सपना तब सच होता दिखाई पड़ा जब इसके लिए बेहतरीन रास्ते पर चलने का मौका मिला। खूब मेहनत की, पर सफलता चंद कदमों से फिसलती रही। यूपीएसपी समेत चार राज्यों के लोक सेवा आयोग की सिविल सेवा परीक्षा में इंटरव्यू तक पहुंचे, पर सफल नहीं सके। असफलता से बड़ी सीख मिली और बच्चों में अपने सपने को फिर से उड़ान देने में जुट गये। यहां बात हो रही है कि झारखंड पुलिस सेवा में तैनात मनोज मलिक की। वर्तमान में जमशेदपुर के टेल्को के सर्किल ऑफिसर के रूप में तैनात ये अधिकारी नियमित तौर पर सरकारी स्कूलों में क्लास लेते हैं।
काउंसिलिंग कार्यक्रम का आयोजन भी करते
मलिक का पूरा फोकस आर्थिक दृष्टि से उन कमजोर बच्चों को आगे बढ़ाने पर है, जिनमें जोश और जब्जा तो है, पर ऊंची उड़ान भरने का संसाधन नहीं। यही कारण है कि वे सरकारी स्कूलों के बच्चों के बीच काफी लोकप्रिय है। प्रतियोगिता में तैयारी करने के तरकीब जानने के लिए विद्यार्थी उनके पास खूब आते हैं। इतना ही नहीं शहर के कई स्कूल में काउंसिलिंग कार्यक्रम का आयोजन भी करते हैं। साथ ही उन्हें हरसंभव मदद भी करते हैं।
मूल रूप से बिहार के सुपौल के रहने मलिक इससे पहले पलामू, बोकारो, चतरा और देवघर में भी तैनात रहे हैं। वहां के स्कूलों में क्लास लेने और काउंसिलिंग का इनका क्रम चलता रहा था। अपने व्यस्ततम समय से कुछ समय निकाल कर वे संघ लोक सेवा आयोग समेत अन्य राज्य लोकसेवा आयोग की परीक्षा की तैयारी के टिप्स भी देते हैं।
मनोज मलिक 1989 और 1990 में यूपीएससी, उत्तरप्रदेश, बिहार और मध्यप्रदेश की सिविल परीक्षा में साक्षात्कार तक पहुंचे थे, लेकिन, उन्हें सफलता नहीं मिली।1994 में बिहार पुलिस में उन्हें नौकरी मिली और झारखंड बनने के बाद उन्होंने यहां का कैडर चुना। सुपौल के गांव गणपत से मैट्रिक की पढ़ाई पूरी करने के बाद पटना कॉलेज, पटना से इतिहास (प्रतिष्ठा) की डिग्री हासिल की और पटना विश्वविद्यालय से एमए की पढ़ाई की।
मार्गदर्शन में कई विद्यार्थी सिविल सेवा में पाई सफलता
मनोज मलिक के मार्गदर्शन पर कई विद्यार्थियों ने सिविल सेवा परीक्षा में सफलता पाई है। चार आईएएस बने तो आधा दर्जन डिप्टी कलेक्टर भी। मलिक कहते हैं कि इन विद्यार्थियों को देखकर उन्हें अपने सपने पूरा होने का अहसास होता है। पुलिसिंग के काउंसलिंग के इस जुनून की विभाग के वरीय अधिकारियों ने भी सराहना की।
दो भाई बने आईपीएस तो मनोज की भी बढ़ी लालसा
मनोज के पिता गांव के सरकारी स्कूल में हेडमास्टर थे। उनके घर में शिक्षा का माहौल शुरू से ही रहा है। ऐसे में उनके दो बड़े भाई आपीएएस बने तो उन्होंने भी यूपीएसी की तैयारी शुरू कर दी। पटना में पढ़ाई खत्म होने के बाद कोचिंग सेंटरों में भी पढ़ाते रहे। 1994 में जब बिहार पुलिस की नौकरी मिली तो सरकारी स्कूल बच्चों की काउंसिलंग शुरू कर दी।
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