दुनिया के कई देशों में बढ़ते कोरोना वायरस संक्रमण के मामलों के बीच ‘डेल्टाक्रॉन’ वेरिएंट ने चिंताएं बढ़ा दी हैं। कहा जा रहा है इस वेरिएंट में डेल्टा और ओमिक्रॉन की खूबियां हैं। जानकारों का कहना है कि इस तरह के हाइब्रिड वेरिएंट्स पर करीब से निगरानी रखना जरूरी है, ये दोनों स्वरूपों की बेहतर चीजों को खोजकर सुपर वायरस में तब्दील हो सकते हैं।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, वॉशिंगटन स्थित पब्लिक हेल्थ लैबोरेटरी में बायो इंफॉर्मेटीशियन स्कॉट नुयेन का कहना है कि ऐसा लग रहा है कि यह वेरिएंट कॉम्बिनेशन का बेहतर इस्तेमाल कर रहा है। उन्होंने कहा, ‘ये रिकॉम्बिनेंट वेरिएंट्स इस बारे में बेहतर जानकारी दे सकते हैं कि अब अगली बार वायरस कैसे विकसित होने वाला है।’
पहली बार साइप्रस में कोविड-19 के मरीजों में मिला
डेल्टाक्रॉन वेरिएंट पहली बार साइप्रस में कोविड-19 के मरीजों में मिला था। नुयेन ने पाया कि सैंपल में मौजूद हर वायरस में दो अलग-अलग वेरिएंट्स के जीन्स थे। वैज्ञानिक इस स्थिति को ही ‘रिकॉम्बिनेंट’ कहते हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के डक्टर माइक रेयान बताते हैं, ‘रिकॉम्बिनेशन तब होता है, जब दो वायरस एक ही व्यक्ति या जानवर को संक्रमित करते हैं और इसके बाद आपके पास क्या होता है… प्रभावी रूप से दो वायरस बड़ी मात्रा में जैनेटिक जानकारी साझा कर सकते हैं और और दूसरी ओर प्रभावी रूप से एक नया वायरस तैयार हो सकता है… इस तरह से हमने इंफ्लुएंजा की महामारी तैयार की थी।’ उन्होंने आगे कहा कि वायरस जितना ज्यादा फैलेगा, उतना उसे बदलने के और मौके मिलेंगे।
कितने जल्दी अगला वेरिएंट ऑफ कंसर्न सामने आएगा
जानकारों का कहना है कि रिकॉम्बिनेंट वायरस घबराहट का कारण नहीं होना चाहिए। हालांकि, उनका यह भी कहना है कि कोरोना वायरस में बढ़त के बारे में जानकारी हासिल करने के लिए इन पर करीब से नजर रखना बेहद जरूरी है।
नुयेन ने कहा, ‘महामारी की शुरुआत में हम सभी यही उम्मीद कर रहे थे कि SARS-CoV-2 ज्यादा म्यूटेट नहीं करेगा।’ उन्होंने बताया, ‘लेकिन इस वायरस ने हमें हर तरफ से हैरान किया। इसलिए मुझे लगता है कि ये रिकॉम्बिनेंट वेरिएंट इस बात की जानकारी दे सकते हैं कि वायरस आगे कैसे विकसित होने वाला है।’ उन्होंने कहा कि इससे यह भी पता चल सकता है कि कितने जल्दी अगला वेरिएंट ऑफ कंसर्न सामने आएगा।
वायरोलॉजिस्ट सिमोन-लॉरिएर ने कहा, ‘यह नई चिंता नहीं है।’ उन्होंने जानकारी दी, ‘वायरसों की सतह काफी कुछ ओमिक्रॉन की तरह है, तो शरीर जैसे ओमिक्रॉन को पहचानता है, इसे भी पहचान लेगा।’
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