चिंतनीय बात है. जो पैसा खर्च करती हैं सभी पार्टियों उनके गुलाम है। चुनाव के समय अगर जनता कहे कि आसमान से चांद ला दीजिए, तो एक वोट के लिए वह भी लाने को तैयार हो जाएंगे।तदनुरूप वर्तमान समय में आम जनता की मनो स्थिति भी यही हो गई है कि सामान्य स्थिति में हमें कुछ भी तो नहीं मिलता इसीलिए चुनाव के वक्त जो कुछ भी मिलता है उसे ले लिया जाए चाहे वह कुछ भी क्यों न हो।
अब समय है सही पार्टी और सही नेता चुनने का
हर वोटर को समझना होगा कि यह तो आपके लिए रिश्वत लेना हुआ। अब समय है सही पार्टी और सही नेता चुनने का। इस राज्य की जनता राजनीति समझना नहीं चाहती, एवं नेता भी चाहते कि लोग अंधे रहे, अनजान रहे ।आम जनता की सोच नेता लोग ही सब तय करते हैं। आज इस आधुनिक युग में भी लोग अंधे रह जाए, अनजान रह जाए, अखबार क्या कह रहा है, टीवी क्या कह रहा है ,कौन कितना पैसा देगा इसके आधार पर वोट देंगे तो सोच लीजिए हम अवश्य ठगी का शिकार होंगे।
आज भी चुनाव के दौरान अभी सारे नेता हेलीकॉप्टर से आएंगे
समाज में यह भी बात कही जाती है कि जो लंका जाता है, वही रावण बन जाता है । यह सही नहीं है रावण की कहानी के अनुसार राम, लक्ष्मण ,सीता, हनुमान ये सभी लंका गए थे, मगर वे तो रावण नहीं बने। बल्कि रामायण की यही सीख है कि सीता का अपहरण नहीं होता यदि वह रावण को पहचान पाती। रावण सन्यासी के भेष में आया. सीता ने लक्ष्मण की बात परवाह न कर लक्ष्मण रेखा पारकी और सीता हरण हुआ। आज भी चुनाव के दौरान अभी सारे नेता हेलीकॉप्टर से आएंगे गांव -गांव, मुहल्ले -मुहल्ले ,शहर – शहर घूमेंगे जनता के लिए आंसू बहाएंगे एक दूसरे के खिलाफ भ्रष्टाचार कदाचार का आक्षेप लगाते हुए हाथ जोड़कर वोट मांगेंगे।
जनता को अभी लंका के राम रूपी छवि का निर्वाचन करते हुए रावण रूप को बहिष्कार करना है प्रचार के तड़प झड़प से भ्रमित ना हों । सामाजिक लोभ- लालच के झांसे में आने से हम फिर ठगी का शिकार हो जाएंगे।
अतः हम कह सकते हैं चुनाव के जरिए मौलिक समस्या का समाधान ,भ्रष्टाचार व कमीशनखरों पर अंकुश, कालाबाजारी पर रोक, मजदूर किसान तथा मध्यम वर्ग की जलन्त समस्या का समाधान तब तक संभव नहीं जब तक चुनाव में जनता क्रांति के लिए तैयार नहीं हो जाती।
यह विधानसभा चुनाव प्रजातंत्र के लिए एक अच्छा एवं कल्याणकारी स्वरूप है लेकिन इसका दुरुपयोग तो इससे कहीं भयंकर और कष्टदायक है आज प्रजातंत्र में चुनाव की जो प्रासंगिकता है वह धुंधला एवं मटमैला होते जा रहा है फलस्वरूप इससे अच्छे परिणाम एवं सुखद भविष्य की कल्पना कठिनाई से की जा सकती है। मगर जनता भी तो
विवस एवं लाचार है वह करे तो क्या करे ,वह किसका चुनाव करें और किसका नहीं। जनता जनार्दन जिसे चुनती है वही गद्दार और शोषक बन जाता है। फिर भी हम चुनाव में भाग लेंगे और तब तक भाग लेते रहेंगे जब तक की जनता क्रांति के लिए तैयार नहीं हो जाती।
उज्वल कुमार मंडल
(सामाजिक कार्यकर्ता)
शशांक शेखर विगत 30 वर्षों से पत्रकारिता, आकाशवाणी व सामाजिक कार्यों से जुड़े हुए हैं साथ ही लघु/फीचर फिल्मों व वृत्त चित्रों के लिए कथा-लेखन का कार्य भी विगत डेढ़ दशकों से कर रहे हैं. मशाल न्यूज़ में पिछले लगभग ढाई वर्षों से कार्यरत हैं.
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