उपायुक्त, जिला परिषद अध्यक्ष, उप विकास आयुक्त, सिविल सर्जन समेत अन्य पदाधिकारी एवं स्वयंसेवी संस्था के लोग हुए शामिल
प्रशासन तथा समाज के तौर पर भी हम सभी की जिम्मेदारी है कि ऐसे बच्चों के भविष्य निर्माण के लिए बेहतर पहल करें-उपायुक्त
पंचायत प्रतिनिधियों को जागरूक कर इस कार्यक्रम की सफलता में हर संभव मदद दिलाई जाएगी-जिला परिषद अध्यक्ष
राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग, पूर्वी सिंहभूम जिला प्रशासन, द एशिया फाउण्डेशन एवं बाल कल्याण संघ के संयुक्त तत्वावधान में संवर्द्धन कार्यक्रम -2 अन्तर्गत कोविड-19 लॉकडाउन के कारण जोखिमपूर्ण स्थिति पहुंचे पूर्वी सिंहभूम के बच्चों और उनके परिवारों के पहचान को लेकर जिले में किए गए सर्वे कार्य का प्रस्तुतिकरण आज 26 जुलाई को समाहरणालय सभागार में किया गया। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि जिला परिषद अध्यक्ष श्रीमती बारी मुर्मू, विशिष्ट अतिथि के रूप में जिला उपायुक्त विजया जाधव, उप विकास आयुक्त प्रदीप प्रसाद, सिविल सर्जन डॉ. जुझार माझी, प्रखंड विकास पदाधिकारी एवं अंचल अधिकारी बोड़ाम, प्रखंड विकास पदाधिकारी, पटमदा तथा अन्य संबंधित विभागीय पदाधिकारी शामिल हुए ।
सबसे अधिक बहरागोड़ा प्रखण्ड से 2949 बच्चे
जिले में ग्राम सभा एवं संभाधित विभागीय आंकड़ों के माध्यम से कुल 7026 जोखिमपूर्ण स्थिति में रहने वाले बच्चों को चिन्हित किया गया है, जिनमें सबसे अधिक बहरागोड़ा प्रखण्ड से 2949 और सबसे कम डुमरिया प्रखण्ड से 91 बच्चे, जबकि मुसाबनी प्रखण्ड से 724, चाकुलिया प्रखण्ड 707, गुड़ाबन्दा 651, गोलमुरी 512, पटमदा 419, घाटशिला 349, बोड़ाम 347 और धालभूमगढ़ से 236 बच्चे शामिल हैं। उसी प्रकार सूचक के अनुसार सबसे अधिक एकल माता-पिता के बच्चे 4079 और सबसे कम एच.आई.वी संक्रमित 1
बच्चे की पहचान की गयी, जबकि संकटग्रस्त परिवार के बच्चे 1339, अनाथ 595, दिव्यांग 414, बेसहारा 96, कोरोना से माता-पिता दोनों की मृत्यु के कारण अनाथ 79 बच्चे, गंभीर रोग से ग्रसित 64, बेघर 51, मानसिक रूप से बीमार 45, परित्यक्त 45, नशे की लत के शिकार 36, कुपोषित 28, बाल श्रमिक 22, नक्सल प्रभावित 21, शोषित 5, ट्रांसजेंडर 3, टैफिकिंग के शिकार 2, बाल विवाह के शिकार 2, विधि का उलंघन करने वाले किशोर 2, गुमशुदा 1 बच्चे की पहचान की गई है।
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प्रभावित बच्चों व परिवारों के आंकड़े यह प्रक्रिया अपनाते हुए संग्रहित किए गए-
प्राइमरी डाटा– ग्रामसभा के माध्यम से जिले के सभी ग्रामों के जोखिमपूर्ण स्थिति में रहने वाले बच्चे और परिवारों की पहचान ।
सेकेंडरी डाटा- जिला बाल संरक्षण पदाधिकारी, श्रम विभाग, बाल मित्र पुलिस स्टेशन में पूर्व से मौजूद आंकड़ों का संग्रहण ।
बच्चों के लिए जोखिमपर्ण स्थिति क्या है ?
