विश्व आदिवासी दिवस के दिन आदिवासी एकता मंच ने डोभापानी गाँव के निवासी रहे स्व. प्रो. दिगंबर हांसदा के नाम से नारगा चौक का नामकरण प्रो. दिगम्बर हांसदा चौक. बाहड़ाडीह किया गया. स्व. प्रोफेसर दिगम्बर हांसदा को वर्ष 2018 में भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के हाथों से पद्मश्री अवार्ड मिला था. यह सम्मान उन्हें शिक्षा और साहित्य के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य के लिए मिला था. उन्होंने संथाली भाषा और समाज में शिक्षा को बढ़वा देने में महत्वपूर्ण काम किया था.
प्रो. हांसदा का जीवन-वृत्त
16 अक्टूबर 1939 को पूर्वी सिंहभूम जिला के एमजीएम थाना अंतर्गत बेको पंचायत के डोभापानी गाँव में जन्मे स्व. हांसदा करनडीह के सारजोमटोला में रहते थे। उनकी प्राथमिक शिक्षा राजदोहा मिडिल स्कूल से हुई थी, जबकि उन्होंने मैट्रिक बोर्ड की परीक्षा मानपुर हाईस्कूल से दी थी। उन्होंने 1963 में रांची यूनिवर्सिटी से राजनीति विज्ञान में स्नातक और 1965 में एमए किया। वे लंबे समय तक करनडीह स्थित एलबीएसएम कालेज में शिक्षक रहते हुए टिस्को आदिवासी वेलफेयर सोसाइटी से जुड़े रहे. इनकी पत्नी पार्वती हांसदा का स्वर्गवास पहले ही हो चुका है। ये अपने पीछे दो पुत्र पूरन व कुंवर और दो पुत्री सरोजनी व मयोना समेत भरा-पूरा परिवार छोड़ गए हैं। इनकी एक पुत्री तुलसी का भी निधन हो चुका है।
साहित्य अकादमी के सदस्य भी रहे
प्रो. हांसदा का जनजातीय और उनकी भाषा के उत्थान में महत्वपूर्ण योगदान है। वे केंद्र सरकार के जनजातीय अनुसंधान संस्थान व साहित्य अकादमी के भी सदस्य रहे। इन्होंने कई पाठ्य पुस्तकों का देवनागरी से संथाली में अनुवाद किया था। उन्होंने इंटरमीडिएट, स्नातक और स्नातकोत्तर के लिए संथाली भाषा का कोर्स बनाया। भारतीय संविधान का संथाली भाषा की ओलचिकि लिपि में अनुवाद किया था।
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आदिवासियों के सामाजिक व आर्थिक उत्थान के लिए पश्चिम बंगाल व ओडिशा में भी काम किया
प्रो. हांसदा कोल्हान विश्वविद्यालय के सिंडिकेट सदस्य भी रहे। वर्ष 2017 में दिगंबर हांसदा आईआईएम बोधगया की प्रबंध समिति के सदस्य बनाए गए थे। प्रो. हांसदा ज्ञानपीठ पुरस्कार चयन समिति (संथाली भाषा) के सदस्य रहे हैँ. सेंट्रल इंस्टीच्यूट ऑफ इंडियन लैंग्वैज मैसूर, ईस्टर्न लैंग्वैज सेंटर भुवनेश्वर में संथाली साहित्य के अनुवादक, आदिवासी वेलफेयर सोसाइटी जमशेदपुर, दिशोम जोहारथन कमेटी, जमशेदपुर एवं आदिवासी वेलफेयर ट्रस्ट, जमशेदपुर के अध्यक्ष रहे. जिला साक्षरता समिति, पूर्वी सिंहभूम एवं संथाली साहित्य सिलेबस कमेटी, यूपीएससी नयी दिल्ली और जेपीएससी झारखंड के सदस्य रह चुके हैं। दिगंबर हांसदा ने आदिवासियों के सामाजिक व आर्थिक उत्थान के लिए पश्चिम बंगाल व ओडिशा में भी काम किया।
कार्यक्रम के दौरान आदिवासी एकता मंच के सदस्यों ने बताया कि आने वाले दिनों में प्रोफेसर दिगम्बर हांसदा की विशालकाय मूर्ति लगाई जाएगी, ताकि लोगों में शिक्षा के प्रति जागरूकता बढ़े.
उपस्थिति
इस कार्यक्रम में मुख्य रूप से जितेन हांसदा, डॉक्टर हांसदा, बेंगल सोरेन, नवीन हांसदा, साहेब मुर्मू, सुरेश हांसदा, जैकब किस्कू, राजाराम मुर्मू, मंगल टुडू, जनक सोरेन, दीनबंधु सिंह, शाकुंतला बेसरा, लक्ष्मी पूर्ति, अर्जुन सोरेन,भागीरथ सोरेन, मुन्ना सबर, कैलाश भूमिज, सनातन मुर्मू, दीपक रंजीत, अजित तिर्की, बसंती सिंह सरदार आदि मौजूद थे.
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शशांक शेखर विगत 30 वर्षों से पत्रकारिता, आकाशवाणी व सामाजिक कार्यों से जुड़े हुए हैं साथ ही लघु/फीचर फिल्मों व वृत्त चित्रों के लिए कथा-लेखन का कार्य भी विगत डेढ़ दशकों से कर रहे हैं. मशाल न्यूज़ में पिछले लगभग ढाई वर्षों से कार्यरत हैं.
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