लगता है कि मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार इस डॉक्यूमेंट्री में अंतर्निहित वस्तु को लेकर बेहद भयभीत है-ए.आई.डी.एस.ओ.
केंद्र सरकार द्वारा “बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री ‘इंडिया: द मोदी क्वेश्चन’ को देशभर में छिड़े विवाद के लिए जिम्मेदार ठहराते हुए प्रतिबंध लगा दिया गया है और इसे सभी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म से हटा लिया गया है। जेएनयू, डीयू, अंबेडकर विश्वविद्यालय, एचसीयू, टीआईएसएस और कई अन्य शैक्षणिक संस्थानों में इसकी स्क्रीनिंग के खिलाफ नोटिस जारी किया गया है और जहां भी इसकी स्क्रीनिंग हो रही है, छात्रों पर पुलिस कार्रवाई और अनुशासनात्मक कार्रवाई की जा रही है। डॉक्यूमेंट्री देखना कोई अपराध नहीं है और यह बेहद निंदनीय है कि डॉक्यूमेंट्री देखने के लिए छात्रों के साथ अपराधियों जैसा व्यवहार किया जा रहा है। ऐसा लगता है कि मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार इस डॉक्यूमेंट्री में अंतर्निहित वस्तु को लेकर बेहद भयभीत है। ए.आई.डी.एस.ओ. के राष्ट्रीय महासचिव सौरव घोष ने घटना की निंदा कर बयान जारी करते हुए उक्त बातें कहीं.
असंतोष के स्वर एवं अभिव्यक्ति की आजादी का हनन
उन्होंने कहा कि सत्ता की ताकत का इस्तेमाल कर प्रेस और मीडिया की स्वतंत्रता को कुचलना भाजपा सरकार के गैर लोकतांत्रिक और तानाशाही चेहरे को उजागर करता है। हालाँकि बीजेपी के सांप्रदायिक एजेंडे और 2002 में हुए गुजरात दंगे में मोदी के नेतृत्व वाली राज्य सरकार की जघन्य भूमिका के बारे में चर्चा करना महत्वपूर्ण है, लेकिन जिस प्रकार ज्यादातर मामलों असंतोष के स्वर एवं अभिव्यक्ति की आजादी का हनन किया जा रहा है यह चिंताजनक है। ऐसे में ‘रेड अलर्ट’ जैसी स्थिति के साथ स्क्रीनिंग पर रोक अपने आप में 2002 और आज के मोदी शासन के खिलाफ बोलती है।
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भाजपा सरकार को लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों से कोई सरोकार नहीं
आगे उन्होंने कहा कि अभिव्यक्ति की आज़ादी के लिए मनुष्य के जन्मसिद्ध अधिकार की लोकतांत्रिक भावना, एक महान फ्रांसीसी दार्शनिक व इतिहासकार, वोल्टेयर के इन शब्दों में सबसे अच्छी तरह से व्यक्त की गई थी: “आप जो कहते हैं, मैं उसे पूरी तरह से अस्वीकार करता हूँ और इसे कहने के आपके अधिकार की मृत्यु तक रक्षा करूँगा।” भाजपा सरकार को लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों से कोई सरोकार नहीं है और वह केवल सत्तावादी शासन में विश्वास करती है। उन्होंने जनता से सत्ताधारी सरकार द्वारा उठाए जाने वाले ऐसे अलोकतांत्रिक कदमों का विरोध करने और लोकतांत्रिक अधिकारों और इसकी प्रथाओं की रक्षा के लिए अपनी आवाज उठाने की अपील की।
शशांक शेखर विगत 30 वर्षों से पत्रकारिता, आकाशवाणी व सामाजिक कार्यों से जुड़े हुए हैं साथ ही लघु/फीचर फिल्मों व वृत्त चित्रों के लिए कथा-लेखन का कार्य भी विगत डेढ़ दशकों से कर रहे हैं. मशाल न्यूज़ में पिछले लगभग ढाई वर्षों से कार्यरत हैं.
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