किसी देश में अगर खाने का ज़रूरी सामान पर्याप्त मात्रा में नहीं होता है, तो उस देश को बाहर से वो सामान आयात करना पड़ता है, जिसके लिए विदेशी मुद्रा भंडार की ज़रूरत होती है. विदेशी मुद्रा हासिल करने के लिए उस देश को कुछ निर्यात करने की ज़रूरत पड़ती है, जिसके लिए अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में प्रतिस्पर्धा के लिए भी तैयार रहना चाहिए.
लेकिन लंबे अंतराल में केंद्र सरकार को इस बात पर ध्यान देने की ज़रूरत है कि भारत सरकार अपने आयात बिल को कैसे कम कर सके.पारंपरिक तौर पर माना जाता है कि किसी देश का विदेशी मुद्रा भंडार कम से कम 7 महीने के आयात के लिए पर्याप्त होना चाहिए.
श्रीलंका में आज जो कुछ हो रहा है वो कहानी आर्थिक संकट के रूप में शुरू हुई लेकिन इस आर्थिक संकट का असर राजनीतिक संकट के रूप में अब दुनिया के सामने है.
वैसे भारत में सभी सरकारें पक्षपातपूर्ण रवैये के साथ ही काम कर रही है.
भारत के आयात बिल का बड़ा हिस्सा इन पर भी ख़र्च होता है.इस निर्भरता को कम करने के लिए सरकार के साथ साथ जनता को भी पहल करने की ज़रूरत है.श्रीलंका संकट का दूसरा पहलू राजनीतिक भी है. उस लिहाज से भी कई ऐसी चीज़ें हैं जो भारत सीख सकता है.
श्रीलंका में बहुसंख्यक आबादी सिंहला है और तमिल अल्पसंख्यक. वहाँ की सरकार पर अक्सर बहुसंख्यकों की राजनीति करने का आरोप लगते रहे हैं.श्रीलंका के बारे में वो कहते हैं कि जिस तरह से वहां सत्ता राजपक्षे परिवार का सालों से दबदबा रहा है, वैसे ही हालात कुछ कुछ भारत में भी है. यहाँ भी आर्थिक और राजनीतिक फैसले लेने का अधिकार सरकार के कुछ चुनिंदा सलाहकारों के हाथ में है. वैसे भारत में सभी सरकारें पक्षपातपूर्ण रवैये के साथ ही काम कर रही है.
गवर्नेंस को कभी नज़रअंदाज नहीं करना चाहिए और केवल वोट की राजनीति के लिए फैसले नहीं लेने चाहिए जैसा श्रीलंका सरकार ने किया है .
आज भारत में भी सभी राज्यों पर हिंदी भाषा थोपे जाने का आरोप कई ग़ैर बीजेपी शासित राज्य लगा रहे है. हिजाब, लाउडस्पीकर, मंदिर-मस्जिद विवाद, मीट पर विवाद की ख़बरें इन दिनों देश के अलग अलग राज्यों में आए दिन आ रही हैं.
श्रीलंका की आज के हालात के लिए वो कई वजहों को ज़िम्मेदार मानती है. उनके मुताबिक़ कर्ज़ का बोझ, सरकार चलाने का तरीका, उनकी नीतियां सब कहीं ना कहीं ज़िम्मेदार हैं. इस वजह से वो कहती हैं कि भारत सरकार इतना सबक तो ले सकती है कि गवर्नेंस को कभी नज़रअंदाज नहीं करना चाहिए और केवल वोट की राजनीति के लिए फैसले नहीं लेने चाहिए जैसा श्रीलंका सरकार ने किया.
टैक्स में छूट की वजह से सरकार की कमाई पर बहुत असर पड़ा.
2019 में राष्ट्रपति चुनाव के मद्देनज़र गोटाबाया राजपक्षे जनता को टैक्स में छूट देने का वादा किया था. जब वो सत्ता में आए तो उन्होंने इसे लागू भी कर दिया. वादा करते समय केवल चुनावी फ़ायदा देखा गया, जानकारों की राय या अर्थव्यवस्था पर असर को नज़रअंदाज़ किया गया. ऐसे में ज़रूरत थी कि संसद और न्यायपालिका या सिविल सोसाइटी की आवाज़ मुखर होती.
तत्कालीन रहत के लिए गए फैसले लंबे समय में नुक़सानदायक हो सकते हैं.
अप्रैल 2021 में गोटाबाया राजपक्षे ने खेती में इस्तेमाल होने वाले सभी रसायनों के आयात पर रोक लगाने की घोषणा कर दी. श्रीलंका सरकार इस फैसले के दूरगामी परिणाम के बारे में नहीं सोच पाई. नतीजा ये हुआ कि पैदावार पर असर पड़ा. बिना खाद के कृषि उत्पादन बहुत कम हुआ. नवंबर आते आते सरकार को फैसला बदलना पड़ा. तत्कालीन रहत के लिए गए फैसले लंबे समय में नुक़सानदायक हो सकते हैं.
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