- कोरोना से माता /पिता या दोनों की मृत्यु से अनाथ, 2. अनाथ (अन्य कारणों से)
- संकटग्रस्त परिवारों के बच्चे, 4. एकल माता/पिता, 5. अवैध बाल व्यापार (टैफिकिंग) से मुक्त
- बाल विह से प्रभावित, 7. विद्यालय में अनामांकित या छीजि
- बेसहारा, 9. विधि का उल्लंघन करने वाले किशोर
- परित्यक्त, 11. एच.आई.वी./ एड्स से प्रभावित / संक्रमित
- बल श्रमिक, 13. कोविड-19 लॉकडाउन अवधि में वापस आये हुए बच्चे
- शोषित/ उत्पीड़ित, 15. गंभीर रोग से प्रभावित, 16. गुमशुदा
- नक्सल प्रभावित, 18. नशे की लत के शिकार, 19. बेघर
- कुपोषित, 21. मानिसक रूप से बीमार, 22. दिव्यांग
- ट्रांसजेंडर
बच्चों को चिन्हित करने का प्रयास काफी सराहनीय-डीसी
उपायुक्त विजया जाधव ने कहा कि संवर्धन कार्यक्रम -2 के तहत जिले के जोखिमपर्ण स्थिति में रहने वाले बच्चों को चिन्हित करने का प्रयास काफी सराहनीय है । चिन्हित किए गए परिवारों और बच्चों को शीघ्र ही सरकारी की सामाजिक सुरक्षा एवं कल्याणकारी योजनाओं से जोड़ा जाएगा। उपायुक्त ने कहा कि जोखिमपूर्ण स्थिति के 23 सूचक जिनके आधार पर मैपिंग किया गया है । प्रत्येक सूचक और विभाग के अनुसार नोडल पदाधिकारी नियुक्त कर प्रभावित बच्चों को यथाशीघ्र लाभ दिया दिलाया जाएगा । उन्होंने पायलट प्रोजेक्ट के तहत बहरागोड़ा एवं चाकुलिया प्रखंड में पंचायतवार कैम्प का आयोजन कर प्रभावित बच्चों तथा परिवारों को सरकार की योजना का लाभ दिलाने के निर्देश दिए । इस कार्य में बाल कल्याण संघ एवं द एशिया फाउण्डेशन द्वारा सहयोग किया जाएगा। साथ ही पूरे जिले में कैंप का आयोजन किए जाने का निर्देश दिया गया ।
सर्वोच्च एवं उच्च न्यायालय द्वारा लिया गया है स्वत: संज्ञान
उपायुक्त ने बताया कि सर्वोच्च न्यायालय एवं उच्च न्यायालय द्वारा स्वत: संज्ञान लेकर इन मामलों में प्रभावित बच्चों के बेहतर भविष्य को देखते हुए उनकी पुस्तैनी संपत्ति पर कोई और कब्जा नहीं कर ले, इस दिशा में जिला प्रशासन को मॉनिटरिंग की जिम्मेदारी दी है । उन्होन संतोष व्यक्त किया कि इस मुद्दे पर जिले में काफी सेंसेटिविटी है। उन्होने कहा कि समाज के तौर पर भी हम सभी की जिम्मेदारी है कि ऐसे बच्चों के भविष्य निर्माण के लिए बेहतर पहल करें।
प्रखण्ड विकास पदाधिकारियों को जिम्मेदारी दी जाएगी-डीडीसी
उप विकास आयुक्त प्रदीप प्रसाद ने कहा कि मैपिंग के डाटा को प्रखण्ड एवं इंडिकेटर अनुसार अलग-अलग कर सभी बच्चों को लाभान्वित करने के लिए सभी प्रखण्डों के प्रखण्ड विकास पदाधिकारियों को जिम्मेदारी दी जाएगी, साथ ही जिला स्तर से इसका अनुश्रवण किया जाएगा ।
कार्यक्रम की सफलता के लिए वे हर संभव सहयोग- बारी मुर्मू
जिला परिषद अध्यक्ष बारी मुर्मू ने कहा कि बच्चों का यह डाटा काफी मेहनत और ईमानदारी से तैयार किया गया है, पंचायत प्रतिनिधियों की भी इसमें महत्वपूर्ण भूमिका होगी कि जोखिमपूर्ण स्थिति में रहने वाले बच्चों को पंचायत स्तर पर ही उन्हें लाभ दिलाने में सहयोग करें, बाल श्रमिक तथा ट्रैफिकिंक का शिकार होने से रोकें । उन्होने अपनी ओर से आश्वस्त किया कि इस कार्यक्रम की सफलता के लिए वे हर संभव सहयोग करेंगी ।
धन्यवाद ज्ञापन संवर्द्धन-2 की नोडल पदाधिकारी सह जिला बाल संरक्षण पदाधिकारी डॉ. चंचल कुमारी ने दिया। मौके पर बाल कल्याण संघ के अंकित कुमार मिश्र, सिद्धार्थ शर्मा, खुदीराम टुडू तथा अन्य उपस्थित थे ।
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शशांक शेखर विगत 30 वर्षों से पत्रकारिता, आकाशवाणी व सामाजिक कार्यों से जुड़े हुए हैं साथ ही लघु/फीचर फिल्मों व वृत्त चित्रों के लिए कथा-लेखन का कार्य भी विगत डेढ़ दशकों से कर रहे हैं. मशाल न्यूज़ में पिछले लगभग ढाई वर्षों से कार्यरत हैं.
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