बेलागंज प्रखंड( बिहार के गया जिला ) के मुख्य थाना अंतर्गत पड़ने वाले आढ़तपुर गांव की ग्रामीणों ने 2015 मे ही बालू घाटों का खनन का लिखित विरोध अपने विधायक सुरेन्द्र प्रसाद यादव से किया था.विधायक ने इसको लेकर साल 2015 में ज़िला पदाधिकारी और साल 2020 में सहायक ख़नन पदाधिकारी को पत्र लिखा था.
यादव बहुल इस गांव में ज्यादातर लोगों का पेशा खेती किसानी है. अपने विधायक को लिखे पत्र में ग्रामीण ये साफ साफ लिख रहे है कि बालू उठाव से बारीश के वक़्त गांव में पानी आ जाता है, जिसके चलते वो परेशानी झेलते हैं. ग्रामीण कहते है, “हमारा गांव विलुप्त हो जाएगा. बालू उठाने का यहां परमिशन नहीं मिलना चाहिए”.
आढ़तपुर गांव की 6 महिलाएं और 4 पुरूषों को पुलिस ने गिरफ़्तार किया है.
बीते 15 फरवरी को इस गांव में बालू घाट के सीमा निर्धारण (बांउड्री घेराव) के लिए गई पुलिस और स्थानीय ग्रामीणों के बीच हिंसक संघर्ष हुआ था. बेलागंज प्रखंड( बिहार के गया जिला ) के मुख्य थाना अंतर्गत पड़ने वाले आढ़तपुर गांव की 6 महिलाएं और 4 पुरूषों को पुलिस ने गिरफ़्तार किया है.15 फरवरी को यहां गया ज़िले के जिला परिवहन पदाधिकारी, अंचलाधिकारी, अपर पुलिस अधीक्षक, खनिज विकास पदाधिकारी, अपर पुलिस अधीक्षक, बेलागंज, चाकन्द, मेन, पाईबिगहा यानी चार थानों के थानाध्यक्ष और पुलिसकर्मियों का एक दल आया था.
कुछ ग्रामीणों के अनुसार जिनका घर नदी के इलाके के बिल्कुल नज़दीक है वो बताते हैं, “200 से 300 की संख्या में लोग थे. तकरीबन डेढ़ बजे दोपहर के आसपास ये लोग गांव में घुसे और नदी के इलाक़े में जाकर नापी करने लगे. चूंकि हम लोग लगातार बालू उठाव का विरोध करते रहे है, इसलिए हम लोगों ने उस दिन भी विरोध किया तो दोनों तरफ़ से हाथापाई हो गई. जिसके बाद पुलिसवालों ने आंसू गैस के गोले छोड़े.
पुलिसवाले ने कुछ ग्रामीणों को नदी के पास ले गए और 12 लोगों को हाथ पीछे बांधकर दो घंटे बैठाए रखा.
इससे बचने के लिए हम लोग गांव की तरफ भागे और जहां सुरक्षित लगा, वहीं घुस गए. लेकिन पुलिसवालों ने घर में घुसकर सबको लाठी और जूतों से मारा. इसके बाद पुलिसवाले हम लोगों को नदी के पास ले गए और 12 लोगों को हाथ पीछे बांधकर दो घंटे बैठाए रखा.कई लोगों के शरीर पर जख़्म के निशान देखे जा सकते हैं.इन सभी का आरोप है कि ये लोग अपने इलाज के लिए बेलागंज सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र और गया सदर अस्पताल गए, लेकिन वहां इन्हें समुचित इलाज नहीं मिला.
बिहार में बालू को ‘पीला सोना’ कहा जाता है और इसका अवैध ख़नन एक बड़ा मुद्दा रहा है. ख़नन एवं भूतत्व विभाग के वेबसाइट के मुताबिक़ राज्य के 29 जिलों में बालू ख़निज उपलब्ध है जिसे 25 बालू घाटो इकाईयों के रूप में संगठित किया गया है.इन बालू घाटों से अवैध खनन से हो रही काली कमाई का अंदाज़ा आप नहीं लगा सकते.
बालू घाटों से अवैध खनन से हो रही काली कमाई का अंदाज़ा आप नहीं लगा सकते.
अंदाज़ा इसी बात से लगा सकते है कि बीते साल भोजपुर के तत्कालीन एस पी राकेश कुमार दूबे पर जब आर्थिक अपराध इकाई का शिकंजा कसा था.उन पर बालू के अवैध ख़नन और अन्य तरह के गैरक़ानूनी व्यापार से करोड़ों की कमाई का आरोप है. उस वक्त स्थानीय मीडिया में ये बात सामने आई थी कि 42वीं बैच के पुलिस अधिकारी राकेश दुबे में अब तक के सेवाकाल के दौरान वेतन निकाला ही नहीं.
बालू के कारोबार को जातीय फ्रेम में भी देखा जाना चाहिए. पहले राजपूत और भूमिहार जाति का इस पर क़ब्जा था. फिर लालू राज में यादव आए. नीतीश कुमार की सरकार में ये सब कुछ टूटा और अभी आपको कई जातियों के बीच बालू कारोबार और उस पर वर्चस्व स्थापित करने के लिए संघर्ष दिखता है.
गांववाले कुछ स्थानीय नेताओं से आश्रय पाकर अवैध ख़नन कर रहे है.
कुछ लोगों ने कहा है की गांववालों को डूब का डर है तो गार्ड वॉल बनवाएं. ये सब कुछ अवैध बालू ख़नन के लिए हो रहा है. गांववाले कुछ स्थानीय नेताओं से आश्रय पाकर अवैध ख़नन कर रहे है. नदी के किनारे बड़े-बड़े गड्डे इसके सबूत है. ये लोग नहीं चाहते कि लाइसेंसधारी (जिसे बालू उठाव का लाइसेंस सरकार ने दिया) बालू का ख़नन करें. जबकि हमने जनवरी से मार्च 2022 तक ख़नन के लिए सरकार को डेढ़ करोड़ रुपये जमा किए हैं.
सिटी एसपी गया, राकेश कुमार जो एसएसपी के अवकाश में होने के चलते ज़िले का प्रभार देख रहे है, उन्होंने बताया, “इस मामले में टेंडर जिनको मिला था, वो जब भी जाते थे तो स्थानीय लोग बालू उठाव नहीं करने दे रहे थे. उन्होने कई बार इसकी शिकायत प्रशासन को की. प्रशासन पहले भी वहां जाता रहा लेकिन गांव वालों ने ख़नन निरीक्षक के साथ मारपीट की. सीमांकन नहीं करने देने की वजह थी कि ये लोग बालू की चोरी करना चाहते हैं.”
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