सोमवार (7 Feb.)को लोकसभा में प्रधानमंत्री ने कहा, “पहली लहर के दौरान देश जब लॉकडाउन का पालन कर रहा था. सारे हेल्थ एक्सपर्ट कह रहे थे कि जो जहां है वहीं पर रुके. सारी दुनिया में ये संदेश दिया जाता था, क्योंकि मनुष्य कहीं जाएगा और वो कोरोना से संक्रमित है तो कोरोना साथ ले जाएगा. तब कांग्रेस के लोगों ने क्या कहा, मुंबई के रेलवे स्टेशन पर खड़े रहकर, मुंबई छोड़कर जाने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए, मुंबई में श्रमिकों को टिकट दिया गया, मुफ्त में टिकट दिया गया. लोगों को प्रेरित किया गया कि जाओ. महाराष्ट्र में हमारे ऊपर जो बोझ है वो जरा कम हो, तुम उत्तर प्रदेश के हो, तुम बिहार के हो, जाओ वहां कोरोना फैलाओ, आपने बहुत बड़ा पाप किया.”
अधिकतर श्रमिकों का पलायन उत्तर प्रदेश और बिहार की तरफ हो रहा था.
सीएम अरविंद केजरीवाल के बाद कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने भी पीएम मोदी के बयान का जवाब दिया. गोवा में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में प्रियंका गांधी ने कहा, “क्या पीएम मोदी ये चाहते थे कि गरीबों को असहाय छोड़ दिया जाता, जब वे पैदल ही अपने घर लौटना शुरू हो गए थे. जिन लोगों को उन्होंने छोड़ दिया था, उनके पास घर जाने के लिए कोई रास्ता नहीं बचा था. वे लोग पैदल ही अपने घर जाना शुरू हो गए थे. क्या वे ये चाहते थे कि किसी को उनकी मदद नहीं करनी चाहिए थी?
ऐसे मुश्किल हालात में लाखों की संख्या में श्रमिक अपने बूते घरों की तरफ चल दिए.
एक नजर डालते है उस घटना पर — 24 मार्च 2020 को कोरोना के ख़तरों के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश में 21 दिनों के पहले संपूर्ण लॉकडाउन की घोषणा की थी. कोरोना को रोकने के लिए घरों से बाहर निकलने पर पूरी तरह पाबंदी लगा दी गई थी. देश में हर गली, मोहल्ले, कस्बे, ज़िले में लॉकडाउन लगा दिया गया था .
फिर देखते-देखते देश के अलग इलाकों में कामगारों के सामने कोरोना के साथ-साथ रोज़ी-रोटी का सवाल खड़ा हो गया. चौतरफा मुसीबतों के बीच अधिकतर श्रमिकों के सामने यही रास्ता बचा था कि वो किसी तरह अपने घर लौट जाएँ. लेकिन लॉकडाउन में यातायात पर प्रतिबंध लगा हुआ था. ऐसे मुश्किल हालात में लाखों की संख्या में श्रमिक अपने बूते घरों की तरफ चल दिए. कोई पैदल था, कोई साइकिल से, कहीं ट्रकों में भरकर तो कहीं ट्रेन की पटरियों पर चलते हुए लोग अपने घरों की तरफ पहुंच रहे थे. अधिकतर श्रमिकों का पलायन उत्तर प्रदेश और बिहार की तरफ हो रहा था. दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु, पंजाब, अहमदाबाद जैसी जगहों से लंबे समय तक पलायन जारी रहा. बहत लोगों की जन भी चली गई .
पहले लॉकडाउन के बाद दिल्ली के आनंद विहार रेलवे और बस स्टेशन पर हजारों श्रमिकों की भीड़ उमड़ी थी.
जब प्रवासी श्रमिकों की घर वापसी होने लगी तो राज्य सरकारें सतर्क हो गई. खासकर यूपी और बिहार लौटे श्रमिकों के लिए क्वारंटीन सेंटर तैयार किए गए जहां पलायन कर आए श्रमिकों को रखा जाता था. वहाँ से जाँच के बाद ही उन्हें गांव जाने की इजाज़त दी जाती थी.दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में सेंटर ऑफ सोशल मेडिसिन एंड कम्युनिटी हेल्थ सेंटर के असिस्टेंट प्रोफेसर प्राचीन कुमार घोडसकर कहते हैं कि दिल्ली, मुंबई जैसे शहरों में पहले से ही अस्पताल और चिकित्सा व्यवस्था चरमरा-रही थी, ऐसे में प्रवासी मज़दूर भले ही मजबूरी में अपने गांव लौटे लेकिन इसमें उनका एक भला भी हो गया.
अगर श्रमिक शहरों में रुकते तो कोरोना उस जगह बम की तरह फटता.
प्रोफेसर घोडसकर कहते हैं , “लोग अगर एक जगह से दूसरी जगह जा रहे हैं तो ट्रांसमिशन की संभावना बढ़ती है लेकिन जो प्रवासी मज़दूर पलायन करके गए हैं. वो दिल्ली, मुंबई जैसे शहरों में बहुत कम जगह में रह रहे थे. यहां तक कि एक कमरे में दस-दस लोग रह रहे थे. ऐसे में शहरों में श्रमिकों के बीच कोरोना वायरस के फैलने का खतरा ज्यादा था. अगर श्रमिक शहरों में रुकते तो कोरोना यहां बम की तरह फटता.”
पहले लॉकडाउन के करीब दो साल बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने श्रमिकों के पलायन के लिए अब महाराष्ट्र और दिल्ली सरकार को ज़िम्मेदार ठहराया है. इस पर विरोधी दलों ने भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पहले लॉकडाउन मे उसकी असफलता पर हमला बोला है.
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