
- संजय कच्छप का पुस्तकालय अभियान: झारखंड में शिक्षा और समाज में बदलाव की क्रांति।
चाईबासा: संजय कच्छप, जिन्हें “लाइब्रेरीमेन” के नाम से भी जाना जाता है, झारखंड के पश्चिम सिंहभूम जिले के चाईबासा पुलहात के निवासी हैं। उनकी प्रेरणादायक यात्रा ने न केवल झारखंड बल्कि पूरे भारत में शिक्षा और सामाजिक बदलाव की एक नई धारा को जन्म दिया है। उनके अथक प्रयासों और समाज सेवा की अनगिनत कहानियों ने उन्हें देशभर में एक प्रेरणा का स्रोत बना दिया है। उनकी उल्लेखनीय कार्यशैली और योगदानों की सराहना करते हुए, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने लोकप्रिय कार्यक्रम “मन की बात” में उनकी चर्चा की, साथ ही गणतंत्र दिवस के अवसर पर दिल्ली के लाल किले में उन्हें सम्मानित करने के लिए आमंत्रित किया। इसके अलावा, झारखंड राज्य सरकार ने भी उनकी कड़ी मेहनत और शिक्षा के क्षेत्र में योगदान को कई बार मान्यता दी है।
संजय कच्छप ने 2008 में झारखंड के ग्रामीण इलाकों में शिक्षा का प्रसार और ज्ञान की रोशनी फैलाने के उद्देश्य से पुस्तकालय मिशन की शुरुआत की थी। उनका यह मिशन न केवल एक पुस्तकालय तक सीमित रहा, बल्कि पूरे झारखंड में शैक्षिक सुधार और सामाजिक जागरूकता का एक बड़ा आंदोलन बन गया। इस मिशन के माध्यम से उन्होंने अब तक 50 से अधिक पुस्तकालय स्थापित किए हैं, जो सामुदायिक सहयोग से संचालित हो रहे हैं। इन पुस्तकालयों का उद्देश्य सिर्फ बच्चों, युवाओं और वयस्कों को शिक्षा प्रदान करना नहीं, बल्कि झारखंड के दूर-दराज के गांवों में जीवन की गुणवत्ता में सुधार भी करना है।
मुख्य विशेषताएँ :-
1. समुदाय आधारित पुस्तकालय मॉडल
इन पुस्तकालयों का संचालन सरकार से किसी भी प्रकार की वित्तीय सहायता के बिना, स्थानीय समुदाय, शिक्षकों, स्वयंसेवकों और सामाजिक संगठनों के सहयोग से किया जाता है। संजय कच्छप ने यह सुनिश्चित किया कि स्थानीय लोग स्वयं पुस्तकालयों की देखभाल और संचालन में भाग लें, जिससे यह समाज के लिए एक सामूहिक प्रयास बन गया है। इस मॉडल के कारण, स्थानीय समुदाय अपने पुस्तकालयों से गहरा जुड़ाव महसूस करता है, और यह उनके लिए एक मजबूत शिक्षा और सामाजिक विकास का आधार बनता है।
2. टेक्नोलॉजी का समावेश
संजय कच्छप ने अपने पुस्तकालयों में डिजिटल संसाधनों का समावेश किया है। कई पुस्तकालयों में ई-लाइब्रेरी, टैबलेट, और इंटरनेट कनेक्शन की सुविधा प्रदान की जा रही है, जिससे बच्चों को ऑनलाइन शिक्षा प्लेटफॉर्म और डिजिटल संसाधनों का लाभ मिल रहा है। यह पहल ग्रामीण बच्चों के लिए शिक्षा को सुलभ और भविष्य के डिजिटल युग के अनुकूल बनाने में मददगार साबित हो रही है।
3. बाल पुस्तकालय और महिला शिक्षा पर विशेष ध्यान
संजय कच्छप के पुस्तकालयों में बच्चों के लिए रंगीन किताबें, चित्रकथाएँ और कहानी संग्रह उपलब्ध कराए गए हैं, जिससे उनकी कल्पनाशक्ति और ज्ञानवर्धन होता है। साथ ही, महिला शिक्षा के लिए भी विशेष साक्षरता कार्यक्रम, करियर गाइडेंस सत्र, और कौशल विकास कार्यशालाएँ आयोजित की जा रही हैं। इससे महिलाओं को आत्मनिर्भर बनने की प्रेरणा मिल रही है और वे अपने जीवन को एक नई दिशा दे पा रही हैं।
