अंतरराष्ट्रीय भुगतान की प्रणाली स्विफ्ट (सोसायटी फॉर वर्ल्डवाइड इंटरबैंक फाइनेंशियल टेलीकम्युनिकेशन) की मासिक रिपोर्ट के मुताबिक फरवरी में डॉलर में हुए वैश्विक कारोबार का हिस्सा गिर कर 38.85 फीसदी पर आ गया। जबकि यूरो में हुए भुगतानों का हिस्सा 1.23 फीसदी बढ़ा। यह 37.79 फीसदी तक पहुंच गया।यूक्रेन संकट को लेकर पश्चिमी देशों ने रूस पर जो प्रतिबंध लगाए हैं, उसका नुकसान अमेरिकी मुद्रा डॉलर को होने लगा है। फरवरी में डॉलर में हुए वैश्विक कारोबार में 1.07 फीसदी की गिरावट आई। जबकि फरवरी महीने में इस संकट की शुरुआत ही हुई थी.
विशेषज्ञों की राय है कि युआन तभी डॉलर की जगह लेने की तरफ बढ़ पाएगा, अगर चीन अपनी अर्थव्यवस्था का अधिक उदारीकरण करे.
इस बीच चीनी मुद्रा युआन की अंतरराष्ट्रीय हैसियत मजबूत होने की संभावना लगातार जताई जा रही है। हालांकि विशेषज्ञों की राय है कि युआन तभी डॉलर की जगह लेने की तरफ बढ़ पाएगा, अगर चीन अपनी अर्थव्यवस्था का अधिक उदारीकरण करे। यूनिवर्सिटी ऑफ सदर्न कैलिफोर्निया में वित्त और बिजनेस इकॉनमिक्स के प्रोफेसर बाइझू चेन ने वेबसाइट बिजनेस इनसाइडर से कहा- ‘चीनी मुद्रा के इस्तेमाल में निश्चित रूप से बढ़ोतरी होगी।
यह अब दुनिया में अधिक बड़ी भूमिका निभाएगी। अनेक देशों में यह ख्याल गहराया है कि डॉलर के वर्चस्व के कारण उनकी अर्थव्यवस्था को अमेरिकी नीतियां अपना बंधक बना सकती हैं। ये देश अपना जोखिम घटाना चाहते हैं।बिजनेस इनसाइडर में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक 70 से अधिक देशों के सेंट्रल बैंक पहले युआन को अपने पास रिजर्व करेंसी के रूप में रख रहे हैँ। पश्चिम एशिया के कई देश युआन का नियमित रूप से अंतरराष्ट्रीय लेन-देन के लिए इस्तेमाल करते हैं।
भारत और रूस के बीच रुबल-रुपया कारोबार बढ़ाने के लिए हुए समझौते को बेहद अहम समझा गया है.
पिछले हफ्ते अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक पिछले 20 साल का ट्रेंड यह रहा है कि विभिन्न देशों के सेंट्रल बैंक अपने मुद्रा कोष में डॉलर की मात्रा घटा रहे हैं। हाल के हफ्तों में इस रुझान की रफ्तार तेज हो गई है। इस सिलसिले में भारत और रूस के बीच रुबल-रुपया कारोबार बढ़ाने के लिए हुए समझौते को बेहद अहम समझा गया है। उधर सऊदी अरब की चीन के साथ युआन में कारोबार करने की कोशिश को भी अहम समझा जा रहा है।इस बीच रूस ने यूरोपीय देशों से कहा है कि वह उसके तेल और गैस के बदले भुगतान रुबल में करें। ऐसा कैसे होगा, इसकी तस्वीर अभी सामने नहीं आई है। लेकिन रूस के इस फैसले को पश्चिमी देशों की तरफ से लगाए गए प्रतिबंधों का जवाब समझा जा रहा है।
सऊदी अरब की चीन के साथ युआन में कारोबार करने की कोशिश को भी अहम समझा जा रहा है।
अमेरिका में व्हाइट हाउस काउंसिल ऑफ इकोनॉमिक एडवाइजर्स के पूर्व कार्यवाहक अध्यक्ष थॉमस फिलिपसन ने चेतावनी दी है कि अगर डॉलर की अंतरराष्ट्रीय रिजर्व करेंसी की हैसियत घटी, तो उसका अर्थ अमेरिका सरकार पर मौजूद विशाल कर्ज की ब्याज दर बढ़ने के रूप में रूप में सामने आएगा।
इसका खराब प्रभाव अमेरिकी कारोबारियों और आम उपभोक्ताओं पर पड़ेगा। फिलिपसन ने कहा है कि फिलहाल वैश्विक मुद्रा भंडार में डॉलर का हिस्सा 60 फीसदी और युआन का 2.5 फीसदी है। दोनों के बीच यह बड़ी खाई है, लेकिन यह सूरत तेजी से बदल सकती है।
लेकिन कई विशेषज्ञों की राय है कि चीन की अर्थव्यवस्था पर सरकार की पकड़ युआन के अंतरराष्ट्रीय मुद्रा बनने की राह में रुकावट बन सकती है। बाइझू चेन ने ध्यान दिलाया है कि इतिहास में कभी वो मुद्रा अंतरराष्ट्रीय करेंसी नहीं बनी, जिस पर सरकार की अत्यधिक पकड़ हो।
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