जैसा कि आपलॉग सब जानते हैं कि पिछले कुछ दिनों से राहुल गांधी और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल समेत तमाम नेता कोविड वैक्सीन के बूस्टर डोज़ दिए जाने की तारीख़ पूछ रहे थे।राहुल का कहना था कि जब वैक्सीन के बूस्टर डोज़ दिए ही जाने हैं तो देरी क्यों की जा रही है। इस पर नेशनल टास्क फोर्स ने कहा था कि सरकार की प्राथमिकता सबसे पहले वयस्क लोगों के वैक्सीनेशन कार्यक्रम को पूरा करने की होगी। इसके लिए बनाया गया राष्ट्रीय तकनीकी सलाहकार समूह (NTAGI) बूस्टर डोज के बारे में फाइनल पॉलिसी तय करेगा।
राजनीति से लेकर स्वास्थ्य और चिकित्सा जगत से जुड़े लोगों के बीच चल रही इस बहस पर भारत का रुख अब साफ़ हो गया है। 25 दिसंबर 2021 की रात PM Modi ने राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में इसे लेकर कुछ ज़रूरी घोषणाएं की हैं।
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आईए जान लेते है क्या है घोषणाएं
#3 जनवरी 2022 से 15 साल से लेकर 18 साल तक के किशोरों को वैक्सीन देना शुरू किया जाएगा।
# 10 जनवरी 2022 से स्वास्थ्य और फ्रंटलाइन वर्कर्स को भी प्रीकॉशन डोज़ देना शुरू किया जाएगा।
# 60 वर्ष या उसके ऊपर के लोग जो दूसरी बीमारियों से जूझ रहे हैं, वो भी अपने डॉक्टर की सलाह से प्रीकॉशन डोज़ ले सकेंगे।
# देश में जल्दी ही नेज़ल वैक्सीन (Nasal Vaccine) और DNA Vaccine शुरू होगी।
PM ने करीब 15 मिनट तक चले अपने इस संबोधन में देश के अस्पतालों में बेड और ऑक्सीजन की उपलब्धता को लेकर कई और बातें भी कहीं। अफवाहों से बचने को कहा, ये भी कहा कि कोरोना अभी गया नहीं है।
बूस्टर डोज़ की ज़रूरत क्यों?
WHO के मुताबिक कोविड-19 के नए मामलों में ज्यादातर ऐसे लोग हैं जिन्होंने वैक्सीन नहीं ली है, लेकिन एक बड़ी संख्या ऐसे लोगों की भी है, जिनका वैक्सीनेशन हो चुका है। राहत की बात ये है कि ओमिक्रॉन से संक्रमित हो रहे वो लोग जो वैक्सीन ले चुके हैं, उनमें अनवैक्सीनेटेड लोगों की तुलना में कम गंभीर लक्षण दिखाई दिए हैं, और ज्यादातर को अस्पताल जाने की ज़रूरत नहीं पड़ रही है।
लेकिन बूस्टर डोज़ की ज़रूरत क्यों है? इसके पीछे दो-तीन तर्क हैं। WHO के मुताबिक संक्रमितों का नया डेटा इस बात के संकेत दे रहा है कि वैक्सीन लगवा चुके लोगों में कोविड-19 के खिलाफ़ वैक्सीन का प्रभाव वक़्त के साथ कम हो रहा है। मेडिकल क्षेत्र की जानी-मानी पत्रिका नेचर की एक रिपोर्ट के अनुसार, तर्क ये है कि मॉडर्ना, एस्ट्राजेनेका, फ़ाइज़र और बाकी सभी वैक्सीन शुरुआत में कोरोना के उस वैरिएंट के लिए बनाई गईं थीं, जो साल 2019 में चीन के वुहान से शुरू हुआ। कोरोना के नए वैरिएंट, ख़ास तौर पर ओमिक्रॉन के खिलाफ़ ये सभी वैक्सीन वक़्त के साथ कारगर नहीं रहती हैं।
कोरोना के खिलाफ़ प्रतिरोधक क्षमता पूरी दुनिया में एक जैसी नहीं
एक तथ्य ध्यान में रखने वाला ये भी है कि कोरोना के खिलाफ़ प्रतिरोधकता पूरी दुनिया में एक जैसी नहीं है।वजह दो हैं,एक तो अलग-अलग देशों में वैक्सीन अलग-अलग दी गई हैं और दूसरा कि सभी समुदायों के लोगों की शारीरिक और रोग-प्रतिरोधक क्षमता भी अलग-अलग हो सकती है।WHO के मुताबिक, अभी तक कोई स्टडी ऐसी नहीं है, जो इस फर्क को ढंग से बता सके कि किस कम्युनिटी के लोगों पर ओमिक्रॉन कितना असर कर सकता है।कई वैज्ञानिक भी ये कहते हैं कि साउथ अफ्रीका में केस ज्यादा हैं लेकिन गंभीरता का स्तर उतना डरावना नहीं है, लेकिन ज़रूरी नहीं है कि यही पैटर्न भारत या दूसरे देशों पर भी लागू हो।
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एक्सपर्ट क्या कहते हैं?
