देश के सात राज्यों सहित विदेश तक में मिठास घोलने वाले खुरचन का कारोबार फीका पड़ता जा रहा है। वर्तमान में जिले की इस स्थानीय मिठाई का व्यापार आधा से कम बचा है। कारोबारी कोरोना की इस मार से उबर नहीं पा रहे हैं। इसे बचाने के लिए न तो जनप्रतिनिधि आगे और न शासन-प्रशासन।
रामपुर बाघेलान में खुरचन (स्थानीय मिठाई) की मंडी सजती है। यहां दुकान लगाने वाले चंद्रमणि मिश्रा बताते हैं कि शुद्ध दूध से बनी इस मिठाई का कारोबार पीढ़ी दर पीढ़ी चला आ रहा है| पिसी शक्कर से बनने वाली इस मिठाई में केमिकल या अन्य मिलावटन के बराबर होती है। कोरोना लॉकडाउन से पहले यहां दुकान लगाने वाला हर व्यापारी 15-18 किलो खुरचन का कारोबार कर लेता था।
दुकानें खुलीं पर कारोबार आधा
महामारी के दौरान सभी घर बैठे रहे। अब दुकानें खुलीं पर कारोबार आधा हो गया। महज 4-5 किलो की बिक्री प्रतिदिन होती है। महज 300 से 400 रुपए का लाभ प्रतिदिन मिलता है। व्यापार पर धूल और बाइपास का असर खुरचन के कारोबार पर खराब सड़क, धूल-मिट्टी और बाइपास का असर भी पड़ा है। धूल के बीच भी कोई नहीं रुकना चाहता। अभय त्रिपाठी बताते हैं कि पहले सभी गाडियां मंडी की ओर से गुजरती थीं। बाइपास बनने के बाद लग्जरी और लम्बे रूट के वाहन वहीं से गुजर जाते हैं।
65 वर्ष से बन रहे इस पकवान की मिठास देश के अलावा विदेशों तक फैली है। मध्य प्रदेश व इसकी सीमा से लगे उत्तर प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, हरियाणा, दिल्ली, मुंबई तक आपूर्ति होती है। सड़क किनारे मंडी होने के यहां से गुजरने वाला हर चौथा-पांचवां राहगीर इसे खरीदता था। एक किलो खुरचन बनाने में 4 लीटर शुद्ध दूध लगता है। 50 रुपए लीटर के मान से 200 रुपए का दूध लगता है। शक्कर और लकड़ी का खर्च करीब 50 रुपए आता है। इस तरह 250 रुपए लागत आती है। इन दिनों कारोबारी 320 रुपए किलो बेच रहे हैं। महज 70 रुपए प्रति किलो लाभ मिलता है।
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