बिहार सरकार राज्य में शराबबंदी कानून को लागू करने को लेकर एड़ी चोटी का जोर लगाए हुए है. यही नहीं मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी शराबबंदी को लेकर लोगों में जागरूकता फैलाने के ख्याल से समाज सुधार अभियान यात्रा कर रहे हैं. दूसरी ओर बिहार के जमुई जिले में एक ऐसा गांव भी है, जहां पिछले कई दशकों से शराबबंदी है. यहां का कोई भी व्यक्ति शराब को हाथ तक नहीं लगता.
जमुई जिले के गिद्धौर प्रखंड के गंगरा गांव का रहने वाला कोई भी व्यक्ति गांव में रह रहा हो या बाहर, लेकिन वह शराब से कोसों दूर रहता है. बताया जाता है कि यह धार्मिक मान्यता अब यहां के लोगों के लिए परंपरा बन गई है. राज्य में शराबबंदी कानून लागू हुए करीब छह साल गुजर गए हैं, लेकिन अब तक इस गांव से शराबबंदी कानून को लेकर कोई मामला भी गिद्धौर थाना नहीं पहुंचा है.
धार्मिक मान्यता के चलते नहीं पीते है शराब
ग्रामीण बताते हैं कि दशकों से यहां धार्मिक मान्यता है कि यहां के लोगों को शराब पीने से अपशगुन होता है. ग्रामीण बताते हैं कि गंगरा गांव में रहने वाले लोग अपने आराध्य कुलदेवता कोकिलचंद बाबा की पूजा करते हैं. बाबा कोकिलचंद के त्रिसूत्र मंत्र शराब से दूर रहना, नारी का सम्मान करना, अन्न की रक्षा करना है, जिसके प्रति संकल्पित होकर गांव के लोग जीवन जीते हैं.
इस गांव में करीब 400 घर और करीब 3500 की आबादी है, लेकिन कोई भी व्यक्ति शराब का सेवन नहीं करता. गांव में मान्यता है कि इस गांव में न तो शराब लाई जाती है और न ही कोई शराब पीकर आ सकता है. लोगों का कहना है कि जिसने भी शराब पीकर का गांव में आने की कोशिश की उसका कोई न कोई नुकसान हुआ.
जिला मुख्यालय से लगभग 20 किलोमीटर दूर जमुई-झाझा सड़क मार्ग के दाईं ओर बसे गंगरा गांव के रहने वाले रामाशीष सिंह कहते हैं कि यहां के लोग शराब तो नहीं ही पीते हैं अन्य नशीली चीजों से भी कमोबेश परहेज करते हैं.
कुलदेवता को नहीं पसंद शराब
गंगरा पंचायत की मुखिया अंजनी सिंह बताती हैं कि इस गांव में बाबा कोकिलचंद का एक मंदिर भी है जहां परंपरा के मुताबिक प्रतिदिन पूजा होता है. इस दौरान परंपरा के मुताबिक करीब सभी लोग इकट्ठे होते हैं और पूजा में शामिल होते हैं. मान्यता है कि कुलदेवता को शराब बिल्कुल पसंद नहीं है. उन्होंने बताया कि सदियों से इस गांव में किसी पार्टी और फंक्शन में भी शराब नहीं परोसी जाती है. यदि कोई रिश्तेदार शराब पी लेता है, तो उसे भी गांव में आने की मनाही होती है.
ग्रामीण बताते हैं कि इसे अंधविश्वास मानकर कुछ साल पहले कुछ लोगों ने इस परंपरा को तोड़ने की कोशिश की थी, लेकिन उनके परिवार के साथ अशुभ होता चला गया. इसके बाद लोग अंजाने भय के कारण भी शराब को हाथ नहीं लगाते. ग्रामीणों का दावा है कि यहीं नहीं, गांव के कई लोग बाहर पढ़ने भी जाते हैं, लेकिन वे भी शराब का सेवन नहीं करते हैं.
बाबा कोकिलचंद के विचार मंच के सदस्य और शिक्षक, समाजसेवी चुनचुन कुमार ने बताया कि गंगरा गांव में प्राचीन काल में बाबा कोकिलचंद का मिट्टी के पिंड की स्थापना की गई थी.
तब से आज तक उसी मिट्टी के पिंड में बाबा कोकिलचंद विराजमान हैं. यहां भव्य मंदिर निर्माण कार्य चल रहा है, लेकिन उस मिट्टी की पिंड को कोई छेड़छाड़ नहीं कर सकता है.
गिद्धौर थाना प्रभारी अमित कुमार भी कहते हैं कि गंगरा गांव से अब तक शराब से संबंधित कोई मामला थाने में दर्ज नहीं हुआ है. उन्होंने बताया है कि बाबा कोकिल चंद का मंदिर होने की वजह से गांव में शराब सेवन पर पूरी तरह वर्षों से पाबंदी है.
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