राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग की टीम ने सोमवार को एमजीएम अस्पताल का दौरा किया था। टीम ने निरीक्षण में कई खामियां पाईं। टीम के सदस्यों ने कई बिंदुओं पर कड़ी आपत्ति जताई। एमजीएम अस्पताल में आई बैंक खोलने की योजना भी फाइलों में दबकर रह गई है। इससे नेत्रहीनों की रोशनी लौटने आस भी खत्म हो गई है। जहाँ आज के प्राइवेट अस्पतालों में इलाज के लिए लाखो-करोड़ो रूपए खर्च करने पड़ते है, ऐसे में गरीब लोगों का सहारा सिर्फ ये सरकारी अस्पताल ही होते है. लेकिन वहां का ये हाल है. तीन साल पहले स्वास्थ्य विभाग ने एमजीएम अस्पताल में आई बैंक खोलने का निर्देश दिया था।
आई बैंक में नेत्रदान के बाद इसे सुरक्षित रखने की सुविधा उपलब्ध रहती है
इसके लिए 30 लाख फंड भी आवंटित हुआ था। लेकिन आई बैंक से संबंधित उपकरण की खरीदारी अबतक नहीं हो पाई है। एमजीएम अस्पताल में आई बैंक खुलने से दृष्टिहीनों के आंख की रोशनी लौटने की संभावना बढ़ जाती, क्योंकि आई बैंक में नेत्रदान के बाद इसे सुरक्षित रखने की सुविधा उपलब्ध रहती है। आंखों के कॉर्निया सुरक्षित रखने के साथ जरूरतमंदों को उपलब्ध कराने में सहूलियत होती। कॉर्निया मृत्यु के छह घंटे के भीतर मृतक के शरीर से निकाला जाता है।
दृष्टिहीनों के लिए 2018 में स्वास्थ्य विभाग की प्रधान सचिव निधि खरे ने स्टेट ब्लाइंडनेस प्रोग्राम की टीम, एजीएम प्रबंधन और स्वास्थ्य विभाग की टीम को 15 दिनों के भीतर आई बैंक चालू करने का निर्देश दिया था। तत्कालीन अधीक्षक डॉ. बी भूषण और एचओडी के साथ बैठक भी की थी। टीम में रिम्स के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. सुनील कुमार, स्टेट ब्लाइंडनेस प्रोग्राम के डॉ. राजेंद्र पासवान व डॉ. अनिल कुमार शामिल थे। लेकिन अब तक आई बैंक को लेकर कोई भी बात सामने नहीं आई है जबकि बनने की घोषणा 2018 में ही हो गई थी.
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