4. स्थानीय भाषाओं में साहित्य
इन पुस्तकालयों में हिंदी, संथाली, कुड़ुख, और नागपुरी जैसी स्थानीय भाषाओं में किताबें उपलब्ध कराई जा रही हैं। इससे न केवल क्षेत्रीय भाषाओं को बढ़ावा मिल रहा है, बल्कि यह स्थानीय संस्कृति और धरोहर को भी संरक्षित करने में मदद कर रहा है। इससे स्थानीय समुदायों को अपनी भाषा में शिक्षा प्राप्त करने का अवसर मिलता है, और उनका आत्म-सम्मान भी बढ़ता है।
5. नेतृत्व और सामाजिक परिवर्तन
संजय कच्छप का यह अभियान न केवल शिक्षा को बढ़ावा दे रहा है, बल्कि यह ग्रामीण क्षेत्रों में युवाओं को नेतृत्व और सामाजिक परिवर्तन की दिशा में भी प्रेरित कर रहा है। कई युवा स्वयंसेवक इस अभियान से जुड़कर समाज में सकारात्मक बदलाव लाने की दिशा में कार्य कर रहे हैं, और वे समाज के विभिन्न पहलुओं में बदलाव लाने के लिए प्रेरित हो रहे हैं।
मुख्य नवाचार : –
1. ‘घुमंतू पुस्तकालय’ (Mobile Library)
उन दूरदराज के गांवों में जहां स्थायी पुस्तकालय स्थापित करना कठिन है, संजय कच्छप ने ‘घुमंतू पुस्तकालय’ की शुरुआत की है। इस मॉडल के तहत, साइकिल या वैन के माध्यम से पुस्तकालय चलाए जा रहे हैं, जिससे बच्चे और युवा आसानी से किताबें और शैक्षिक संसाधन प्राप्त कर पा रहे हैं। यह पहल विशेष रूप से उन क्षेत्रों में प्रभावी रही है, जहां पर शिक्षा के साधन अत्यधिक सीमित हैं।
2. ‘बुक बैंक’ की अवधारणा
संजय कच्छप ने पुरानी किताबों को दान करने की पहल शुरू की है, जिसे ‘बुक बैंक’ कहा जाता है। इसके माध्यम से, जरूरतमंद बच्चों को मुफ्त किताबें दी जाती हैं, जिससे वे बिना किसी आर्थिक बाधा के शिक्षा प्राप्त कर सकते हैं। यह मॉडल संसाधनों के पुनः उपयोग को बढ़ावा देता है और शिक्षा को सभी के लिए सुलभ बनाता है।
*3. पुस्तकालय सह ‘करियर गाइडेंस सेंटर’*
इन पुस्तकालयों में केवल अध्ययन के लिए किताबें ही नहीं, बल्कि प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए संसाधन भी उपलब्ध कराए जाते हैं। यहां छात्रों को बैंकिंग, SSC, JSSC, रेलवे, CLAT, और MBA जैसी परीक्षाओं की तैयारी के लिए मार्गदर्शन दिया जाता है, जिससे वे अपने करियर को दिशा देने में सक्षम होते हैं।
*चुनौतियाँ:*
1. वित्तीय संसाधनों की कमी
पुस्तकालयों के विस्तार और संचालन के लिए निरंतर आर्थिक सहयोग की आवश्यकता है। इस समय अधिकांश फंडिंग व्यक्तिगत दानदाताओं और स्वयंसेवी संगठनों से प्राप्त होती है, लेकिन यह एक स्थायी समाधान नहीं है। अगर अधिक सरकारी और निजी क्षेत्र से समर्थन प्राप्त हो तो इस अभियान को और प्रभावी बनाया जा सकता है।
2. डिजिटल संसाधनों की सीमाएँ
झारखंड के कई सुदूर क्षेत्रों में इंटरनेट की सुविधा और डिजिटल उपकरणों की कमी के कारण ई-लाइब्रेरी मॉडल पूरी तरह से सफल नहीं हो पा रहा है। इसे लागू करने के लिए बेहतर डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर की आवश्यकता है।