बूस्टर या थर्ड डोज़ की ज़रूरत क्यों है l इस पर विशेषज्ञों की भी कुछ बातें जान लेते हैं, एम्स दिल्ली की प्रोफेसर एमवी पद्मा श्रीवास्तव ने न्यूज एजेंसी ANI से बातचीत में कहा था कि एक वर्ग में इम्युनिटी कम है और वैक्सीन के दोनों डोज के बावजूद उनमें ज़रूरत भर एंटीबॉडीज नहीं बन रही हैं।
इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) के डॉ. समिरन पंडा ने हाल ही में कहा था कि वैक्सीन Covid-19 के वायरस को रोकती नहीं हैं बल्कि संक्रमण की गंभीरता को कम करती हैं।ऐसा कोई प्रमाण नहीं है कि जिन्हें वैक्सीन लगी है उन्हें संक्रमण नहीं होगा।बूस्टर डोज या तीसरे शॉट पर डिबेट में जरूरी है कि दोनों प्राइमरी डोज का प्रोग्राम प्रभावित न हो। तीसरे डोज की ज़रूरत उन लोगों को है जो ‘इम्युनोसप्रेस्ड’ हैं। यानी जिनमें पर्याप्त इम्युनिटी नहीं बन रही है।
बूस्टर डोज़ नुकसान पहुंचा सकता है?
वैक्सीन के साइड इफ़ेक्ट, और सम्भावित नुकसानों पर हम अगले आलेख में विस्तार से बात करेंगे।फ़िलहाल बूस्टर डोज़ के खिलाफ़ खड़े नज़र आ रहे एक्सपर्ट्स की राय जान लेते हैं। मोटे तौर पर इनका कहना है कि बेशक वैक्सीन लेने से शरीर में एंटीबॉडीज़ भले बन रहीं हों, लेकिन कोई स्टडी इस बात का जवाब नहीं देती है कि क्या वैक्सीन लेने से बनी एंटीबाडीज़ वायरस को रोक सकती है।
कुछ इम्युनोलॉजिस्ट ये भी कह रहे हैं कि वैक्सीन से बनने वाली एंटीबॉडीज़ कई बार शरीर को भी नुकसान पहुंचा सकती हैं,और ऐसा कहने के पीछे आधार भी है। एक स्थिति होती है जिसे ADE यानी एंटीबॉडी डिपेंडेंट एन्हांसमेंट कहते हैं। इस स्थिति में एंटीबॉडीज़, संक्रमण वाले एंटीजन से लड़ने और उसे खत्म करने के बजाय और ज्यादा एंटीजन बनाने लगती हैं।मोटा-माटी समझें तो बीमारी लाने वाले कारकों की तादात कम करने के बजाय और बढ़ाने लगना।
कौन सा बूस्टर डोज सही?
दिल्ली AIIMS के डायरेक्टर डॉक्टर रणदीप गुलरिया सलाह देते हैं कि अगर बूस्टर डोज लगवाएं तो नई वैक्सीन का लगवाएं। माने वही नहीं जो आपने इससे पहले फर्स्ट और सेकंड डोज़ में लगवाई है। ऐसे समझिए कि अगर आपने प्राइमरी दोनों डोज़ Covishield Vaccine के लिए हैं, तो तीसरे डोज़ यानी बूस्टर डोज आपको कोवैक्सीन का लेना चाहिए,और इसी का वाइस-वर्सा।
इसी तरह की बात ICMR की एक स्टडी में सामने आई, कहा गया कि वैक्सीन की मिक्स डोज़ लेना सुरक्षित तो है ही ज्यादा कारगर भी है। मिक्स डोज़ माने पहले अगर पहले Covaxin की एक डोज़ ली है तो बाद में Covishield की डोज़ लेना ज्यादा कारगर रहेगा।
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