लोकतंत्र पर हो रहे हमलों के विरुद्ध 2024 में स्पष्ट निर्णय लेने की जरूरत
झारखंड जनाधिकार महासभा ने रांची में आज 28 अगस्त को डिजिटल पर्सनल डाटा प्रोटेक्शन कानून 2023 एवं इसका जन अधिकारों और लोकतांत्रिक अधिकारों पर दुष्प्रभाव एवं सूचना के अधिकार कानून को कमजोर करने की लगातार कोशिशों पर जन चर्चा का आयोजन किया। चर्चा में मुख्य वक्ता के रूप में अंजलि भारद्वाज व अमृता जोहरी थीं। वे दोनों सूचना के अधिकार के राष्ट्रीय अभियान (NCPRI) से जुड़ी हैं व वर्षों से सूचना के अधिकार व सरकार जवाबदेही पर संघर्ष कर रही हैं।
न विपक्षी सांसदों की बात सुनी गयी और न लोगों की
वक्ताओं ने कहा, “संसद के हाल के मॉनसून सत्र में डिजिटल पर्सनल डाटा प्रोटेक्शन बिल 2023 पारित किया गया। न विपक्षी सांसदों की बात सुनी गयी और न लोगों की। बिल का ड्राफ्ट शुरुआत में स्टैंडिंग कमिटी को भी नहीं दिखाया गया था, केवल स्टैंडिंग कमिटी के बीजेपी के मंत्री ने इस बिल पर हस्ताक्षर किया और अंत में संसद में बिना चर्चा के कुछ मिनटों में ये बिल पारित किया गया। इस कानून से हमारे जन अधिकारों व लोकतांत्रिक अधिकारों पर दीर्घ कालीन असर पड़ने वाला है। इस कानून के माध्यम से सरकार ने सूचना के अधिकार अधिनियम के धारा 8 को संशोधित कर दिया है। अब सरकारी जवाबदेही संबंधित अनेक जानकारी सूचना के अधिकार कानून के दायरे से बाहर हो जाएंगे।”
तमाम एजेंसियों को मोदी सरकार का एजेंट बनाया जा रहा है
चर्चा के दौरान यह बातें भी उभर कर सामे आईं कि मोदी सरकार तो तानाशाही तरीके से सूचना के अधिकार कानून को खत्म कर रही। 2014 मई के बाद मोदी सरकार ने केंद्रीय लोकायुक्त की नियुक्ति नहीं की, जब तक इसके विरुद्ध न्यायालय ने निर्देश नहीं दिया। मोदी सरकार ने 2019 में RTI को संशोधन कर केंद्र के साथ साथ राज्य सूचना आयुक्त के कार्यकाल, पेंशन व सैलरी को अपने हाथो में ले लिया| यह एक ज़रिया था जिससे इन अधिकारों पर दबाव और नियंत्रण बना रहे। मोदी सरकार देश के लोकतांत्रिक व संवैधानिक संस्थाओं जैसे चुनाव आयोग, जांच एजेंसी आदि को लगातार कमजोर कर रही है,
भाजपा के रंग में ढाला जा रहा है और मोदी सरकार का एजेंट बनाया जा रहा है। मोदी सरकार हर तरह से ऐसी ही नीति व कानून ला रही है जो लोगों के सवाल करने के अधिकार को खत्म कर दे एवं लोगों तक जमीनी सच्चाई न पहुंचे।
डाटा प्रोटेक्शन कानून से सोशल मीडिया को भी कंट्रोल करने की साजिश
डाटा प्रोटेक्शन कानून 2023 अंतर्गत अब किसी भी व्यक्ति, व्यक्तियों का समूह व संगठन, जो फैक्ट फाइंडिंग करते हैं, जन मुद्दों को समझने के लिए सर्वेक्षण करते हैं, पीड़ितों की सूची बनाते हैं, वोटर सूची का मिलान करना आदि, वह सब डेटा फ़िदूसियरी (data fiduciary) कहलायेंगे और उनके इस काम में सरकार कानूनन रोक लगा सकती है व विभिन्न तरीकों से टारगेट कर सकती है। डाटा प्रोटेक्शन कानून से सोशल मीडिया को भी कंट्रोल करने की साजिश है, ताकि निष्पक्ष रूप से जमीनी सच्चाई सामने न आ पाए। वहीं निजी जानकारी के प्रोटेक्शन के विपरीत बाजारीकरण की पूरी छूट है जो केंद्र सरकार निजी कंपनियों को आसानी से दे सकती है. केंद्र सरकार इस कानून के माध्यम से व्यापक डिजिटल निगरानी की व्यवस्था स्थापित कर पाएगी.
सरकार की जवाबदेही ख़तम करने का कानून
इस कानून के माध्यम से हर डिजिटल जानकारी व इससे सम्बंधित इस्तेमाल, कंपनियां, सरकारी एजेंसी आदि पर केंद्र सरकार का कंट्रोल होगा. राज्य सरकारों के हाथ में भी कुछ नहीं रहेगा. बिल के तहत एक डेटा संरक्षण बोर्ड स्थापित किया जाएगा, जो कि पूरी तरह केंद्र सरकार के नियंत्रण में होगा- सरकार ही इस बोर्ड की नियुक्ति और कामकाज तय करेगी।यह लोकतंत्र में नागरिक अधिकारों को दबाने का, निजी कंपनियों को फाएदा पहुँचाने का, केंद्र सरकार के हाथों को और मजबूत करने का, नागरिक अधिकारों को सीमित कर डिजिटल निगरानी बढ़ाने का और सरकार की जवाबदेही ख़तम करने का कानून है.
सभी प्रतिभागियों ने चर्चा की, कि लोकतंत्र पर हो रहे हमलों के विरुद्ध 2024 में स्पष्ट निर्णय लेने की जरूरत है।
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शशांक शेखर विगत 30 वर्षों से पत्रकारिता, आकाशवाणी व सामाजिक कार्यों से जुड़े हुए हैं साथ ही लघु/फीचर फिल्मों व वृत्त चित्रों के लिए कथा-लेखन का कार्य भी विगत डेढ़ दशकों से कर रहे हैं. मशाल न्यूज़ में पिछले लगभग ढाई वर्षों से कार्यरत हैं.
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