रांची के बगईचा में राज्य दलित सम्मेलन का आयोजन, राज्य के कई ज़िलों से व विभिन्न संगठनों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया
झारखंड जनाधिकार महासभा द्वारा आज 4 फ़रवरी को रांची के बगईचा में राज्य दलित सम्मेलन का आयोजन किया गया. इसमें राज्य के कई ज़िलों से व विभिन्न संगठनों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया. सम्मेलन में राज्य के दलितों के ज़मीनी मुद्दों एवं देश में बढ़ते धार्मिक बहुसंख्यकवाद में दलितों के संघर्ष पर विस्तृत चर्चा की गयी.
दलितों पर हिंसा एवं फ़र्ज़ी आरोपों पर मामले दर्ज करना आम बात
चतरा व पलामू से आए लोगों ने बताया कि दलितों, खास कर भुइयां समुदाय की ज़मीन पर सालों से सवर्णों द्वारा कब्ज़ा किया गया है. प्रशासन व पुलिस द्वारा भी दोषियों का ही साथ दिया जाता है. दूसरी ओर अनेक दलित भूमिहीन है. अनेक दलित जन अधिकारों व बुनियादी सुविधाओं – राशन, पेंशन, आवास आदि – से भी वंचित हैं. दशकों से जंगल किनारे ज़मीन पर रह रहे या खेती कर रहे दलितों को वन अधिकार कानून अंतर्गत पट्टा नहीं दिया जाता है. दलितों पर हिंसा एवं दलितों पर फ़र्ज़ी आरोपों पर मामले दर्ज करना तो आम बात है.
दलितों को अभी भी मैला ढोने का काम करना पड़ रहा है
प्रतिभागियों ने यह भी कहा कि देश की आज़ादी के 75 साल बाद भी बड़े पैमाने सवर्णों द्वारा दलितों के विरुद्ध सामाजिक-धार्मिक शोषण किया जा रहा है. अभी भी कई गावों में मंदिरों में घुसना दलितों के लिए संघर्ष है. मान-सम्मान के साथ जीना ही संघर्ष बना हुआ है. वहीँ, शहरों में रह रहे सफाई कर्मचारियों को भी इन समस्याओं से जूझना पड़ता है. अभी भी राज्य में दलितों को मैला ढोने का काम करना पड़ रहा है. किसी तरह कॉलेज तक पढाई करने के बावज़ूद युवाओं को सफाई कर्मी का ही काम करना पड़ता है.
बड़ी समस्या उभरी दलितों का जाति प्रमाण पत्र न बनना
चर्चा में एक बड़ी समस्या उभरी दलितों का जाति प्रमाण पत्र न बनना. जाति प्रमाण पत्र न बनने के कारण दलितों के जीवन, खास कर के आजीविका व शिक्षा, पर व्यापक असर पड़ रहा है. केंद्र सरकार व राज्य सरकार ने रोज़गार व आजीविका के लिए सहयोग की योजनाएं तो कई बना रखी है लेकिन यह सोचने का विषय है कि राज्य में जनसँख्या का 12% होने के बावज़ूद भी दलितों – चाहे गाँव में बसने वाले दलित समुदाय हो या शहर में संघर्ष करने वाले सफाई कर्मचारी – के मुद्दे राज्य की प्राथमिकताओं में नहीं झलकते हैं. वर्षों से अनुसूचित जाति आयोग निष्क्रिय है.
राज्य के 81 विधान सभा सीटों में 9 सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है. लेकिन विधान सभा तक में दलितों के मुद्दों पर चूं तक नहीं होता है. राज्य सरकार के हाल की रिपोर्ट के अनुसार प्रमोशन वाले कुल सरकारी पदों के केवल 4.45% पदों पर दलित हैं.
