कोरोना की पहली और दूसरी लहर के दौरान वयस्कों की तुलना में किशोरों में हल्के लक्ष्ण मिले और उनमें मृत्युदर भी कम रही है. ये बातें एम्स के डॉक्टरों द्वारा किए गए अध्ययन में सामने आई हैं. डॉक्टरों ने ये विश्लेषण अस्पताल में भर्ती कराए गए 12 से 18 साल के 197 कोविड-19 मरीजों पर किया है.
क्या कहता है अध्ययन
तीन जनवरी के बाद 15 से 18 साल के बच्चों का टीकाकरण शुरु हुआ है. जिसके बाद डॉक्टरों द्वारा अस्पताल में भर्ती बच्चों के क्लिनिकल प्रोफाइल का अध्ययन किया गया. डॉक्टरों के अध्ययन में बताया गया कि 84.6 फीसदी बच्चों में कोरोना के हल्के लक्ष्ण विकसीत हुए हैं.
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जबकि 9.1 फीसदी में मध्यम और 6.3 फीसदी बच्चों में गंभीर कोरोना के लक्ष्ण विकसीत हुए. इस दौरान 14.9 फीसदी बच्चों में बुखार और खांसी सबसे आम लक्ष्ण रहे. अध्ययन में पाया गया कि 11.5 फीसदी बच्चों में शरीर दर्द, 10.4 फीसदी बच्चों में थकने और 6.2 फीसदी बच्चों में सांस की समस्या मिली है.
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दूसरा अध्ययन
हालांकि एम्स के ही एक अन्य अध्ययन में पाया गया कि 50.7 फीसदी बच्चों को सांस की तकलीफ हुई है. वहीं 7.3 फीसदी बच्चों को आक्सीजन, 2.8 फीसदी बच्चों को आक्सीजन वेंटिलेटर और 2.3 फीसदी बच्चों को वेंटिलेटर की आवश्यकता पड़ी है.
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अध्ययन में पाया गया कि दूसरी लहर के दौरान 24.1 फीसदी बच्चों को स्टेरॉयड और 16.9 फीसदी बच्चों को रेमेडिसिवर दवा दी गई. वहीं कोरोना की पहली लहर के दौरान 12 से 18 साल के 3.1 फीसदी बच्चों की अस्पताल में मृत्यु हुई. जबकि दूसरी लहर के दौरान एम्स में ही बच्चों से छह गुना ज्यादा 19.1 फीसदी वयस्कों की मृत्यु हुई.
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