3. सामुदायिक भागीदारी में कमी
कुछ इलाकों में स्थानीय लोग शिक्षा के प्रति जागरूक नहीं हैं, जिससे पुस्तकालयों के संचालन में कठिनाई होती है। समुदाय की सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए और अधिक जागरूकता अभियान चलाने की आवश्यकता है।
4. सरकारी समर्थन की आवश्यकता
यदि सरकार इस अभियान को सहयोग प्रदान करे, तो यह और अधिक व्यापक और प्रभावी हो सकता है। सरकारी सहायता से पुस्तकालयों का विस्तार और संचालन अधिक स्थिर हो सकता है।
ग्रामीण और मोहल्लों में बदलाव:
1. शिक्षा के प्रति जागरूकता में वृद्धि
पहले जहां बच्चे शिक्षा से कटे हुए थे, अब वे पुस्तकालयों में आकर पढ़ाई कर रहे हैं, जिससे उनकी रुचि और ज्ञान में वृद्धि हो रही है। इसने गांवों में शिक्षा की एक नई धारा को जन्म दिया है।
2. महिलाओं की साक्षरता दर में सुधार
कई महिलाएं जो पहले साक्षर नहीं थीं, अब पुस्तकालयों के माध्यम से शिक्षा प्राप्त कर रही हैं और अपने जीवन को बदल रही हैं। महिला शिक्षा में सुधार ने इन महिलाओं को आत्मनिर्भर बना दिया है।
3. युवा नेतृत्व और सामाजिक परिवर्तन
पुस्तकालयों में पढ़ने वाले कई युवा अब अपने समाज में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए शिक्षक, सामाजिक कार्यकर्ता और सरकारी अधिकारी बनने के लिए प्रेरित हो रहे हैं। इससे ग्रामीण क्षेत्रों में नेतृत्व क्षमता को बढ़ावा मिल रहा है।
4. अपराध और नशाखोरी में कमी
कई क्षेत्रों में जहां पहले युवा असामाजिक गतिविधियों और नशाखोरी में लिप्त रहते थे, अब वे पुस्तकालयों में समय बिता रहे हैं, जिससे समाज में सकारात्मक बदलाव आ रहा है।
5. सरकारी नौकरियों और प्रतियोगी परीक्षाओं में सफलता*
इन पुस्तकालयों से पढ़ाई करने वाले कई छात्रों ने JSSC, बैंक, रेलवे और अन्य सरकारी परीक्षाओं में सफलता प्राप्त की है, जिससे यह साबित होता है कि यह अभियान न केवल शिक्षा, बल्कि रोजगार के अवसरों को भी सुलभ बना रहा है।
निष्कर्ष :-
संजय कच्छप का पुस्तकालय अभियान न केवल झारखंड के ग्रामीण इलाकों में शिक्षा का प्रसार कर रहा है, बल्कि यह सामाजिक और आर्थिक बदलावों का एक महत्वपूर्ण स्रोत बन चुका है। अगर इस अभियान को और अधिक समर्थन और संसाधन मिलते हैं, तो यह न केवल झारखंड, बल्कि पूरे भारत के लिए एक प्रेरणादायक मॉडल बन सकता है। संजय कच्छप, “लाइब्रेरीमेन” के रूप में, शिक्षा के क्षेत्र में अतुलनीय योगदान दे रहे हैं और समाज में जागरूकता और चेतना फैलाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। उनकी सोच, कार्यशैली और निरंतर प्रयासों को हम सभी सलाम करते हैं।

नुनु राम महतो विगत 20 वर्षों से गोप बन्धु उच्च विद्यालय हामन्दा शिक्षक, प्रधानध्यापक एवं समाजसेवी के रूप में कार्य कर चुके हैं। 3 वर्षों से प्रेस रिपोर्टर के रूप में भी कार्यरत हैं और उसके साथ ही एक साल से मशाल न्यूज के लिए काम कर रहे हैं।
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