कोल्हान विश्वविद्यालय के अंगीभूत कॉलेजों में चल रहे इंटर कॉलेज में एक भी स्थायी शिक्षक नहीं है। इंटर की पूरी पढ़ाई इन कॉलेजों में कांट्रेक्ट पर नियुक्त शिक्षकों से कराई जाती है। इन कॉलेजों में छात्र-छात्राओं को इंटर पढ़ाने में सरकार का एक भी रुपया खर्च नहीं हो रहा है। इन कॉलेजों के लिए न सरकार फंड देती है और न ही इसका कोई प्रावधान है। कांट्रेक्ट शिक्षक इन कॉलेजों के वर्षों से चला रहे हैं और अच्छा रिजल्ट भी ला रहे हैं।
जमशेदपुर की बात करें तो ग्रेजुएट कॉलेज से लेकर को-ऑपरेटिव कॉलेज, वर्कर्स कॉलेज, एबीएम कॉलेज, एलबीएसएम कॉलेज समेत तमाम डिग्री कॉलेजों में इसी व्यवस्था के तहत इंटर कॉलेज चल रहे हैं। इन कॉलेजों में इंटर डिपार्टमेंट में पढ़ाने के लिए एक भी सरकारी अथवा स्थायी शिक्षक नियुक्त नहीं है। डिग्री कॉलेजों में ये इंटर कॉलेज इसी गैर सरकारी व्यवस्था के तहत संचालित किए जा रहे हैं। इसके लिए सभी डिग्री कॉलेजों में एक शिक्षक को इंटर समन्वयक की अतिरिक्त जिम्मेदारी दे दी जाती है।
कॉलेजों में एक कमेटी गठित की गई
इंटर कॉलेज का संचालन करने के लिए सभी कॉलेजों में एक कमेटी गठित की गई है, जो कांट्रेक्ट शिक्षकों की नियुक्ति से लेकर उनके मानदेय तक का निर्धारण करती है। इन इंटर कालेजों के शिक्षकों को जो मानदेय दिया जाता है, वह भी न तो सरकारी फंड से आता है और न ही किसी काउंसिल को उससे कोई लेना देना। इंटर के एडमिशन व मासिक फीस में जो रकम कालेज को मिलती है, उसी से कांट्रेक्ट शिक्षकों को मानदेय दिया जाता है।
अब झारखंड अंगीभूत महाविद्यालय इंटरमीडिएट शिक्षक संघ ने इस मुद्दे को उठाते हुए उन्हें कम से कम पारा शिक्षक का दर्जा देने की मांग मुखर की है। साथ ही प्लस टू स्कूलों में सेवा समायोजित करने की भी मांग शुरू कर दी है। संघ का कहना है कि इंटरमीडिएट विद्यार्थियों को पढ़ाने में राज्य सरकार का एक भी रुपया खर्च नहीं है।
सरकार को पता भी नहीं कि कॉलेजों में इंटर कौन पढ़ा रहा है, लेकिन रिजल्ट अच्छा होने पर सरकार अपनी पीठ थपथपाती है। राज्य के 65 अंगीभूत कॉलेजों मं इंटर की कक्षाएं ऐसी ही चल रही। अपनी मांगों को लेकर अब हम 21 को शिक्षा मंत्री से मिलेंगे।
राकेश पांडेय, प्रदेश महासचिव, इंटरमीडिएट शिक्षक संघ
कॉलेजों में संचालित इंटर विभाग से विवि का कोई लेना देना नहीं है। कॉलेज स्तर पर अस्थायी तौर पर इस विभाग का संचालन होता है। उसके वित्त से लेकर इसके संचालन तक का मामला कॉलेज तक ही सीमित रहता है।
डॉ. पीके पाणी, प्रवक्ता, केयू
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