America’s position as a world currency
रिपोर्ट के मुताबिक इस समय दुनिया में कुल 12.8 ट्रिलियन डॉलर का फॉरेन रिजर्व करेंसी (विदेशी मुद्रा भंडार) है। इसका करीब 60 फीसदी हिस्सा डॉलर में रखा गया है। यह अमेरिका के लिए एक बड़ी सुविधा है। इससे अमेरिका को यह सुविधा मिलती है कि वह अपनी ही मुद्रा में दूसरे देशों से कर्ज ले सकता है। इसका मतलब यह भी है कि अगर डॉलर का मूल्य गिरता है, तो अमेरिका पर कर्ज का बोझ भी घट जाता है। इसके अलावा इस कारण अमेरिकी कारोबारियों को यह सुविधा मिली हुई है कि वे बिना कन्वर्जन फीस दिए अंतरराष्ट्रीय लेन-देन करते हैं।
भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने डॉलर को ‘व्यापक विनाश का आर्थिक हथियार’ कहा है।
डॉलर के इसी वर्चस्व के कारण अमेरिका दूसरे देशों पर प्रतिबंध लगा कर उनकी अर्थव्यवस्था को क्षतिग्रस्त करने में सक्षम बना रहता है। चूंकि ज्यादातर देश अपने धन का एक बड़ा हिस्सा डॉलर में रखते हैं, इसलिए अमेरिका जब चाहे उनके धन को जब्त करने की स्थिति में भी रहता है। हाल के वर्षों में उसने ऐसा वेनेजुएला, ईरान, अफगानिस्तान और अब रूस के साथ किया है। अमेरिका की इस ताकत के कारण ही भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने डॉलर को ‘व्यापक विनाश का आर्थिक हथियार’ कहा है।
अमेरिका में भी महसूस किया जाने लगा है कि दुनिया की रिजर्व करेंसी के रूप में डॉलर की हैसियत खतरे में है। टीवी चैनल सीएनएन की वेबसाइट पर छपे एक विस्तृत विश्लेषण कहा गया है- ‘अमेरिका के पास दुनिया की सबसे शक्तिशाली सेना जरूर है, लेकिन उसका सबसे बड़ा हथियार डॉलर है। लेकिन विश्व मुद्रा भंडार के रूप में अमेरिका की हैसियत अब खतरे में दिख रही है।
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने अपने एक ताजा शोधपत्र में बताया है कि पिछले दो दशक में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा भंडार में डॉलर का हिस्सा घटता चला गया है।
लेकिन यही ताकत अब डॉलर के लिए खतरे की घंटी बन गई है। अमेरिकी रणनीतिकार मिकल हार्टनेट ने कहा है कि डॉलर को हथियार बनाने के कारण विश्व वित्तीय व्यवस्था विखंडित हो रही है। इससे विदेशी मुद्रा भंडार के रूप में अमेरिका की हैसियत क्षीण होती जा रही है। उधर अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने अपने एक ताजा शोधपत्र में बताया है कि पिछले दो दशक में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा भंडार में डॉलर का हिस्सा घटता चला गया है।
संकेत यह है कि डॉलर की कीमत पर युवान की अंतरराष्ट्रीय भूमिका बढ़ेगी।
ये वही अवधि है जब अमेरिका ने ‘आतंक के खिलाफ युद्ध’ छेड़ा और वह प्रतिबंधों का अधिक से अधिक सहारा लेने लगा। इसका नतीजा यह हुआ है कि अब बहुत देश अपने विदेशी मुद्रा भंडार में डॉलर की जगह चीन की मुद्रा युवान को ज्यादा जगह देने लगे हैं। के प्रति घट रहे आकर्षण का एक कारण अमेरिकी अर्थव्यवस्था में आई कमजोरी को भी माना जा रहा है। अमेरिका सरकार पर कर्ज जीडीपी की मात्रा के लगभग 125 फीसदी के बराबर हो गया है। इसके अलावा इस समय अमेरिका में महंगाई दर 40 साल के सबसे ऊंचे स्तर पर है। इसका खराब असर आम अर्थव्यवस्था पर पड़ रहा है।
आईएमएफ के ताजा शोधपत्र को इस संस्था के अर्थशास्त्रियों सेरकान अर्सलानल्प एवं चीमा सिम्पसन बेल, और यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफॉर्निया बर्कले के बैरी आइचेनग्रीन ने तैयार किया है। इसमें कहा गया है कि अब जो बातें कही जा रही हैं, वे इस बात का संकेत हैं कि आने वाले समय में किस तरह का अंतरराष्ट्रीय सिस्टम सामने आ सकता है। संकेत यह है कि डॉलर की कीमत पर युवान की अंतरराष्ट्रीय भूमिका बढ़ेगी।
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