साल 2020 की तुलना में 2021 में बच्चों के खिलाफ अपराधों की संख्या में चिंताजनक वृद्धि हुई है. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों से पता चलता है कि 2020 में बच्चों के खिलाफ हिंसा के दर्ज मामले 1,28,531 थे, जो कि 2021 में 16.2 प्रतिशत की बढ़ोतरी के साथ 1,49,404 हो गए.
देश में छोटे बच्चे ही नहीं बल्कि नाबालिग लड़कियां भी हिंसक अपराध की शिकार हो रही हैं. स्कूल या ट्यूशन जाते-आते वक्त भी उनके साथ अपराध की वारदात को अंजाम दिया जाता है. खासकर लड़कियों को अपने ही मोहल्ले या स्कूल जाते समय छेड़खानी का सामना करना पड़ता है. कई बार छात्राएं घर पर इस तरह की घटनाओं को बताने से कतराती हैं, उन्हें इस बात का डर होता है कि अगर वह इसकी शिकायत परिवार से करेगी तो उनका स्कूल जाना बंद हो जाएगा.
एक सवाल…बेटियों को कैसे बचाएं?
बीते दिनों दिल्ली के संगम विहार में एक छात्रा की तीन युवकों ने गोली मार दी थी, बताया जा रहा है कि आरोपियों में से एक छात्रा के साथ पिछले दो साल से सोशल मीडिया के जरिए संपर्क में था, लेकिन पिछले चार-पांच महीने से छात्रा उससे बात नहीं कर रही थी. पुलिस का कहना है कि उसने पीछा करने वाले आरोपी को गिरफ्तार कर लिया है. इसी तरह से नाबालिग लड़कियों के साथ अपराध के कुछ और गंभीर मामले हाल के दिनों देश के अलग-अलग हिस्सों से सामने आए हैं. झारखंड के दुमका में एक 15 साल की लड़की को एकतरफा प्यार करने वाले ने पेट्रोल छिड़क कर जिंदा जला दिया था. पांच दिनों तक पीड़ित लड़की का इलाज अस्पताल में चला लेकिन उसकी जान नहीं बच पाई.
इस तरह की एक और घटना झारखंड में अगस्त के शुरुआती दिनों में हुई थी. आरोप है कि चतरा में एक घर में जब पीड़ित लड़की सो रही थी तब एक लड़के ने उस पर एसिड अटैक किया. 12 दिनों बाद में पुलिस ने आरोपी को गिरफ्तार कर लिया था.
अपराध घटने का नाम नहीं…
एनसीआरबी 2021 के आंकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि बच्चों, विशेष रूप से लड़कियों के खिलाफ यौन अपराध लगातार बढ़ रहे हैं, क्योंकि बच्चों के खिलाफ हर तीन अपराधों में से एक पॉक्सो अधिनियम के तहत दर्ज किया जाता है. महत्वपूर्ण बात यह है कि बच्चों के खिलाफ यौन अपराध बहुत मजबूत लिंग झुकाव दिखाते हैं, क्योंकि 12 से 16 साल के भीतर किशोर लड़कियों के साथ हुए यौन अपराध पॉक्सो अधिनियम के तहत दर्ज किए गए 99 प्रतिशत से अधिक मामलों में हैं.
चाइल्ड राइट्स एंड यू (CRY) की सीईओ पूजा मारवाह ने डीडब्ल्यू से कहा, “हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि हमारे देश में कई मामले अक्सर रिपोर्ट नहीं किए जाते हैं, खासकर दूरदराज के इलाकों में, इसलिए बच्चों के खिलाफ किए गए अपराधों का वास्तविक पैमाना स्पष्ट रूप से दिखाई देने वाली संख्या से अधिक हो सकता है.”
उन्होंने कहा, “कई सरकारी उपायों के बावजूद, हमारे बच्चे कहीं भी सुरक्षित और संरक्षित बचपन के करीब नहीं हैं.”
CRY का कहना है कि कोविड महामारी ने बच्चों को और अधिक असुरक्षित बनाया है और जब बात बाल संरक्षण से संबंधित मुद्दों की आती है तो और कई स्तरों पर बच्चों के लिए जोखिम कई गुना बढ़ सकता है.
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