सामाजिक कार्यकर्त्ता उज्ज्वल कुमार मंडल ने इस लेख के माध्यम से नव वर्ष पर विद्यार्थियों के लिए दिया है यह संदेश
छात्र-छात्राएं चिंतनशील प्राणी कहे गए हैं। वे सदा जीवन में आगे ही आगे बढ़ना चाहते हैं और अपने कर्मों द्वारा जीवन को सार्थक बनाना चाहते हैं, इसी कारण वे दृढ़निश्चय, लगन व साहस से सदैव अपनी पढ़ाई में प्रयासरत रहते हैं, किंतु विद्यार्थी का प्रयास किस दिशा में हो, इसका निर्धारण आवश्यक है।
कबीर दास ने कहा है-“पूर्व चलने के बटोही, बाट की पहचान कर ले।”
छात्र-छात्राओं का जीवन एक ऐसी धारा है, जिसे लक्ष्य निर्धारण द्वारा उचित दिशा में मोड़ा जा सकता है। लक्ष्यहीन विद्यार्थी का जीवन पशु के समान है। लक्ष्य रहित विद्यार्थी का जीवन एक चप्पू रहित नौका के समान भवसागर में तूफानों के थपेड़ो से चूर-चूर हो जाता है। आज इस प्रतिस्पर्धा के जमाने में हर विद्यार्थी को लक्ष्य तय कर आगे बढ़ना चाहिए। अब वह जमाना नहीं है, कि हम स्कूल-कॉलेज जा रहे हैं, पढ़ाई कर रहे हैं और बस डिग्री बढ़ा रहे हैं।
येषां न विद्या न तपो दानम
न ज्ञानं न शीलं न गुणों न धर्म़:।
ते मृत्युलोके भुवा भारभूता,
मनुष्यरूपेण मृगाश्चरन्ति।।
अतः मन को नियंत्रण में रखकर संस्कार एवं अनुशासन को बरकरार रखते हुए दूरदर्शिता से एक लक्ष्य का निर्धारण करना चाहिए। लक्ष्य निर्धारण के महत्व पर प्रकाश डालते हुए संत कबीर ने कहा है-
मन सागर मनसा लहरि, बूढ़े-बड़े अनेक,
कहा कबीर ते वाचिहैं जिन्हें हृदय विवेक।
जिस प्रकार कोई व्यक्ति स्टेशन पर गाड़ी से उतरे एवं उसे यह ज्ञात हो कि उसे किस मोहल्ले और किसी मकान पर पहुंचना है, तो वह अपना समय गवाएं बिना तुरंत वहां पहुंच जाएगा। इसी प्रकार लक्ष्य का चुनाव कर लेने से ही विद्यार्थी एक निश्चित मार्ग पर चलकर अभीष्ट सिद्धि पा सकेगा। साथ ही साथ लक्ष्य का चुनाव करते समय हर विद्यार्थी को कुछ सावधानी भी बरतनी पड़ेगी। इसके लिए विद्यार्थियों को अपनी क्षमता, आर्थिक स्थिति, रुचि, संकल्प, समाज द्वारा मान्यता आदि तत्वों को ध्यान में रखना अति आवश्यक है।
इस विषय पर कबीर कहते हैं- “तेते पांव पसारिए, जैते लंबी सौर।”
वैसे तो जीवन में लक्ष्य कोई भी हो सकता है, लेकिन वास्तव में लक्ष्य ऐसा हो जो अपने जीवन को सुख-शांति देने के साथ-साथ समाज और राष्ट्र की उन्नति में भी सहायक हो। कोई किसान बनना चाहता है, कोई इंजीनियर बनना चाहता है, कोई सरकारी कर्मचारी बनना चाहता है और कोई अच्छा व्यवसायी। कोई कुशल श्रमिक. कोई शिक्षक, कोई नेता, कोई एक अच्छा मिस्त्री बनना चाहता है तो कोई इलेक्ट्रीशियन। कुछ भी बनें, लेकिन उसमें कुशलता हो। कहीं अधजल गगरी छलकत जाए जैसी नौबत ना आए। अंत में इस नव वर्ष की शुभकामना के साथ मैं सभी छात्र-छात्राओं को यही संदेश देना चाहूंगा कि सभी अपने सामर्थ्य के अनुसार लक्ष्य को केंद्रित करते हुए आगे बढ़ें। जरूर मान -प्रतिष्टा के साथ सफलता मिलेगी।
“ट्यूशन-कोचिंग उद्योग: शिक्षा-परीक्षा तंत्र में वृद्धि के कारण”
(ये लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं)
शशांक शेखर विगत 30 वर्षों से पत्रकारिता, आकाशवाणी व सामाजिक कार्यों से जुड़े हुए हैं साथ ही लघु/फीचर फिल्मों व वृत्त चित्रों के लिए कथा-लेखन का कार्य भी विगत डेढ़ दशकों से कर रहे हैं. मशाल न्यूज़ में पिछले लगभग ढाई वर्षों से कार्यरत हैं.
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