मुद्दों के निराकरण के बजाए मोदी सरकार द्वारा धार्मिक बहुसंख्यकवाद की राजनीति की जा रही है
दूसरी ओर इन मुद्दों के निराकरण के बजाए मोदी सरकार द्वारा धार्मिक बहुसंख्यकवाद की राजनीति की जा रही है. सम्मेलन में आए सफाई कर्मचारी आन्दोलन के राष्ट्रीय नेता बेज़वाड़ा विल्सन ने कहा कि लोकतंत्र पर व्यापक हमले हो रहे हैं. दलित-आदिवासी-पिछड़ों-अल्पसंख्यकों के लोकतान्त्रिक अधिकार सिंकुड़ते जा रहे हैं. गया के दलित आन्दोलन में दशकों से जुड़े कारू ने कहा कि आरएसएस-भाजपा द्वारा भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाने की ओर कार्यवाई की जा रही है. ऐसा राष्ट्र जहाँ हिन्दू, मुख्यतः सवर्ण, प्रथम दर्जे के नागरिक होंगे और मुसलमान समेत अन्य अल्पसंख्यक धर्म व समुदायों के लोग दूसरे दर्जे के.
मोदी कार्यकाल में दलितों, आदिवासियों व पिछड़ों के आरक्षण प्रावधानों की अवहेलना
हिंदुत्व वर्ण व्यवस्था समाप्ति की बात तो करता ही नहीं है, बल्कि बढ़ते हिंदुत्व के साथ सवर्ण जातियों का वर्चस्व भी बढ़ता दिख रहा है. भाजपा-आरएसएस के नेताओं द्वारा तो अब खुलकर मनुस्मृति की तारीफ में बयान आ रहे हैं. यह महज़ संयोग नहीं है कि मोदी कार्यकाल में दलितों, आदिवासियों व पिछड़ों के आरक्षण प्रावधानों की अवहेलना हो रही है और आर्थिक पिछड़ेपन के नाम पर सवर्णों के लिए आरक्षण व्यवस्था, जो कि मूलतः गैरसंवैधानिक है, बना दी गयी है.
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आरएसएस से जुड़े संगठनों द्वारा समाज का धार्मिक ध्रुवीकरण किया जा रहा है
विभिन्न ज़िलों के प्रतिभागियों ने कहा कि गाँव-कस्बों में आरएसएस से जुड़े संगठनों द्वारा समाज का धार्मिक ध्रुवीकरण किया जा रहा है. गुजरात से आई सामाजिक कार्यकर्ता मंजुला प्रदीप ने गुजरात में दलितों पर शोषण एवं हिंदुत्व आधारित सामाजिक-राजनैतिक दमन व हिंसा के विषय में साझा किया. सम्मेलन में प्रतिभागियों ने एक स्वर में कहा कि राज्य में दलितों के सामाजिक-राजनैतिक-आर्थिक शोषण के विरुद्ध एवं दलितों के संवैधानिक अधिकारों के लिए सामूहिक संघर्ष की ज़रूरत है. धार्मिक बहुसंख्यकवाद के विरुद्ध संघर्ष की ज़रूरत है. राज्य सरकार को भी दलितों के मुद्दों के निराकरण की ओर कार्यवाई करना चाहिए.
इनकी रही भागीदारी
सम्मेलन में कई संगठनों – आदिवासी विकास परिषद, गाँव गणराज्य, झारखंड किसान परिषद, UMF, NCDHR, समाजवादी जन परिषद, DJKS-नालंदा, अंबेडकर ग्राम विकास समिति, DHRDNet, राजीव गाँधी मेमोरियल ट्रस्ट आदि – के प्रतिनिधियों ने भाग लिया. वक्ताओं में अजय भुइयां, बेज़वाडा विल्सन, बीरन माझी, धरम वाल्मीकि, गणेश रवि, जगत लिंडा, कारू, ललन कुमार, मनोज भुइयां, मिथिलेश कुमार, मंजुला प्रदीप, सुबोध रविदास, राजा भारती और निर्मला समेत अन्य शामिल थे. सम्मेलन का सञ्चालन अम्बिका यादव, अफज़ल अनीस, भारत भूषण चौधरी, एलिना होरो व मंथन द्वारा किया गया.
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शशांक शेखर विगत 30 वर्षों से पत्रकारिता, आकाशवाणी व सामाजिक कार्यों से जुड़े हुए हैं साथ ही लघु/फीचर फिल्मों व वृत्त चित्रों के लिए कथा-लेखन का कार्य भी विगत डेढ़ दशकों से कर रहे हैं. मशाल न्यूज़ में पिछले लगभग ढाई वर्षों से कार्यरत हैं.
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