“संताली उच्च शिक्षा और शोध की कारगर भाषा हो सकती है।” – श्री हरि कुमार केसरी, कुलपति
भारत के शैक्षणिक विकास में संताली मातृभाषा का योगदान’ पर दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार का उद्घाटन
जमशेदपुर, 04 जनवरी : “झारखंड में संताली समेत तमाम क्षेत्रीय जनजातीय मातृभाषाओं में सरकार गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने का प्रयास कर रही है। संताली जिसे आठवीं अनुसूची में जगह मिली है, उसमें कक्षा 1 से 8 तक अनिवार्य शिक्षा देने का निर्णय लिया गया हैl” झारखंड सरकार के स्कूली शिक्षा और साक्षरता विभाग के मंत्री रामदास सोरेन ने संथाल इंटेलेक्चुअल एसोसिएशन (ए. एस आई ए) और एलबीएसएम कालेज के संताली विभाग द्वारा आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार ‘भारत के शैक्षणिक विकास में संताली मातृभाषा का योगदान ‘ के उद्घाटन सत्र में ये बातें कहीं।
इस सन्दर्भ में राज्यपाल व मुख्यमंत्री से अनुमति मिल गई है
श्री सोरेन ने बताया कि इस सन्दर्भ में राज्यपाल व मुख्यमंत्री से अनुमति मिल गई है। 15 दिनों के अंदर इस पर कार्य किया जाएगा l साथ ही सभी विश्वद्यालयों में वीसी को नियुक्त करने की प्रक्रिया के बारे में जानकारी दी l उन्होंने जल्दी ही रघुनाथ मुर्मू जनजातीय विश्वविद्यालय में शिक्षकों को नियुक्त करने की बात कही l श्री सोरेन ने राज्य के भाषा व संस्कृति के विकास व संरक्षण की बात कहीl उन्होंने बताया कि 24 वर्षों के बाद भी राज्य में भाषागत विकास नहीं हुआ है, लेकिन आने वाले समय में उनकी सरकार उन सारे उद्देश्यों को पूरा करने के लिए कृतसंकल्प है, जो राज्य निर्माण के समय निर्धारित किए गए थे l
उन्होंने को-ऑपरेटिव कॉलेज में लॉ कॉलेज खोलने, लाल बहादुर शास्त्री मेमोरियल कॉलेज में बी. एड. कॉलेज खोलने, घाटशिला कॉलेज में बी. एड. कॉलेज के साथ 300 सीट वाले लड़कियों के छात्रावास खोलने की बात भी कही l उन्होंने इस अवसर पर संथाली भाषा में एशिया (ए. एस आई ए – संथाल इंटेलेक्चुअल एसोसिएशन) द्वारा लोकार्पित पुस्तक “धाड़ दिसोम” तथा भूगोल विभाग के डा. संतोष कुमार द्वारा लोकार्पित पुस्तक “अंडरस्टैंडिंग इंडिया” के लिए दोनों को बधाई दी l
संताली उच्च शिक्षा और शोध की कारगर भाषा हो सकती है
सेमिनार के मुख्य संरक्षक प्रमंडलीय आयुक्त सह कोल्हान विश्वविद्यालय, चाईबासा के कुलपति श्री हरि कुमार केसरी ने कहा कि आदिवासी जीवन शैली, प्रकृति और पर्यावरण, औषधीय ज्ञान, प्रेम, संवेदना और लोकधर्मिता को संताली भाषा में बखूबी व्यक्त किया जा सकता है। संताली उच्च शिक्षा और शोध की कारगर भाषा हो सकती है। इसमें उच्चस्तरीय शोध को बढ़ावा मिले, यही राष्ट्रीय सेमिनार का उद्देश्य है। शोध एक ऐसा ईंधन है जो उच्च शिक्षा को आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित करता है।
संताली भाषा के संरक्षण व विकास को लेकर पोटका विधायक संजीव सरदार ने संथाली भाषा के संरक्षण व विकास के बारे में अपने विचार व्यक्त किए और हर संभव मदद करने का आश्वासन दिया l
प्राचार्य डॉ.बी. एन. प्रसाद ने साहित्य व विज्ञान के क्षेत्र में सरकार द्वारा पाठ्य-पुस्तक उपलब्ध कराने का आग्रह किया
महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ.बी. एन. प्रसाद ने रामदास सोरेन की बातों का समर्थन करते हुए कहा कि 1-8 तक मातृभाषा में शिक्षा देने की व्यवस्था होनी चाहिए l उन्होंने सरकार की दृढ़ इच्छा शक्ति की सराहना करते हुए साहित्य व विज्ञान के क्षेत्र में सरकार द्वारा पाठ्य-पुस्तक उपलब्ध कराने का आग्रह किया। उन्होंने कोल्हान विश्वविद्यालय में शिक्षकों की कमी को पूरा करने का तथा राज्य में बायो-टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में भी विकास करने का अनुरोध किया। उन्होंने एकलव्य विद्यालयों को प्रारंभ कराने, शोध को बढ़ावा देने, मातृभाषा में ज्ञान-विज्ञान का विकास करने और उसे बढ़ावा देने की बात कही l
इसके पूर्व डॉ. अशोक कुमार झा (पूर्व प्राचार्य एल.बी.एस.एम. कॉलेज करनडीह जमशेदपुर )ने स्वागत वक्तव्य देते हुए
कहा कि मौलिक शोध और अन्वेषण के लिए मातृभाषा के माध्यम से शिक्षा आवश्यक है, जैसा एनईपी 2020 का उद्देश्य है।
मंच संचालन लखाई बास्के (डिपार्टमेंट ऑफ़ एजुकेशन, करीम सिटी कॉलेज, जमशेदपुर) ने किया ।
उद्घाटन सत्र की शुरुआत दीप प्रज्ज्वलन और पं. रघुनाथ मुर्मू की तस्वीर पर पुष्पांजलि अर्पित करने से हुई। इस श्री गोपाल हंसदा ( रिसर्च स्कॉलर, विश्व भारती शांति निकेतन), डॉ. रामू हेंब्रम ( प्राध्यापक, विश्व भारती शांतिनिकेतन, पश्चिम बंगाल), डॉ. धनेश्वर मांझी ( प्राध्यापक, विश्व भारती शांतिनिकेतन, पश्चिम बंगाल), डॉ. सुनील मुर्मू ( टी आर एल हेड इंचार्ज, कोल्हान यूनिवर्सिटी चाइबासा), श्री रामु टुडू ( प्राध्यापक, लालगढ़ डिग्री कॉलेज, लालगढ़, पश्चिम बंगाल), डॉ. तपन कुमार खानराह ( डीन फैकल्टी ऑफ़ ह्यूमैनिटीज, कोल्हन यूनिवर्सिटी चाइबासा), डॉ. नाकु हांसदा ( एसोसिएट प्रोफेसर, एचओडी डिपार्टमेंट ऑफ़ ओड़िआ सह इंचार्ज संताली, संबलपुर यूनिवर्सिटी उड़ीसा), श्री संजीव मुर्मू (प्राध्यापक, संताली विभाग, एल.बी.एस.एम. कॉलेज मौजूद थे।
शशांक शेखर विगत 30 वर्षों से पत्रकारिता, आकाशवाणी व सामाजिक कार्यों से जुड़े हुए हैं साथ ही लघु/फीचर फिल्मों व वृत्त चित्रों के लिए कथा-लेखन का कार्य भी विगत डेढ़ दशकों से कर रहे हैं. मशाल न्यूज़ में पिछले लगभग ढाई वर्षों से कार्यरत हैं.
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