पूरी दुनिया कोरोना महामारी के लक्षणों और उसके दुष्प्रभावों पर लगातार रिसर्च कर रही है। कई ऐसे शोध सामने आए हैं, जिसमें इसके दूरगामी असर की पड़ताल भी की गई है। हाल ही में टेक्सास एंड एम यूनिवर्सिटी के डॉ एम महबूब हुसैन और उनके विशेषज्ञों की टीम ने जो सर्वे किया है उसके नतीजे चौंकाने वाले और खतरनाक हैं। ये पूरा रिसर्च बच्चों पर होने वाले बेहद खतरनाक असर को सामने लाता है। इसमें कहा गया है कि महामारी ने बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर सबसे ज्यादा बुरा असर डाला है।
बच्चों में नींद न आने, मानसिक तनाव से जुड़ी समस्याएं और उनके व्यक्तित्व में इससे जुड़े बदलाव, चिड़चिड़ापन, डिप्रेशन, खुदकुशी जैसी प्रवृत्ति तेजी से बढ़ी है। अध्ययन में ये भी सामने आया है कि नई पीढ़ी में खुद को इस निराशा से उबारने की कोशिशों के तहत संगीत सुनने, प्रार्थना या ध्यान लगाने जैसी आदतें भी देखने को मिली हैं।
डॉ. महबूब हुसैन के साथ इस शोध में इसी यूनिवर्सिटी की फजीलातुन नेसा, ज्योति दास, रोआ अगाड, सामिया तसनीम जैसी शोधार्थियों ने हिस्सा लिया है, और अपनी रिपोर्ट तैयार की है।
इस टीम ने ऐसे 17 अध्ययन पिछले दो सालों में किए और ये नतीजा निकाला कि कोरोना जैसी वैश्विक महामारी ने पूरी दुनिया में बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर गंभीर असर डाला है। डॉ हुसैन कहते हैं कि आर्थिक और सामाजिक रूप से कमजोर तबके के बच्चों में वैसे तो ऐसी मानसिक समस्याएं सामान्य हैं, लेकिन कोरोना काल में स्कूल लंबे समय तक बंद रहने और किसी भी सार्वजनिक जगहों पर आने जाने पर लगी रोक की वजह से बच्चे बेहद आत्म केंद्रित होते गए और उनमें इस तरह के मानसिक विकार और निराशा से भरी नकारात्मक सोच तेजी से विकसित हुई है।
जागरूकता की कमी का असर
शोध में सामने आया है कि कोविड से बचने के लिए दवाओं और इसके तौर तरीकों को लेकर लोगों में जागरूकता की कमी का असर है कि ऐसे मामले न सिर्फ बच्चों में बल्कि वयस्कों में भी देखने को मिल रहे हैं। मार्च 2022 में 27 देशों के 1149 ऐसे लोगों पर शोध किया गया जो सार्स और कोरोना पॉजिटिव रहे थे। इनमें 65 साल से ज्यादा उम्र वाले 241 लोगों में 66 फीसदी लोगों को ही इलाज के लिए उपयुक्त दवाओं के सेवन के बारे में पता था, जबकि बाकी लोग इसे लेकर बहुत गंभीर नहीं दिखे। 65 से कम उम्र वालों में कोविड के बाद होने वाले लक्षणों का सबसे ज्यादा खतरा नजर आया।
ओमिक्रोन के फैलने को लेकर भी शोध में जो तथ्य सामने आए हैं, वे चौंकाने वाले हैं। एयरप्लेन वेस्टवाटर टेस्ट के नतीजों के मुताबिक खासकर फ्रांस में ऐसे कई मामले सामने आए हैं जिसमें यात्रियों ने फर्जी दस्तावेजों और सर्टिफिकेट के आधार पर यात्रा की और देश में ओमिक्रोन के फैलने का कारण बने।
शोधार्थियों ने पाया कि दिसंबर में यूथोपिया से फ्रांस आने वाले यात्रियों के लिए टेस्ट कराना और निगेटिव रिपोर्ट लाना अनिवार्य था, लेकिन ऐसे टेस्ट की फर्जी रिपोर्ट बनवाने वालों की संख्या काफी थी। जाहिर है कोरोना को लेकर की जा रही लापरवाहियों और नियमों को न मानने के तौर तरीकों ने ये खतरनाक स्थितियां पैदा की हैं और आने वाले वक्त में अगर चौथी पांचवी लहर से दुनिया के तमाम देश परेशान होते हैं, तो इसके लिए यही तमाम लापरवाहियां जिम्मेदार होंगी।
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